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20 अक्तूबर 2011

गुम हो गया लय में ‘ककहरा’ गाने का रिवाज

तकनीकी युग के इस आधुनिकतम दौर में शिक्षा पाठ्यक्रम, शैक्षणिक संस्थानों के स्वरूप और छात्र-छात्राओं के रहन-सहन पहनावे में तो आमूल-चूल परिवर्तन हुआ ही है साथ ही प्राथमिक स्कूलों के नौनिहालों की पठन-पाठन पद्धति भी पूर्णरूपेण बदल चुकी है। प्राइमरी स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों को सिखाने की लोकप्रिय समूह गायन पद्धति लगभग लुप्तप्राय हो गई है। आमने-सामने दो पंक्तियों में खड़े होकर ‘एकम-एका…..दोकम-दुआ…..नौ की नवाही…..दस की दहाई और अंत में नब्बे नौ निन्यानवे …..टेकड़ा पे बिन्दी दो, गिने गिनाए पूरे सौ…’ की गूंज स्कूलों से नदारद है। इसी पद्धति में ”दो दूनी चार… उन्नीस पांच पिचानवे” गाकर पहाड़े और क, ख, ग, घ, ड., खाती खिड़की ना घड़ै’ गाकर ‘ककहरा’ सीखने का तरीका पुराने जमाने की बात हो गई है।
इसी प्रकार लकड़ी की तख्ती (पट्ïटी या पटरी) को मुलतानी मिट्टी से पोतकर ‘झुंडे’ के सरकंडे (फंटा) से बनाई गई कलम से टाट पर बैठ कर काली स्याही की दवात में डुबो-डुबो कर तख्ती पर अध्यापकों द्वारा पैंसिल से बनाये गये ‘कटकणों’ (रेखाएं) के ऊपर से फिरा-फिरा कर सीखने की कला और पत्थर की स्लेट पर चूने से निर्मित ‘बत्ती’ (स्लेटी) से लिख-लिख और मिटाने की पद्धति सुनकर आधुनिक बच्चे खिलखिला पड़ते हैं।
किसी दिन ‘सिसिस’ मध्य अवकाश जिसे ‘तफरी’ भी कहा जाता था कि घंटी बजाने में देर हो जाती तो मासूमों के लोकप्रिय सामूहिक गान की गगनचुम्बी गूंज— ‘बारहा बजगे… बारहा बजगे…’ ऊपर बजग्या एक; मास्टरां नै छुट्टी न दी भूखा मरग्या पेट’ अध्यापकों को अपनी भूल का अहसास कराता हुआ संपूर्ण वातावरण में मुस्कान बिखेरता प्रतीत होता था। यद्यपि समयानुसार पठन-पाठन की पद्धति समय की मांग है, किन्तु पौराणिक गायन पद्धति (पाठन) का अपना अलग ही महत्व था(रामनिवास सुरेहली,दैनिक ट्रिब्यून,5.10.11)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. रचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
    संग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |

    शुक्रवारीय चर्चा मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. do ekam do do dooni char .aapne to bachpan yaad dila diya wese meri poori shiksh is dhang se nahi hui par pap ki hui thi to jab wo padhate the ase hi padhte the...do ekam do do dooni char,and x ,y wale maths ke sum sikhate the sare ghode ek taraf sare gadhe ek taraf rakho ab bhi yaad hai sab...dhanyawad

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