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18 दिसंबर 2011

उत्तराखंडःअच्छे नहीं हैं अल्पसंख्यकों के हालात

उत्तराखंड की कुल आबादी का लगभग १५ प्रतिशत होने के बावजूद भी राज्य में अल्पसंख्यक पूरी तरह से हासिए पर हैं। राज्य गठन के दस साल बाद भी प्रदेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर सकारात्मक प्रयास शुरू नहीं हो पाए हैं। २००१ की जनगणना के मुताबिक राज्य में १०.१२ लाख मुस्लिम ,२.१२ लाख सिख, २७ हजार ईसाई, ९ हजार जैन व १३ हजार अन्य धर्मों के अल्पसंख्यक लोग निवास करते हैं। इतनी ब़ड़ी संख्या के बावजूद भी राज्य में न तो अल्पसंख्यकों के लिए आने वाली योजनाओं का क्रियान्वयन ही सही तरीके से हो पाता है और न ही राज्य अब तक अल्पसंख्यकों के सवाल पर कोई नई योजना प्रस्तुत कर पाया है। राज्य में कुल आबादी का १२ प्रतिशत मुस्लिम और २ प्रतिशत से अधिक सिख निवास करते हैं। राज्य में अल्पसंख्यकों की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की साक्षरता दर ८९ प्रतिशत होने के बावजूद मुस्लिमों की साक्षरता दर केवल ५५ प्रतिशत ही है। यहां तक कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद बनी परियोजनाओं का लाभ भी उत्तराखंड के मुस्लिमों को नहीं मिल पाया है। इस रिपोर्ट के बाद बनी केंद्र की योजना जिसमें ९० प्रतिशत मुस्लिम बहुल जिलों के विकास के लिए धन दिया जाना था उत्तराखंड के हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जिलों का चयन किया गया लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही के कारण इस योजना में मिला धन लैप्स हो गया। प्रदेश के मुसलमानों को शिकायत है कि सरकारें उनकी सुनती नहीं हैं। उत्तराखंड में मुसलमान पूर्व घोषित उर्दू शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने, राज्य में उर्दू अकादमी खोलने, सच्चर कमेटी की सिफारिशें लागू करने अरबी - फारसी मदरसा बोर्ड बनाने वक्फ विकास निगम को पुनर्जीवित करने व प्रदेश भर में फैली वक्फ संपत्तियों पर से अवैध कब्जे हटाने की मांग लंबे समय से करते रहे हैं लेकिन अभी तक यह मांगें पूरी नहीं हो पाई हैं। तंजीम रहनुमा- ए-मिल्लत के केंद्रीय अध्यक्ष लताफत हुसैन का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद मुसलमानों के मुद्दों को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। भाजपा सरकार द्वारा मुस्लिमों के मुद्दों को नजरअंदाज करने की बानगी यह है कि २००७ में सरकार गठन के बावजूद वक्फ बोर्ड के गठन को चार साल लटकाए रखने के बाद २०१० में बोर्ड का गठन किया गया लेकिन उसमें सरकार ने अध्यक्ष के रूप में भाजपा नेता राव सराफत अली को बैठा दिया गया। वक्फ बोर्ड अध्यक्ष पर इस दौरान बोर्ड की संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने, कलियर स्थित पिरान शरीफ की संपत्ति में हेरफेर करने जैसे संगीन आरोपों के चलते मुकदमे तक दर्ज हो चुके हैं। यहां तक कि अक्टूबर २०११ में बोर्ड के ११ में से आठ सदस्यों ने उनके खिलाफ एकजुट होकर प्रस्ताव तक पारित कर सरकार को अवगत करा दिया है लेकिन सरकार ने अब तक राव सराफत को वक्फ बोर्ड से हटाया नहीं है। राज्य में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की मौजूदा कीमत ७७० अरब लगाई गई है लेकिन बोर्ड के पास अपना कार्यालय खोलने के लिए भी मकान नहीं हैं। बोर्ड का कार्यालय १६ हजार प्रतिमाह के किराए पर चल रहा है। इसी तरह हज कमेटी पर भी हज को जाने वाले लोगों से कुर्रम पर्ची के नाम पर वसूली के आरोप हैं(महेश पाण्डे/ प्रवीन कुमार भट्ट,नई दुनिया,11.12.11) ।

1 टिप्पणी:

  1. आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

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