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16 अगस्त 2011

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोगःसात साल में पहली बार वेतन संकट में

अल्पसंख्यकों की तालीम और तरक्की के सरकारी दावे अपनी जगह हैं, लेकिन देश में शैक्षणिक संस्थानों का अल्पसंख्यक दर्जा तय करने वाले आयोग के सामने खुद सरकार ने ही नया संकट खड़ा कर दिया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (एनसीएमइआइ) के गठन के बाद सात साल में पहला मौका है, जब उसके कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिल पा रही है। सरकार ने आयोग को हर तिमाही मिलने वाला अनुदान रोक दिया है। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आयोग का जुलाई से सितंबर का अनुदान अब तक नहीं दिया है। नतीजा यह है कि आयोग के लगभग ढाई दर्जन कर्मचारियों को अगस्त में मिलने वाली तनख्वाह नहीं मिल सकी है। यह स्थिति तब है, जब आयोग ने अनुदान की धनराशि न मिलने की स्थिति में अगस्त का वेतन न बंट पाने की बाबत मंत्रालय को जुलाई में ही आगाह कर दिया था। अल्पसंख्यक संस्थानों से जुड़े मामलों के विवादों को निपटाने वाले इस आयोग को मंत्रालय सालाना 2.44 करोड़ का अनुदान देता है। जुलाई से सितंबर की तिमाही के लिए उसे 80 लाख रुपये अनुदान की दरकार है। जानकार सूत्र बताते हैं कि आयोग की इस अनदेखी के पीछे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास कोई ठोस वजह नहीं है। आयोग के लिए रजिस्ट्रार का एक पद स्वीकृत है। वह पद खाली पड़ा है। आयोग स्वायत्तशासी है, लिहाजा उसने तात्कालिक जरूरतों के मद्देनजर एक सलाहकार की नियुक्ति जरूर कर रखी है। मंत्रालय को शायद वह नियुक्ति नहीं पच रही है। इस बारे में आयोग के चेयरमैन जस्टिस एमएसए सिद्दीकी का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग के सालाना खर्चे का आडिट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) करता है। उसकी रिपोर्ट संसद में पेश होती है। उस स्तर पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है। गौरतलब है कि आयोग ने इसी साल जामिया विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक होने का फैसला सुनाया है। जबकि बीते महीने ही उसने दिल्ली में सिख समुदाय से संचालित चार कॉलेजों के भी अल्पसंख्यक दर्जे के होने का फैसला दिया है(दैनिक जागरण,दिल्ली,16.8.11)।

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