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17 दिसंबर 2011

बिहार में मुस्लिम आरक्षणःआधी आबादी है गरीबी रेखा से नीचे

बिहार में आधी से अधिक मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करती है। सियासी दलों ने हमेशा मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए लंबे-चौड़े वादे किए लेकिन धरातल पर काम नहीं हुए । गरीबी के कारण मुसलमानों में पलायन भी अधिक हो रहा है। तीन में से दो मुस्लिम परिवार का कोई न कोई व्यक्ति रोजगार के लिए दूसरे प्रांतों में जाता रहा है। मुसलमानों की ८५ फीसदी आबादी गांवों में रहती हैं जहां हालात और बदतर हैं। शिक्षा का स्तर भी नीचे है। मुसलमानों में साक्षरता चालीस फीसदी से कम है। यादव और मुसलमानों के गठजोड़ के बूते लालू प्रसाद यादव १५ साल तक बिहार की सत्ता में रहे लेकिन अल्पसंख्यों को सरकारी योजनाओं का भी फायदा नहीं मिल सका। यही कारण है कि मुस्लिम वोट बैंक लालू से बिदका और अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ है। बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीच्यूट (आद्री )के सर्वे के मुताबिक गांवों में ६३ फीसदी और शहरों में २४ प्रतिशत मुस्लिम आबादी रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांतों में पलायन को मजबूर रही है। बिहार में मुसलमानों की ४३ जातियां हैं जिनमें शेख, सैयद, पठान और मलिक ऊंची जातियों में शुमार हैं। अंसारी मध्यम जाति में आती है जबकि ३८ मुस्लिम जातियां अति पिछड़े और पिछड़ों की सूची में हैं। गांवों में ४९.५ और शहरों में ४४.८ प्रतिशत मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। इनमें से १९.९ प्रतिशत मुसलमान बहुत गरीब हैं। भूमिहीन मुसलमान मजदूरों का प्रतिशत २८.४ है । चालीस फीसदी मुस्लिम आबादी कर्ज में डूबी है। मुस्लिम व्यवसायी कम आमदनी वाले धंधों में हैं। राजद के शासनकाल में ५.८ प्रतिशत मुस्लिम आबादी को भी सरकारी योजनाओं का फायदा मिला । सिर्फ चार प्रतिशत मुसलमान इंदिरा आवास योजना में मकान ले सके। रोजगार के लिए पलायन करने वाले मुसलमान युवकों की औसत आयु २८ साल होती है। सीवान और गोपालगंज की चालीस फीसदी मुस्लिम आबादी खाड़ी देशो ंमें रोजगार के लिए जाती है। दूसरे प्रांतों में पलायन किए मुसलमान अपने परिवारों को औसतम डेढ़ हजार रुपए प्रतिमाह भेजते हैं। मुसलमानों को सियासत में भी खास तवज्जो नहीं मिल पाई है। लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी विधानसभा की ६० सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करती है लेकिन विधानसभा में २४३ सीटों में से मुसलमानों की संख्या सिर्फ १७ है । इसी तरह तीन एमएलसी, तीन लोकसभा सदस्य और तीन राज्यसभा सदस्य इस समुदाय से हैं। भाजपा आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करती रही है लेकिन ओबीसी तथा एससी -एसटी आरक्षण के भी पक्ष में रही है। जदयू, राजद और लोजपा मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने के हक में हैं। लोजपा निजी क्षेत्रों में भी मुसलमानों के आरक्षण की पक्षधर है । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के कोटे में शामिल करने की वकालत करते रहे हैं। कांग्रेस भी इसकी वकालत करने लगी है । बिहार में मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे के तहत आरक्षण का फायदा मिलता रहा है। इनमें मुसलमानों की ३५ जातियां शामिल हैं। बिहार में पिछड़ों को १२ और अतिपिछड़ों को १८ फीसदी आरक्षण मिलता है। पिछड़े मुसलमान इसी श्रेणी में फायदे लेते हैं। राज्य में ओबीसी में मुसलमान पहले से शामिल हैं इसलिए ताजा राष्ट्रीय विवाद से कोई खास उथल-पुथल नहीं है। पिछड़ा वर्ग अपने कोटे में से मुसलमानों को आरक्षण पर पहले आंदोलित था लेकिन अब इसपर लगभग स्वीकार्यता की स्थिति है। मुसलमानों को आरक्षण से सबसे अधिक फायदा राजद के लालू यादव को मिला था लेकिन अब मुसलमानों का उनसे मोहभंग हो चुका है । कांग्रेस अब तक मुसलमानों को प्रभावित करने में असफल रही है । नीतीश के साथ होने के कारण बिहार में भाजपा को भी कई क्षेत्रों में मुसलमानों का समर्थन मिला है । पसमांदा मुसलमान राज्यसभा सांसद अली अनवर के नेतृत्व में आरक्षण कोटा बढ़ाने और निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलनरत रहे हैं(राघवेन्द्र नारायण मिश्र,नई दुनिया,11.12.11)

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