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19 अगस्त 2011

डॉक्टरों को लगी प्राइवेट प्रैक्टिस की लत

ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा की बदतर हालत को स्वीकार करते हुए सरकार ने गुरुवार को बेहद लाचारगी के साथ कहा कि तमाम रियायतों की पेशकश किए जाने के बावजूद डाक्टर गांव में जाने को तैयार नहीं हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को लोकसभा में भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद संशोधन विधेयक 2011 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा, दुर्भाग्य से डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की लत लग गई है। यह एक बीमारी सी हो गई है। डॉक्टर गांवों में जाने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि गांव में पैसा मिलता नहीं है। पैसा शहरों में मिलता है। इन लोगों को कोई भी रियायत दे दीजिए, लेकिन ये (डॉक्टर) गांव में जाने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को गांवों में चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में प्रेरित करने के लिए कई योजनाएं बनाईं लेकिन उस पर भी कोई गांव जाने को तैयार नहीं है। आजाद ने कहा कि एमबीबीएस करने वाले छात्रों को ग्रामीण क्षेत्र में सेवा करने पर एमडी में दस फीसदी की छूट दिए जाने तक का भी प्रस्ताव रखा लेकिन डेढ़ साल बीत चुका है खुदा का एक भी बंदा इसके लिए तैयार नहीं हुआ। लोग पैसा देकर दाखिला लेने को तैयार हैं लेकिन एक साल गांव में सेवा करके यह लाभ पाने को नहीं। उन्होंने कहा, गांव तो छोडि़ए, केंद्रीय चिकित्सा संस्थानों में पढ़ाई पूरी करने वाले डॉक्टर अपने राज्यों तक में जाने को तैयार नहंी हैं। आजाद ने एमसीआइ के स्थान पर विधेयक के जरिये स्थापित की जाने वाली नई इकाई के पदाधिकारियों के बारे में सवाल उठाए जाने पर भ्रम की स्थिति स्पष्ट करते हुए सभी पदाधिकारियों की शैक्षणिक योग्यता का ब्योरा दिया और सदस्यों से अपील की बिना तथ्यों की पड़ताल किए आरोप लगाने की प्रवृति से बचा जाना चाहिए। नई इकाई के अधिकतर पदाधिकारी पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसी उपाधियों से सम्मानित हैं। आजाद ने दावा किया कि पिछले 65 साल में हर साल 5-6 मेडिकल कालेज खोलने का चलन रहा है लेकिन पहली बार उन्होंने पिछले तीन साल में 40 नए मेडिकल कालेज खोले। इसी प्रकार पिछले तीन साल में कालेजों में एमडी की सीटों को आठ हजार बढ़ाकर 32 से 41 हजार किया गया। अगले पांच साल में उन्होंने इन सीटों को 15 हजार और बढ़ाने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि मेडिकल कालेजों में फैकल्टी की कमी एक गंभीर समस्या है और उससे निपटने के लिए सेवानिवृत्ति आयु सीमा को 65 वर्ष कर दिया गया है। जिन राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में जहां फैकल्टी की भारी कमी है वहां राज्य सरकारों ने आयु सीमा को नहीं बढ़ाया है(दैनिक जागरण,दिल्ली,19.8.11)।

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