आयुर्वेद विभाग में डाक्टरों की बल्ले-बल्ले होने जा रही है। तदर्थ रूप में 18 से 20 वर्ष की उनकी सेवा को नियमित मानते हुए उन्हें समयमान वेतनमान का लाभ दिया जा रहा है। इसके तहत 8 और 14 वर्ष की सेवा के बाद से उन्हें प्रोन्नत वेतनमान दिया जाएगा। इससे सरकार पर एरियर के रूप में करीब 50 लाख रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसका लाभ केवल उन डाक्टरों को मिलेगा, जो कि उत्तर प्रदेश के दौरान तदर्थ भर्ती हुए थे। ऐसे डाक्टरों की संख्या सौ से अधिक बताई जा रही है। उत्तर प्रदेश के समय वर्ष 1986, 1988 व 1992 में आयुष विभाग में डाक्टरों की भर्ती हुई थी। इन सभी को तदर्थ नियुक्तियां दी गई, लेकिन ये सभी डाक्टर राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में वर्ष 2006 में नियमित हुए। इनकी ओर से तदर्थ नियुक्ति को नियमित मानते हुए समयमान वेतनमान दिए जाने की मांग की जा रही थी। इसके तहत 8 व 14 वर्ष की सेवा के उपरांत प्रोन्नत वेतनमान दिया जाना है। शासन की ओर से तदर्थ सेवा को नियमित सेवा न मानते हुए समयमान वेतनमान न दिए जाने की बात कही गई। इसको लेकर डाक्टर वर्ष 2008 में उच्च न्यायालय की शरण में गए। इसी बीच उत्तर प्रदेश ने 30 जून 2010 को अपने यहां तदर्थ सेवा को नियमित मानते हुए डाक्टरों को समयमान वेतनमान लागू कर दिया। इसी वर्ष कोर्ट ने भी डाक्टरों को राहत देते हुए मार्च 2011 को तदर्थ सेवा को नियमित सेवा में शामिल करते हुए समयमान वेतनमान का लाभ दिए जाने के निर्देश दिए। इस संबंध में प्रमुख सचिव आयुष राजीव गुप्ता की ओर से इन डाक्टरों को समयमान वेतनमान का लाभ दिए जाने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं, जिसमें कहा गया कि इन डाक्टरों के विनियमितीकरण के उपरांत समस्त तदर्थ रूप से की गई संतोषजनक सेवा को नियमित मानते हुए 8 और 14 वर्ष पर वैयक्तिक, प्रोन्नत वेतनमान अनुमन्य हो जाएगा। इसका लाभ आयुव्रेदिक एवं यूनानी चिकित्साधिकारी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात चिकित्सा अधिकारियों को दिया जाएगा। आयुर्वेदिक चिकित्सा संघ के महासचिव डा. केएस असवाल ने बताया कि इसके लिए लंबे समय से संघर्ष किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ डाक्टर सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,10.8.11)।
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