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18 अगस्त 2011

फिल्म निर्माण : अवसरों का समंदर

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के विस्तार का ही परिणाम है कि न सिर्फ देश-विदेश में इसकी एक खास पहचान बन चुकी है, बल्कि युवाओं को रोजगार प्रदान करने में भी यह सेक्टर अग्रणी है।

वैसे तो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री सदा से ही रोजगार प्रदाता रही है, पर पिछले दो दशक से फिल्म निर्माण में काफी तेजी आई है, जिससे रोजगार के मौके भी खूब बढ़े हैं। मल्टीप्लेक्स का चलन बढ़ जाने से इस इंडस्ट्री में और बूम आया है। व्यावसायिक सफलता देखकर विदेशी कंपनियां भी भारतीय फिल्मों पर अधिक पैसा लगाने लगी हैं। बड़ी संख्या में फिल्मों का निर्माण होने से अवसरों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। न सिर्फ हिंदी, बल्कि अन्य प्रादेशिक भाषाओं में बननेवाली फिल्मों ने भी रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध कराए हैं।

कैसे-कैसे कोर्स

फिल्म निर्माण से संबंधित कई पाठ्यक्रम हैं। इनमें मुख्य हैं ः बीए इन फिल्म स्टडीज, सर्टिफिकेट कोर्स इन एनिमेशन एंड फिल्म मेकिंग, सर्टिफिकेट कोर्स इन डिजिटल फिल्म मेकिंग, डिप्लोमा इन एनिमेशन फिल्म मेकिंग, डिप्लोमा इन एक्टिंग, डिप्लोमा इन वीडियोग्राफी, डिप्लोमा इन फिल्म डायरेक्शन, डिप्लोमा इन फिल्म मेकिंग, पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट कोर्स इन फीचर फिल्म एेंड स्क्रीनप्ले राइटिंग, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फिल्म डायरेक्शन आदि।

विस्तृत कार्यक्षेत्र
फिल्म मेकिंग में कई तरह से अपनी सेवाएं दी जा सकती हैं -

फिल्म प्रोड्यूसरः इसका काम फाइनेंस को मैनेज करना होता है। फिल्म की प्रोग्रेस की मॉनिटरिंग से लेकर बजट को मेंटेन करने का काम इसी का होता है। 

प्रोडक्शन मैनेजरः प्रोडक्शन मैनेजर प्रोड्यूसर के अंडर में काम करता है। बजट तैयार करना, शूटिंग शेड्यूल बनाना, उपकरणों को किराए पर लाना तथा लोकेशन के लिए परमिशन लेना आदि काम प्रोडक्शन मैनेजर करता है।

प्रोडक्शन असिस्टेंटः होटल बुक करने, फिल्म के सदस्यों के लिए फ्लाइट टिकट का इंतजाम करने, टाइम शेड्यूल अरेंज करने, विदेशों में शूटिंग के लिए उपकरणों को भिजवाने आदि की जिम्मेदारी इसी की होती है।

रिसर्चरः फिल्म निर्माण में रिसर्चर की भी जरूरत होती है। इसका मुख्य काम जरूरी तिथियाें, ऐतिहासिक घटनाक्रम, लोकेशन आदि के बारे में पता करना होता है।

डायरेक्टर ः इसी के दिशानिर्देश में पूरी फिल्म की शूटिंग होती है। स्क्रिप्ट को जरूरत के हिसाब से बदलने, एक्टर व कैमरामैन को गाइड करने, कोरियोग्राफी तथा वॉयस रिकॉर्डिंग की मॉनिटरिंग करने जैसे सभी कार्य इसी की देखरेख में होते हैं। 

असिस्टेंट डायरेक्टरः फिल्म की शूटिंग के दौरान आने वाली समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी असिस्टेंट डायरेक्टर की होती है। फिल्म मेंबर एवं कास्ट में को-ऑर्डिनेशन बनाना भी इसका काम होता है।

लाइटिंग एवं कैमरामैनः सिनेमैटोग्राफर कैमरा एवं लाइट के प्रति जिम्मेदार होता है। सेट्स एवं एंगल के हिसाब से लाइट अरेंज करना इसी का काम होता है। इसके सदस्यों में कैमरा ऑपरेटर, कैमरा असिस्टेंट, क्लैप ब्वॉय आदि होते हैं।

साउंड प्रोफेशनल्सः साउंड टीम का कार्य म्यूजिक एवं वॉयस का काम देखना होता है। माइक्रोफोन का प्रयोग, डबिंग मिक्सर, डायलॉग की रिकॉर्डिंग आदि भी इसी के कार्यक्षेत्र में आते हैं। 

एडिटरः शूटिंग मैटेरियल को सही तरीके से फ्रेम में सजाना ही एडिटर का काम होता है। अपनी दक्षता से वह खराब शॉट्स को भी शानदार बना सकता है।

स्क्रीनप्ले राइटरः स्क्रीनप्ले राइटर फिल्म की मांग व फ्रेम के मुताबिक मूल स्टोरी में परिवर्तन करता है या दोबारा 
लिखता है। 

एक्टरः एक एक्टर के अंदर पूरी फिल्म को रिप्रजेंट करने का कौशल होना चाहिए। उसे शारीरिक रूप से फिट, आकर्षक और संवाद अदायगी में निपुण होना चाहिए।

एनिमेटरः एनिमेटर अपनी ड्राइंग स्किल्स का प्रयोग कर मूविंग इमेज एवं इफेक्ट तैयार कर फिल्म अथवा किसी कॉमर्शियल का निर्माण करता है। 

कोरियोग्राफरः कलाकरों को डांस की बारीकियां सिखाने तथा गाने के अनुसार उनसे नृत्य कराने के लिए कोरियोग्राफर ही जिम्मेदार होता है।

स्किल्स दिलाएगी सफलता
यदि आप एक्टिंग, डायरेक्शन, लेखन आदि का शौक रखते हैं तो आपको क्रिएटिव बनना पड़ेगा, जबकि सिनेमैटोग्राफी, साउंड इंजीनियरिंग, एडिटिंग आदि के लिए टेक्निकल ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। 

जॉब की बेहतर संभावनाएं
कोर्स अथवा अनुभव के पश्चात अभ्यर्थी को फिल्म स्टूडियो, प्रोडक्शन कंपनी, एडवरटाइजिंग एजेंसी और उन सरकारी विभागों में जॉब मिल सकता है, जहां 
फिल्में बनती हैं। प्रोफेशनल्स अनुभव के पश्चात चाहें तो अपना काम भी शुरू कर सकते हैं।

मिलने वाला पारिश्रमिक
इसमें आमदनी काम की क्षमता और अनुभव के आधार पर होती है। अनुभव के बाद आप अपना स्टूडियो या प्रोडक्शन हाउस खोलते हैं तो आमदनी की कोई सीमा नहीं होती(अमर उजाला,17.8.11)।

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