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14 अगस्त 2011

पीटीए की सहमति से फीस बढ़ाना गलत :दिल्ली हाईकोर्ट


पब्लिक स्कूलों में पैरंट्स टीचर्स एसोसिएशन (पीटीए) की सहमति से फीस बढ़ोतरी के नियम को हाईकोर्ट ने गैर-कानूनी बताया है। 2009 में दिल्ली सरकार ने फीस बढ़ोतरी को लेकर जारी नोटिफिकेशन में इस नियम का प्रावधान किया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नोटिफिकेशन के इस प्रावधान का कि कोई भी स्कूल सिर्फ पीटीए की सहमति से फीस बढ़ा सकता है कोई कानूनी आधार नहीं है। गौरतलब है कि फीस वृद्धि मामले में शुक्रवार को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। यह कमेटी निजी स्कूलों के खातों की जांच कर यह तय करेगी कि उनके द्वारा बढ़ाई गई फीस उचित है या नहीं। न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ ने कहा था कि नोटिफिकेशन में यह प्रावधान दिल्ली एजुकेशन एक्ट की धारा 17(3) के विपरीत है, क्योंकि इस धारा के मुताबिक फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को शिक्षा निदेशालय से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। पीठ ने कहा कि फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को पैरंट्स की दया पर निर्भर छोड़ना दिल्ली एजुकेशन एक्ट का उल्लंघन है। इसे वैध नहीं ठहराया जा सकता है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के इस नोटिफिकेशन को अभिभावक महासंघ की तरफ से सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल ने चुनौती दी थी। नोटिफिकेशन में एक जनवरी 2006 से स्कूलों को फीस बढ़ाने की छूट दी गई थी। अग्रवाल की दलील थी कि एजुकेशन एक्ट 17(3) के तहत बीच सत्र में कोई भी स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकता। उनकी यह भी दलील थी कि हाईकोर्ट के 30 अक्टूबर 1998 के आदेश के मद्देनजर इस तरह से फीस बढ़ाना गलत है(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,14.8.11)।

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