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01 अगस्त 2011

डीयूःदयाल सिंह कॉलेज में रैंगिंग की शिकायत, नहीं मिली शिकायतकर्ता

‘सर मेरी रैगिंग हो रही है।’ एक छात्रा की फोन पर यह वाक्य सुनते ही दिल्ली विविद्यालय के साउथ कैम्पस नियंतण्रकक्ष में हड़कम्प मच गया। कक्ष ने इसकी जानकारी तुरंत कॉलेज को दी। कॉलेज की टीम ने घंटों कॉलेज के चप्पे- चप्पे को छान मारा, लेकिन शिकायतकर्ता नहीं मिली। दिक्कत यह थी कि फोन करने वाली छात्रा डीयू अधिकारियों को अपना फोन नंबर देने से पहले ही फोन काट दिया। इस कारण उसे ढूंढ़ा नहीं जा सका। मामला साउथ कैम्पस के दयाल सिंह कॉलेज प्रात: का है। दिल्ली विविद्यालय का शैक्षणिक सत्र 2011-12 शुरू होने के बाद अभी तक रैंगिंग को लेकर दो ही शिकायतें डीयू तक पहुंची है। जिसमें से एक शिकायत दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स की है। इस शिकायत में शिकायतकर्ता का पता नहीं लग पाया। प्राथमिक जांच में शिकायत फर्जी निकली है। लेकिन फिलहाल इस मामले में शिकायतकर्ता का पता लगाने के लिए कॉलेज प्रशासन ने इसकी जांच पुलिस से करवाने के लिए पत्र लिखा है। अब एक अन्य मामले में एक छात्रा ने साउथ कैम्पस के रैंगिंग हेल्पलाइन पर फोन कर कहा है कि सर मेरी रैगिंग हो रही है। इसके बाद छात्रा से यह पूछा गया कि वह अपना नंबर बताये। लेकिन नंबर बताने से पहले ही छात्रा ने फोन काट दिया। छात्रा ने यह शिकायत करते हुए दयाल सिंह कॉलेज का नाम लिया। डीयू के डिप्टी डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर डॉ दिनेश वाष्ण्रेय ने कहा कि यह शिकायत मिलने के बाद वे पूरी टीम को लेकर कॉलेज पहुंच गये। उन्होंने कॉलेज का चप्पा-चप्पा छान मारा। सभी क्लासों में गये। यहां तक कॉलेज की छत पर भी गये। शिकायत मीना(काल्पनिक नाम) के एक छात्रा ने किया था। कॉलेज पहुंच कर इस सत्र में जिसमें भी दाखिले हुए उनके नाम देखे गये। लेकिन इस नाम की कोई छात्रा नहीं मिली। हार थक कर टीम वापस लौट गई। डॉ वार्ष्णेय ने कहा कि यदि छात्रा अपना नंबर बताती तो यह पता लग जाता कि किसने शिकायत की है। उन्होंने कहा कि छात्रा ने यह भी नहीं बताया कि उसकी क्या रैंगिंग हो रही है, कौन उसकी रैगिंग कर रहा है और वह कहां है। कॉलेज के प्राचार्य डॉ आईएस बख्शी ने बताया कि उन्हें साउथ कैम्पस से फोन आया था कि कॉलेज से किसी छात्रा ने रैगिंग की शिकायत की है। डॉ बख्शी ने कहा कि हमने कालेज का कोना-कोना देखा, लेकिन कहीं वह छात्रा नहीं मिली। कैंटीन में भी ढूंढ़ा गया लेकिन छात्रा का कोई अता-पता नहीं चला(राकेश नाथ,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,1.8.11)।

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