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16 अगस्त 2011

अर्द्धसैनिक बल के जवान को नौकरी से हटाने का निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट ने उचित ठहराया

याचिकाकर्ता अनुशासित पैरा मिल्ट्री फोर्स का एक सदस्य था। यह सर्विस कभी भी किसी जवान के पथभ्रष्ट व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकती है, विशेषतौर पर जब मामला गलत तरीके से अवैध हथियार रखने का हो। यह टिप्पणी करते हुए उच्च न्यायालय ने बीएसएफ के उस कांस्टेबल को राहत देने से इंकार कर दिया है जिसे अवैध चाइनीज पिस्तौल रखने के मामले में नौकरी से हटा दिया गया था। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व न्यायमूर्ति सुनील गौड़ की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता विरेंद्र कुमार को बीएसएफ का कांस्टेबल होने के नाते पता था कि बिना लाइसेंस के हथियार रखना अवैध है। यह घटना वर्ष 1990 की है। उस समय पंजाब में आतंकवाद पर पूरी तरह काबू नहीं पाया गया था। पंजाब के बार्डर आउट पोस्ट पर आतंकियों द्वारा छुपाए आ‌र्म्स व विस्फोटक में आग लग गई थी। अगले दिन की गई सर्च में काफी सारे हथियार मिले थे। सर्च पार्टी में शामिल कुछ जवानों ने अपने पास कुछ पिस्तौल रख लीं। याचिकाकर्ता ने भी एक पिस्तौल रख ली। इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि वह सर्च पार्टी का हिस्सा था या नहीं। उसने बताया था कि एक रिश्तेदार को पिस्तौल दी थी। उसने किसी अन्य को बेच दी थी। इनकी निशानदेही पर वह बरामद भी हो गई थी। याचिकाकर्ता पंजाब के बार्डर आउट पोस्ट पर तैनात था। 25 मई 1990 को इलाके में आग लग गई। आतंकियों द्वारा छुपाए विस्फोटक तक आग पहुंच गई और विस्फोट हो गया। इस मामले में याचिकाकर्ता सहित सात जवान को दोषी करार दिया गया था(दैनिक जागरण,दिल्ली,16.8.11)।

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