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16 अगस्त 2011

एप्टीट्यूड टेस्ट

समाज में किसी व्यक्ति की क्षमता का आकलन एप्टीट्यूट टेस्ट से ही हो पाता है। उसमें इंजीनियर बनने की क्षमता है या ड्राइवर या कलाकार, इसे पता लगाने का सटीक उपाय है एप्टीट्यूट टेस्ट। दिल्ली पब्लिक स्कूल के छात्र अमोल संगीतज्ञ बनना चाहता है लेकिन उसके माता-पिता उसे इंजीनियर के रूप में देखना चाहते हैं। पिता और अमोल के बीच करियर के चुनाव को लेकर काफी दिनों तक खींचतान चलती रही। घर में इस कलह को दूर करने के लिए उसे काउंसलरों ने एप्टीट्यूट टेस्ट कराने की सलाह दी। अमोल के एप्टीट्यूट टेस्ट के बाद ही यह पता लगाया गया कि वह सफल संगीतज्ञ बन सकता है। टेस्ट में उसमें क्रिएटिव इनोवेशन के लक्षण ज्यादा पाए गये । इस क्षेत्र में उसकी विशेष रुचि भी देखी गई। अमोल अकेला ऐसा छात्र नहीं। उसकी तरह कई और भी छात्र हैं जिसके जीवन को सही दिशा देने के लिए माता-पिता अब एप्टीट्यूट टेस्ट कराने लगे हैं। दिल्ली विविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रो. एनके चड्ढा कहते हैं, करियर का सही चुनाव और उसमें मौजूद क्षमता के आकलन के लिए एप्टीट्यूट के साथ उसकी रुचि भी देखी जाती है। ऐसा करने पर करियर के चुनाव में खासी मदद मिलती है। एप्टीट्यूट और इंटरेस्ट दोनों एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं और साथ-साथ चलते हैं। अगर एक है और दूसरा नहीं तो करियर को सही दिशा नहीं मिलती। काउंसलर गीतांजलि कुमार करियर और जीवन को सही दिशा देने में एप्टीट्यूट और इंटरेस्ट के साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व और शारीरिक क्षमता को भी एक कड़ी मानती हैं। वह कहती हैं, तीनों को मिलाकर ही किसी को करियर या जीवन में कोई राह चुनने की सलाह दी जाती है। अगर किसी में किसी कार्य के प्रति एप्टीट्यूट है पर रुचि या करने की इच्छा नहीं तो उस दिशा में भेजना बेकार है। इसी तरह पहली दोनों चीजे हैं लेकिन शारीरिक क्षमता या उचित एप्टीट शारीरिक क्षमता, व्यक्तित्व नहीं तो ऐसे करियर के चुनाव की सलाह देना बेकार है। वह कहती हैं, व्यक्तित्व भी पॉजिटिव मोटिव देता है। इसलिए तीनों को देखना जरूरी है।

पहचानें खुद को

लॉजिकल रीजनिंग
एप्टीट्यूट टेस्ट के कई आयाम हैं जिनमें एक है लॉजिकल रीजनिंग। इसके तहत कार्य कारण संबंध पर जोर होता है। किसी व्यक्ति में मानसिक स्तर पर कलकुलेशन की क्षमता कितनी है, इसका आकलन लॉजिकल रीजनिंग करता है। अगर वह लॉजिकल रीजनिंग में ज्यादा स्कोर करता है तो इससे पता चलता है कि वह कायदे-कानून में रहकर कठिन से कठिन समस्याओं को हल कर सकता है। इस क्षमता से लैस युवा मैनेजर, वैज्ञानिक और व्हाइट कॉलर जॉब में जाने के उपयुक्त होते हैं।

ऑब्सट्रैक्ट रीजनिंग :

इसके तहत युवा बिखरी हुई चीजों को एकत्रित करके प्लान के साथ काम करने में विशेष हुनर रखता है। इसमें एप्टीट्यूट किस तरफ जा रहा है, उसकी दिशा क्या है। वह एक एरिया से दूसरे एरिया में लिंक कर रहा है या नहीं, आदि भी देखा जाता है। सिविल और इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग में बेहतर करने वाले युवाओं में ऑबस्ट्रक्ट रीजनिंग हल करने की क्षमता ज्यादा पाई गई है।

न्यूमेरिकल रीजनिंग :

यह किसी व्यक्ति की गणितीय क्षमता की जानकारी देता है। वह गुणा-भाग करने और सांख्यिकीय सवालों को हल करने की कितनी क्षमता रखता है, इसका आकलन किया जाता है। इसे देखकर ही उसे इस विषय या क्षेत्र से जुड़े करियर में जाने की सलाह दी जाती है। मसलन सीए, गणितज्ञ और लेखाकार आदि बनने के लिए न्यूमेरिकल रीजनिंग में बेहतर होनी चाहिए।

आई हैंड कोऑर्डिनेशन :

आमतौर से टेक्निकल काम मसलन ड्राइविंग हो या पायलट या फिर किसी मशीन को चलाने के लिए मशीनमैन, उनमें यह एप्टीट्यूट जरूर होनी चाहिए। इसमें व्यक्ति हाथ, पैर व आंख को काम करते वक्त कितना केन्द्रित कर पाता है, आदि देखा जाता है। ऐसा व्यक्ति दुर्घटनाओं को कम करने में काफी मददगार साबित होता है। ड्राइवर, पायलट, मशीनमैन और ऐसे मैकेनिकल जॉब के लिए यह एप्टीट्यूट बढ़िया माना जाता है।

