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19 अक्तूबर 2011

अंकों का ग्रेड बुद्धिमत्ता का पैमाना नहीं

माउंट एवरेस्ट फतह करने की दूसरी नाकाम कोशिश के दौरान एडमंड हिलेरी ने कहा था, ‘मैं दोबारा आऊंगा और जीतूंगा। मैं इसलिए जीतूंगा क्योंकि तुम एक पर्वत हो। तुम बढ़ नहीं सकते लेकिन मैं एक व्यक्ति हूं, मैं निरंतर बढ़ सकता हूं।’
यह जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति किसी काम को बेहतर ढंग से शुरू करे और उसे उतने ही अच्छे ढंग से समाप्त करे। एक माता-पिता होने के नाते आप इस वक्तव्य को गंभीरता से लें, हो सकता है कि इससे आपका बच्चा पूरी तरह से बदल जाये। आप जिस तरह से अपने बच्चों की परवरिश कर रहे हैं हो सकता है कि वह तरीका सही न हो। हो सकता है इससे आपको एक नयी दिशा का ज्ञान हो। क्या ऐसा है कि आप अपने बच्चों के हर माह होने वाले टेस्ट में उसकी परफोर्मेंस को बहुज ज्यादा महत्व देते हैं? वह परीक्षा में कितने अंक हासिल करता है? उसे कौन-सा ग्रेड मिलता है? आप इसे लेकर अति सशंकित रहते हैं? इसकी बजाय आप अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करें। इस संदेश को याद रखें कि बच्चे जैसे बड़े होते हैं उनकी कक्षा बढ़ती है, उनका स्तर बढ़ता है। इस सबके साथ उनका पाठ्यक्रम भी कठिन से कठिनतर होता रहता है। दूसरे अभिभावकों की तरह आप भी बच्चों के ग्रेड और उनके अंकों के आधार पर बच्चों का भविष्य निर्धारित करने का प्रयास करते हैं। हकीकत यह है कि बच्चों का भविष्य उसकी मन:स्थिति के ऊपर निर्भर करता है। बच्चों की मन:स्थिति को विकसित करने, उसे सही दिशा देने के लिए आप एक सशक्त भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कैरोल वेक का कहना है कि जरूरी नहीं है जो बच्चा परीक्षाओं में बेहतर अंक हासिल करे उसका मानसिक विकास भी उसी के अनुरूप हो या कम अंक हासिल करने वाला बच्चा जीवन में असफल रहेगा। क्योंकि मानसिक विकास कोई स्थिर चीज नहीं है। यह लगातार विकसित होती है। इसलिए दुनिया के तमाम महान लोग बचपन से कम बुद्धि का प्रदर्शन करने के बावजूद बाद के जीवन में इतिहास रचने में सफल रहे। अल्बर्ट आइंस्टाइन, चाल्र्स डार्विन, लियो टॉलस्टॉय, महात्मा गांधी ये तमाम ऐसी हस्तियां हैं जिन्हें पूरी दुनिया में प्रसिद्धि मिली। ये सभी बचपन में प्रखर छात्रों में से नहीं थे। लेकिन बाद में इन्होंने न सिर्फ अपनी बुद्धिमत्ता बल्कि कल्पनाशीलता का भी लोहा मनवाया और दुनिया की सर्वकालीन महान व्यक्तित्वों की सूची का हिस्सा बनें।
सवाल है निरंतर विकसित होने वाली मन:स्थिति को कैसे हासिल करें। मान लीजिए हममें कोई गुण, योग्यता, क्षमता, बुद्धि, कौशल नहीं है तो हम ये सभी गुण व कौशल निरंतर अभ्यास के जरिये हासिल कर सकते हैं। अंग्रेजी की एक प्रसिद्ध कहावत है, ‘मैन कैन डू व्हॉट मैन कैन डू’ यानी आदमी वह सब कर सकता है जो कोई भी आदमी कर सकता है। कठिन परिश्रम और लगन ही हमें इन तमाम योग्यताओं को हासिल करने का रास्ता दिखाती है। संबंधित अध्ययन इस बात की ओर इशारा करता है कि जो बच्चे अपनी योग्यता और प्रखरता के चलते दूसरों की तारीफ का विषय बनते हैं, उनकी योग्यता उन बच्चों से ज्यादा होती है जो बच्चे उनकी तुलना में कम स्मार्ट होते हैं।
जीवन की राहों में आने वाली समस्याएं बच्चों द्वारा की जाने वाली गलतियां, कम अंक हासिल करना ये सब बातें बच्चों के जीवन का एक हिस्सा होती हैं। इन्हें बच्चों की असफलता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इसका यह भी मतलब नहीं है कि आप उन्हें लगातार आगे बढऩे की ओर प्रेरित न करें। उनकी जीवन दृष्टि को एक नयी दिशा देने का प्रयास करें। उन्हें अपनी चीजों को बेहतर ढंग से करने और जीवन के अन्य क्षेत्रों में बेहतर करने के लिए प्रेरित करें।
बच्चों को अपने मस्तिष्क को निरंतर विकसित करने की ओर प्रेरित करें उनके द्वारा की जाने वाली अच्छी बातों की तारीफ करें। उनके भीतर की जिज्ञासा का समाधान करें। उनके मस्तिष्क में उठने वाले हर सवाल का जवाब दें। उन्हें समझाएं कि जीवन में की जाने वाली हर गतिविधि प्रयोगात्मक होगी। उन्हें जीवन की चुनौतियों से जूझने के लिए स्वयं प्रयोग करने दें। वह अपने अनुभवों से ज्यादा जल्दी सीखते हैं। माता-पिता होने के नाते बच्चों की असफलताओं को सफलताओं में बदलने का प्रयास करें।
इस बात को हमेशा याद रखें कि परीक्षा में सिर्फ अच्छे अंक लाना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इससे सीखने का महत्व ज्यादा है। याद रखें हर बच्चा अलग-अलग ढंग से प्रेरित होता है। उसके भीतर ऊर्जा का संचरण भी अलग प्रकार से होता है। कुछ बच्चे स्कूल में बेहतर ढंग से परफॉर्म करते हैं। कुछ बच्चे स्कूली शिक्षा के बाद अच्छे ढंग से अपने को बना पाते हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो करिअर बनाने के बाद बेहतर तरीके से परफॉर्म करते हैं। याद रखें विकसित मन:स्थिति इस तथ्य पर आधारित होती है कि आपको योग्यता, शक्ति और क्षमता केवल प्रयासों और प्रेरणा से ही अच्छी बन सकती है। इस धुन में लगातार लगे रहना और अपने को इसी का दास बना लेना विकसित मन:स्थिति का हॉलमार्क बन जाता है। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, ‘केवल मैं स्मार्ट हूं ऐसा नहीं है। मेरी स्मार्टनेस सिर्फ और सिर्फ यही है कि मैं किसी भी समस्या को लगातार सुलझाने में लगा रहता हूं।’(नीलम अरोड़ा,दैनिक ट्रिब्यून,12.10.11)

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