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16 अगस्त 2011

साइंस और टेक्नोलॉजी में अग्रणी बनाती है संस्कृत

अभी कु छ समय पह ले ब्रिटे न में एक शोध कि या गया, जिसमें दुनिया की तमाम भाषाओं के मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ ने वाले प्रभाव का वैज्ञानिकों ने काफी बारीकी से विश्लेषण कि या। इसमें पाया गया कि संस्कृ त दुनिया की ऐसी भाषा है जिसे बोलने या सीखने वाले लोगों की न्यूरो लिंग्विस्टि क गतिविधियां काफी विलक्षण होती हैं । वे दुनिया की कि सी भी भाषा और तक नीकी को दूसरों से काफी जल्दी सीख सकते हैं । और हम जो आईटी में भारत के इतने अधिक विकास को देखते हैं और दुनिया में भारतीय युवा टेक्नोलॉजी क्षेत्र में जो अचानक इतना छा गए हैं , बहुत मुमकिन है कि इसका एक बड़ा और प्रमुख कारण भी यही हो। ह मारे यहां सब भाषाएं प्राय: संस्कृत से ही निकली या उस पर ज्यादा आधारि त हैं । तो हमारा संस्कृत का जो बेस है , वह ह में आईटी और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की नई भाषाएं जल्दी सीखने का कारण निश्चित ही हो सकता है । आखिर इस देश में कुछ विशेषता तो है । मैं कहना यह चाहता हूं कि ब्रिटेन जैसे देश ने अपने व्यापक शोध में संस्कृ त का जो वैज्ञानिक समझदारी में जल्द निपुण होने का सूत्र देखा तो उ सने उ से अपनाया भी है। हमें खबर मिली है कि ब्रिटेन के तीस जाने-माने शिक्षा संस्थानों में संस्कृत को अनिवार्य कर दिया गया है । तो इससे यही साबित होता है कि ह मारे ऋ षि-मुनियों ने हजारों साल पहले विज्ञान में जितनी खोज कीं उसमें संस्कृत का कितना बड़ा योगदान र हा होगा। अपनी इस थाती को हमने कैसे भुला दिया, हम क्यों चूक गए, यह एक सवाल है । हम अध्यात्म के क्षेत्र में तो विश्वगुरु बन ही सकते हैं , लेकिन अगर संस्कृत भाषा को सीखने पर भी ध्यान दें तो विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी शक्ति भारत जरूर बन सकता है(हिंदुस्तान,रांची,स्वतंत्रता दिवस,2011) ।

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