मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

03 अगस्त 2011

अंग्रेज़ी दुरुह क्यों लगती है?

आज निजीकरण के दौर में भारत जैसे देशों में इंगलिश की मांग बढ़ रही है। निजी स्कूलों व कंपनियों में नौकरी के लिए आए उम्मीदवारों में उन युवक/युवतियों को प्राथमिकता दी जाती है जो इंटरव्यू के समय फर्राटेदार इंगलिश बोल सकते हैं। हरियाणा जैसे राज्यों में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए यही एक बड़ी समस्या बन जाती है। अपने विषय या क्षेत्र से संबंधित ज्ञान होने के बावजूद वे इंटरव्यू से घबराते हैं। ऐसे लोगों के लिए शहरों में जगह-जगह इंगलिश स्पीकिंग कक्षाएं खुली हैं जो एक या दो महीने में इंगलिश सिखाने का दावा करते हैं लेकिन दो महीने बाद भी बहुत सारे विद्यार्थियों को निराश लौटना पड़ता है क्योंकि भाषा एक ऐसी चीज़ है जो तब तक नहीं सीखी जा सकती जब तक कि उसे दिनचर्या में बोला न जाए। हमारे प्रदेशों में बच्चों को घर से लेकर स्कूल तक ऐसा कोई माहौल नहीं मिलता। हालांकि हरियाणा के स्कूलों में इंगलिश पहली कक्षा से स्नातक तक एक अनिवार्य विषय के रूप में रखी गई है लेकिन 15 साल इंगलिश पढऩे के बावजूद ज्यादातर विद्यार्थी इंगलिश बोलना दो दूर, समझते भी नहीं। यह देखकर आश्चर्य होता है कि इंगलिश में मास्टर डिग्री (एमए) हासिल करने के बावजूद भी ज्यादातर विद्यार्थियों का न तो इंगलिश ग्रामर पर अधिकार होता है और न ही इंगलिश बोलना सीख पाते हैं। एक बच्चा जो अपनी मातृभाषा में तीन साल की उम्र तक बिल्कुल पारंगत हो जाता है वही बच्चा 17 साल में इतनी इंगलिश भी नहीं सीख पाता कि इंगलिश में अपनी बात दूसरे को समझा सके।
इसका कारण ढूंढऩे लगें तो शायद सबसे बड़ा दोष हमारी शिक्षाप्रणाली में ही मिलेगा। हमें देखना होगा कि हमारे स्कूलों में इंगलिश सिखायी कैसे जाती है या स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर बी.ए. तक का पाठ्यक्रम क्या है? जहां तक भाषा सिखाने के तरीके की बात है तो भाषा को सिखाने का सही क्रम है- लिसनिंग-स्पीकिंग-रीडिंग, राइटिंग। लेकिन हमारे स्कूलों में सिर्फ राइटिंग और रीडिंग पर ही जोर दिया जाता है। लिसनिंग व स्पीकिंग के लिए पाठ्यक्रम में कोई जगह नहीं है। यह भी देखा गया है कि एक कक्षा के पाठ्यक्रम का दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम से बहुत कम संबंध है खासतौर पर ग्रामर के संदर्र्भ में। ग्रामर को एक कक्षा से दूसरी कक्षा में सही क्रमवार नहीं करवाया जाता। ग्रामर को एक व्यावहारिक विषय के रूप में पढ़ाने की बजाय नियमों के रटने पर जोर दिया जाता है। हरियाणा जैसे हिन्दी भाषी राज्य में इंगलिश पढ़ाने के लिए द्विभाषी तरीका काफी कारगार सिद्ध हो सकता है। लेकिन ग्रामर में वाक्य निर्माण व हिन्दी से इंगलिश अनुवाद को कोई महत्व नहीं दिया जाता। पाठ्य पुस्तकों में भी सिर्फ प्रश्नों के रटने पर ज़ोर दिया जाता है न कि समझने पर। और यह प्रक्रिया सिर्फ छोटी कक्षाओं में ही नहीं, बी.ए. व एम.ए. स्तर तक में भी अपनाई जाती है। यानी विद्यार्थी परीक्षोपयोगी कुछ प्रश्नों को रटकर लिख देते हैं। कुल मिलाकर इंगलिश को एक भाषा की बजाय एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।

भाषा को सीखने के लिए सबसे पहले उसे बोलना सीखना जरूरी है। लेकिन विडम्बना यह है कि ज्यादातर अध्यापक भी इंगलिश बोलने मेंअसमर्थ होते हैं लेकिन इसके लिए अध्यापक दोषी नहीं हैं। असल में इसके लिए दो परिस्थितियां जिम्मेवार हैं। एक तो ये अध्यापक भी उन्हीं स्कूलों और परिस्थितियों में पढ़े हैं जहां इंगलिश रटने पर बल दिया जाता है। दूसरे, हमारे हरियाणा में अध्यापक भर्ती प्रक्रिया बड़ी विचित्र है। यहां सरकारी स्कूलों में दसवीं तक इंगलिश अध्यापक का कोई पद नहीं है, सोशल स्टडी मास्टर के पद पर लगे अध्यापक को ही इंगलिश पढानी पड़ती है। और कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि जिस अध्यापक ने बी.एड. टीचिंग सब्जेक्ट के रूप में हिन्दी और सामाजिक विषय लिए हैं उसे इंगलिश भी पढानी पड़ेगी। ऐसे अध्यापक से हम दसवीं तक इंगलिश पढ़ाने की अपेक्षा नहीं कर सकते। जब अध्यापक को अपने शिक्षण या प्रशिक्षण के दौरान किसी भी स्तर पर इंगलिश बोलने या सीखने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाएगा तो वह अपने विद्यार्थियों को क्या सिखाएगा? इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा के किसी भी स्तर पर परिस्थितियां इंगलिश सीखने के अनुकूल नहीं हैं।
स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम से लेकर पढ़ाने के तरीके तक और अध्यापक प्रशिक्षण से लेकर अध्यापक भर्ती प्रक्रिया तक हर जगह सुधार की जरूरत है। इंगलिश का पाठ्यक्रम व्यावहारिक हो। विषयवस्तु रटने की बजाय इंगलिश बोलने पर बल दिया जाए। अध्यापक प्रशिक्षण के दौरान अध्यापकों को इंगलिश बोलने का प्रशिक्षण दिया जाए। स्कूलों में अलग से इंगलिश अध्यापकों की भर्ती की जाए। ये सब तरीके अपनाकर शायद हम इंगलिश के पक्ष में माहौल बना सकते हैं वरना विद्यार्थी ताउम्र यूं ही इंगलिश को कोसते रहेंगे(अलका,दैनिक ट्रिब्यून,3.8.11)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।