क्रिएटिव इनोवेशन :


इसमें किसी व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता का आकलन किया जाता है। उसमें कलात्मक रुझान व रुचि का पता लगाया जाता है। आमतौर पर व्हाइट कॉलर जॉब में इस तरह के लोगों की जरूरत पड़ती है । इसके तहत यह भी देखा जाता है कि वह निर्णय कितना शीघ्र और सही रूप में लेता है। उसमें फ्लेक्सिबिलिटी भी होनी चाहिए। कोई व्यक्ति स्वभाव में अड़ियल तो नहीं है। उसमें जिद्दीपना तो नहीं है। अगर उसमें फ्लेक्सिबिलिटी का स्तर बेहतर है तो उसे ऊपरी यानी उच्चतम पदों की जिम्मेदारी दी जाती है। इसमें उसके अंदर बड़प्पन कितना है, इसका आकलन भी किया जाता है। एप्टीट्यूट टेस्ट में ओरिजनैलिटी और मौलिकता को भी देखा जाता है । ऐसे चंद ही व्यक्ति होते हैं, जो अलग किस्म के आइडिया से लैस होते हैं। इस टेस्ट में ओरिजनल आइडिया को देखा व समझा जाता है। इसे बहुविध सोच के रूप में भी देखा जाता है। यह गुण जिसमें है, उसमें अध्यापक, लेखक, अभिनेता, संगीतज्ञ और अविष्कारक बनने की क्षमता होती है।


उचित मनोदशा में हो टेस्ट

गीताजंलि कुमार, काउंसलर

एप्टीट्यूट टेस्ट में एप्टीट्यूट, इंटरेस्ट और व्यक्तित्व या शारीरिक क्षमता, तीनों को देखा जाता है। तीनों को मिलाकर ही किसी को करियर या जीवन में कोई राह चुनने की सलाह दी जाती है। अगर किसी में किसी कार्य के प्रति एप्टीट्यूट है पर रुचि या करने की इच्छा नहीं है तो उस दिशा में भेजना बेकार है। इसी तरह पहली दोनों चीजे हैं लेकिन शारीरिक क्षमता या व्यक्तित्व नहीं है तो ऐसे करियर में किसी व्यक्ति को भेजना बेकार है। व्यक्तित्व भी पॉजिटिव मोटिव देता है, इसलिए तीनों को देखना जरूरी है। आज नौकरी के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों का होना जरूरी है लेकिन ऐसे लोग कम ही उपलब्ध हैं। किसी कार्य या करियर के लिए कौन उपयुक्त है या नहीं इसकी पहचान के लिए प्रशिक्षित या दक्ष साइकोलॉजिस्ट का भी होना अनिवार्य है। एक और बात यह कि इस तरह के टेस्ट हर समय नहीं किए जाते। सही रिजल्ट जानने के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति से भी रूबरू होना जरूरी है । जैसे कि वह तनावग्रस्त या थका हुआ नहीं हो। उसे जबर्दस्ती टेस्ट के लिए भी बाध्य नहीं करना चाहिए। सामान्य स्थिति या मनोदशा में ही इस तरह के टेस्ट होने चाहिए।


क्यों है जरूरी

एप्टीट्यूट टेस्ट ही किसी छात्र या व्यक्ति के करियर और काम की दिशा बताता है। उसकी क्षमता और रुचि को बताता है। इसके बाद उसे सही प्रोफेशन चुनने की सलाह दी जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर ऐसा नहीं होता तो अमुक व्यक्ति में आगे चलकर कुंठा का जन्म होता है। वह काम को एन्जाय नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में उसके अंदर नकारात्मक सोच हावी हो जाता है। वह विध्वंसात्मक दिमाग का हो जाता है। उसमें पहचान का संकट भी पैदा होने लगता है। एप्टीट्यूट, रुचि और व्यक्तित्व के हिसाब से काम नहीं मिलने पर वह अपने पेशे में उतना सक्षम साबित नहीं होता जितना दूसरे लोग। ऐसी स्थिति में वह दूसरों को नीचा दिखाने के लिए कई बार उल्टे-सीधे हथकंडे भी अपनाता है। सफलता नहीं मिलने पर वह कई बार अवसाद की स्थिति में आ जाता है और आत्महत्या को मजबूर हो जाता है। इसलिए संस्थानों को सरकार ने बच्चों का करियर की दिशा तैयार करने को कहा। शिक्षण संस्थाओं में करियर एंड काउंसलिंग सेंटर आए दिन इसी वजह से खोले जा रहे हैं। यह हर संस्थान और काम की जगह की जरूरत बनती जा रही है। भारत में इस तरह की समस्याओं के लिए निजी प्रैक्टिशनर की ओर से जगह-जगह नगरों व महानगरों में काउंसलिंग सेंटर खुल गए हैं लेकिन इसे चलाने वाले बंदे आमतौर पर क्वालिफाइड नहीं हैं। काउंसलिंग के लिए कौन-सा व्यक्ति उपयुक्त है या नहीं, इसके लिए नेशनल एजेंसी बनी है। वह क्वालिफिकेशन तय करती है।

(
अनुपम,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,16.8.11)।

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