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13 अगस्त 2011

केरलःअगड़ी जातियों को आरक्षण के फैसले की समीक्षा होगी

उच्चतम न्यायालय ने आर्थिक दृष्टि से बदहाल अगड़ी जातियों को दस फीसदी आरक्षण देने के केरल सरकार की व्यवस्था की समीक्षा करने का फैसला किया है। कई संगठनों द्वारा केरल सरकार के इस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान शुक्रवार को शीर्ष न्यायालय इस मामले पर विचार करने के लिए राजी हुआ। हालांकि प्रारंभिक सुनवाई के बाद जस्टिस जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली बेंच के सदस्य जस्टिस एचएल दत्तू ने मामले से खुद को अलग रखने का फैसला किया। इसके बाद मामले की सुनवाई टाल दी गई। केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में केरल मुस्लिम जमात काउंसिल, क्रिश्चियन सर्विस सोसायटी और कुछ अन्य संगठनों की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी थी। यह फैसला सुनाए जाने के वक्त जस्टिस दत्तू केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे इसलिए उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद जस्टिस सिंघवी ने मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया। इन संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस सिंघवी ने जमात से पूछा कि केरल सरकार के फैसले से उन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा? संगठन के वकील ईएमएस अनाम ने कहा कि राज्य सरकार ने सिर्फ अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़ों को इस कोटे का लाभ देने का फैसला किया है, जबकि अन्य समुदायों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि अगड़ी जातियों को आरक्षण को लाभ असंवैधानिक है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 15(4) के अनुसार आरक्षण का लाभ सिर्फ सामाजिक भेदभाव के शिकार समुदायों को दिया जाता है। हालांकि संगठन ने यह भी कहा कि अगर अगड़ी जातियों के गरीबों को कोटा व्यवस्था के तहत लाया भी जाता है तो यह लाभ एकसमान तौर पर सभी समुदायों के गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वालों को दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि केरल की पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार ने 2008 में अगड़ी जातियों के लिए इस आरक्षण को लागू किया था। आश्चर्यजनक रूप से राज्य की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भी इस फैसले का समर्थन किया है। राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता रमेश बाबू ने अगड़ी जातियों को आरक्षण के समर्थन में पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले अन्य संगठनों की राय भी जानी(दैनिक जागरण,दिल्ली,13.8.11)।

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