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13 अक्तूबर 2011

राजस्थानःस्थाई व्याख्याताओं को भी पेंशन देने का यूनिवर्सिटी को निर्देश

हाईकोर्ट ने राजस्थान यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया है कि वह तदर्थ/ अस्थाई आधार पर नियुक्त हुए व्याख्याताओं को भी पेंशन योजना 1-990 के सभी पेंशन परिलाभ दे। मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश बेला एम.त्रिवेदी की खंडपीठ ने यह आदेश यूनिवर्सिटी की अपील खारिज करते हुए दिया।

खंडपीठ ने कहा कि यूनिवर्सिटी ने अवैध तरीके से पेंशन को रोका है जबकि वह व्याख्याताओं को पेंशन योजना का लाभ देने से इंकार नहीं कर सकती। लिहाजा जिन व्याख्याताओं ने 2008 से पहले दस साल की सेवा पूरी कर ली हो उन्हें पेंशन के सभी परिलाभ दिए जाएं।

इस मामले में यूनिवर्सिटी ने एकलपीठ के फरवरी 2011 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें व्याख्याता प्रेमलता अग्रवाल को यूनिवर्सिटी पेंशन योजना 1990 के तहत पेंशन परिलाभ देने का निर्देश दिया था।

यूनिवर्सिटी ने अपील में कहा कि प्रार्थिया की नियुक्ति नियमित नहीं थी बल्कि तदर्थ आधार पर हुई थी, ऐसे में वह पेंशन प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। गौरतलब है कि अदालत के इस आदेश से यूनिवर्सिटी के करीब तीन सौ व्याख्याताओं की पेंशन प्रभावित होगी।
 
आदेश के मायने
यूनिवर्सिटी में 1984 से 2008 तक व्याख्याता पद पर कोई नियमित नियुक्तियां नहीं हुईं। ऐसे में यदि कोई व्याख्याता 2008 से पहले यूनिवर्सिटी से रिटायर हुआ है और उन्होंने दस साल की सेवा पूरी की है तो वे भी हाईकोर्ट के इस आदेश से पेंशन व अन्य परिलाभ प्राप्त करने के अधिकारी होंगे-नीरज कुमार भट्ट, अधिवक्ता राजस्थान हाईकोर्ट

यह है मामला
प्रेमलता अग्रवाल की नियुक्ति1981 में तदर्थ आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर (कैमिस्ट्री) पद पर हुई। उन्हें नियमित वेतनमान व अन्य सेवा परिलाभ दिए गए और सीपीएफ काटा गया, 1990 में यूनिवर्सिटी की पेंशन योजना लागू हुई और उनसे पेंशन योजना में जाने या सीपीएफ में ही रहने के संबंध में विकल्प मांगा गया।
उन्होंने पेंशन योजना का विकल्प लिया और यूनिवर्सिटी ने अपना अंशदान पेंशन योजना में भेजना शुरू कर दिया। बीस साल सेवा के बाद 2001 में जब वह रिटायर हुईं तो यूनिवर्सिटी ने उन्हें पेंशन देने से मना कर दिया कि वह नियमित कर्मचारी नहीं हैं और उन्हें केवल उनका अंशदान ही दिया।

उन्होंने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी कि सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी के मामले में दस साल सेवा करने वाले कर्मचारी को नियमित माना है, ऐसे में 20 साल सेवा करने के बाद भी यूनिवर्सिटी उन्हें नियमित नहीं होने के कारण ही पेंशन परिलाभ देने से इंकार नहीं कर सकती(दैनिक भास्कर,जयपुर,13.10.11)।

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