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16 अगस्त 2011

एनजीओ में करिअर

आदिवासी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, जमीन के लिए लड़ रहे हैं। समाज का निम्न तबका अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। प्राकृतिक ऊर्जा को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। सामूहिक विकास की बात हो रही है। शहरी समाज लगातार गुस्साता जा रहा है। ऐसे में, एनजीओ सेक्टर और इससे जुड़े लोगों की भूमिका काफी बढ़ जाती है।

वर्तमान में भागदौड़ वाली जिंदगी और प्रतिस्पर्धा में इज्जत के साथ नाम और पैसा कमाना भी अहम होता जा रहा है। बावजूद इसके, समाज में एक वर्ग या लोग ऐसे हैं, जो सिर्फ फायदे के लिए नहीं बल्कि दूसरे के लिए काम करते हैं। एनजीओ सेक्टर सेंसिटिव लोगों के लिए लिए है जो सामाजिक समस्याओं को समझते और उन्हें दूर करने में अपना योगदान देना चाहते हैं। यदि आपको लगता है कि आप एनजीओ सेक्टर के लिए उपयुक्त हैं तो आपको यह भी समझना पड़ेगा कि इस फील्ड में आप किस तरह करियर बना सकते हैं।

कोर्स


बाल शोषण, महिलाओं का शोषण, नशाखोरी, स्वास्थ्य मामले, डिसएबिलिटी, गरीबी, ओल्ड एज प्रॉब्लम्स आदि ऐसे फील्ड हैं जहां गैर सरकारी संस्थाओं के साथ सोशल सर्विस ग्रुप की जरूरत है। इससे जुड़ी संस्थाएं सामाजिक उत्थान के लिए कार्य करती हैं। आज के युग में एनजीओ पूरी तरह प्रोफेशनल होकर सामने आ रहे हैं। वे अब अपने टारगेट एरिया को लेकर काफी फोकस्ड और ऑरिएंटेड हो चुके हैं। यदि आप इस प्रोफेशन से जुड़ना चाहते हैं तो आपको भी पूरी तरह प्रोफेशनल रवैये के साथ अपना आउटलुक बदलना होगा। यदि आप इस फील्ड में पूरी तरह प्रोफेशनली आना चाहते हैं तो आप मान्यता प्राप्त विविद्यालय से डिग्री अवश्य हासिल करें। किसी भी एजुकेशनल बैकग्राउंड के छात्र इस फील्ड में आ सकते हैं और समाज के लिए कुछ अलग कर सकते हैं। हालांकि कई कॉलेजों और विविद्यालयों में सोशल वर्क से संबंधित कोर्स की पढ़ाई होती है, जिसके द्वारा छात्रों को मूलभूत जानकारी मिलती है। बारहवीं के बाद छात्र बीएसडब्ल्यू या सोशल वर्क के बीए प्रोग्राम्स में शामिल हो सकते हैं। जो बैचलर्स डिग्री हासिल कर चुके हैं वे एमए या फिर एमएसडब्ल्यू कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। कई कॉलेजों में सोशल वर्क में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट की भी पढ़ाई हो रही है।


अवसर

सामाजिक समस्याओं के बढ़ते कारणों के चलते भारत जैसे देश में एनजीओ सेक्टर का महत्व बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में इससे जुड़े लोगों की मांग बढ़ी है। कई तरह के एनजीओ, मसलन वॉलेन्टियर सेक्टर, ग्रासरूट ऑग्रेनाइजेशन, सिविक सोसाइटी, प्राइवेट वॉलेन्टियर आग्रेनाइजेशन, सेल्फ हेल्प ग्रुप आदि युवाओं को काफी मौके देते हैं। कोई भी अभ्यर्थी एनजीओ सेक्टर में बतौर लीगल एडवाइजर ज्वाइन कर सकता है, मीडिया को हैंडल करने के लिए बतौर पब्लिक रिलेशन्स अफसर भी काम किया जा सकता है। इसके जरिए, इंटरपर्सनल स्किल्स और बाजार में अपनी पहचान बनाने के लिए भी काम किया जा सकता है। जो लोग एकाउंट में रुचि रखते हैं वे एनजीओ के एकाउंट को मैनेज कर सकते हैं क्योंकि इनके भरोसे ही तमाम फंड और खर्च का हिसाब-किताब होता है। एनजीओ सेक्टर में रिसर्च के लिए भी तमाम मौके हैं।

वेतन

कॉलेज से निकलने के बाद किसी भी फ्रेशर को कम से कम दस हजार रुपए मासिक वेतन मिलना तय है। हालांकि अधिकतर मामलों में संस्थान के आकार के हिसाब से ही वेतन मिलता है फिर भी छोटे लेवल पर जहां शुरू में कम से कम दस हजार रुपए मिलते हैं, वहीं पर्सनल और लेवर वेलफेयर ऑफीसर को इससे कहीं अधिक वेतन मिलता है।

संस्थान
- इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल वेलफेयर एंड बिजनेस मैनेजमेंट, कोलकाता यूनिवर्सिटी
-टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई पल्ली संगथान विभाग (रूरल रकिंस्ट्रक्शन कॉलेज)
- दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली
-जामिया, मिल्लिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली
-इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, आगरा कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी गुरुनानक खालसा कॉलेज, यमुना नगर
-डिपार्टमेंट ऑफ सोशल वर्क कुरुक्षेत्र कर्व इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पूना यूनिवर्सिटी, पुणे
(विनीत उत्पल,राष्ट्रीय सहारा,16.8.11)

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