प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने के बाद भी मूल विभाग में न लौटने की शिकायतों को देखते हुए संसदीय समिति ने ऐसे अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। अनचाही नियुक्तियों और दुर्गम इलाकों में जाने से बचने के लिए अफसर प्रतिनियुक्ति की समय सीमा खत्म होने के बाद मूल कैडर या विभाग में नहीं लौटते। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान समेत कई राज्य सरकारें प्रतिनियुक्ति पर गए अफसरों के दिल्ली में ही जमे रहने की शिकायतें लंबे समय से कर रही हैं। कार्मिक, लोक शिकायत, न्याय और विधि मामलों की स्थायी समिति ने प्रतिनियुक्ति के प्रावधानों के बेजा इस्तेमाल पर सख्त ऐतराज जताते हुए इस पर लगाम के कई उपाय सुझाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिनियुक्ति की व्यवस्था कार्मिकों का अनुभव और विभागों में गतिशीलता बढ़ाने के लिए की गई थी। जब अफसर अपने मूल विभाग में लौटता है तो प्रतिनियुक्ति के दौरान सीखी गईं बातों और नए तरीकों को अमल में ला सकता है। साथ ही अफसर जिस विभाग में प्रतिनियुक्ति पर जाता है, वह भी लाभान्वित होता है। लिहाजा, प्रतिनियुक्ति की समयसीमा समाप्त होने के बाद कार्मिक के मूल विभाग में न लौटने का कोई औचित्य नहीं है। समिति ने पाया कि अफसर अनुकूल विभाग या गृह क्षेत्र में नियुक्ति पाने तक केंद्रीय विभागों में प्रतिनियुक्ति से वापस नहीं लौटते। ऐसे मामलों का अंबार है, जहां अधिकारी एक केंद्रीय विभाग से दूसरे में और यहां तक वैधानिक निकायों में
भी जगह तलाश लेते हैं ताकि मूल विभाग में लौटने से बचा जा सके। अगर वे मूल विभाग लौटते भी हैं तो भी सिर्फ कुछ महीनों के लिए। समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मनमाने तरीके से आइपीएस और आइएएस के तबादले पर दिल्ली और गोवा सरकार की नाराजगी का भी उल्लेख किया। यह भी कहा गया कि प्रतिनियुक्ति ऐसे केंद्रीय विभागों या संगठनों में हो जहां डेपुटेशन पर जाने वाले अफसर की योग्यता और अनुभव का इस्तेमाल औचित्यपूर्ण हो। दूसरा, प्रतिनियुक्ति ऐसी तार्किक समयसीमा से अधिक न हो जिसके भीतर केंद्रीय विभाग या संगठन प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अफसर के अनुभव और काबिलियत का फायदा उठा सके। समिति ने कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय से केंद्रीय विभागों में प्रतिनियुक्ति पर गए अफसरों के अनाधिकृत ठहराव पर लगाम लगाने को कहा है(दैनिक जागरण,दिल्ली,4.6.12)।
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