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31 मई 2011

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय:सेल्फ फाइनेंस शिक्षक नहीं करेंगे शिक्षाशास्त्र का मूल्यांकन

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में बीएड संकाय एवं शिक्षाशास्त्र के शिक्षकों के बीच चल रहे विवाद पर विराम लग गया। परीक्षा समिति ने स्ववित्तपोषित कालेजों के बीएड संकाय सदस्यों को शिक्षाशास्त्र के मूल्यांकन से हटा दिया।

शिक्षाशास्त्र का मूल्यांकन बीएड संकाय एवं विषय के शिक्षक कर रहे थे। पिछले सप्ताह दोनो पक्षों में विवाद होने पर बीएड संकाय को मूल्यांकन से रोक दिया गया। इस पर जब बीएड संकाय ने हंगामा किया तो मंगलवार को सीएसजेएमयू प्रशासन ने परीक्षा समिति की आपात बैठक बुलायी। सीएसजेएमयू के प्रति कुलपति प्रो. नंदलाल यादव ने बताया शिक्षाशास्त्र का एक शिक्षक 40 हजार रुपये तक अधिकतम 2650 उत्तरपुस्तिकाओं को जांचेगा। कापियां अधिक हैं, इसलिए आय सीमा 60 हजार रुपये करने का प्रस्ताव शासन को भेजा जायेगा। बीएड संकाय के शिक्षकों के बाबत उन्होंने बताया सिर्फ अनुदानित बीएड कालेज एवं विश्वविद्यालय परिसर के शिक्षक ही कापियां जांचेंगे। इसमें एक शिक्षक को अधिकतम 1500 कापियां ही दी जायेंगी। वहीं बीएड व एलएलबी की कापियों का वही सेल्फ फाइनेंस शिक्षक मूल्यांकन करेंगे जिनके पास पांच साल का अनुभव हो।
सीएसजेएमयू के कार्यवाहक कुलसचिव संजय कुमार ने बताया कि दो जून को संयुक्त प्रवेश परीक्षा बीएड 2011 के चलते विश्वविद्यालय में उत्तर पुस्तिकाओं के केंद्रीय मूल्यांकन का कार्य स्थगित रहेगा(दैनिक जागरण संवाददाता,कानपुर,31.5.11)।

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डीयू का इंफॉर्मेशन बुलेटिन लीजिए मुफ्त में

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में दाखिले से जुड़ी जानकारी अब कोई भी मुफ्त में ले सकेगा। इसके लिए डीयू का इंफॉर्मेशन बुलेटिन खरीदना नहीं पड़ेगा। इसे ऑनलाइन देखा जा सकेगा। डीयू में सोमवार से यह सुविधा शुरू कर दी गई है।


अब तक डीयू का इंफॉर्मेशन बुलेटिन खरीदने के लिए छात्रों को 50 रूपये देने पड़ते थे। डीयू ने इसे ऑनलाइन कर दिया है। डिप्टी डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर गुरप्रीत सिंह टुटेजा ने बताया कि डीयू की नई प्रक्रिया की जानकारी छात्रों तक पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसी छात्र को जानकारी के अभाव में परेशान न होना पड़े। उन्होंने बताया कि इंफॉर्मेशन बुलेटिन को डीयू की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। छात्र डीयू की वेबसाइट www.du.ac से इसे डाउनलोड कर सकते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की जानकारी, दाखिले की तिथियां, कोर्स की जानकारी, कोर्स, दाखिले के समय लगने वाले कागजात, आरक्षण, छूट, माइग्रेशन, हर कॉलेजों द्वारा तय किए गए अतिरिक्त मापदंड, स्कूल ऑफ ओपन लर्निग आदि की जानकारी मिल जाएगी। 
गौरतलब है कि इस साल से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए फॉर्म भरने की व्यवस्था समाप्त करने के बाद भी छात्रों में फॉर्म को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.5.11)।

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रोजगार दिलाने में कारगर हैं डीयू के वोकेशनल कोर्स

पढ़ाई के तुरंत बाद रोजगार की चाहत रखने वाले छात्रों के लिए वोकेशनल स्टडीज कोर्स में दाखिले का विकल्प दिल्ली विवि प्रशासन प्रदान करता है। डीयू में वोकेशनल स्टडीज की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों के लिए कई विकल्प हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज से बीए प्रोग्राम इन वोकेशनल स्टडीज में दाखिले के लिए 12 वीं में कम से कम चालीस फीसदी अंक होने चाहिए। साथ ही दो वोकेशनल और दो एकेडमिक विषय बारहवीं में होने चाहिए। कॉलेज दाखिले के समय उन्हीं वोकेशनल विषय को मान्यता देता है जो उसके यहां पढ़ाए जाते हैं। जिन छात्रों ने बारहवीं में दो कॉमर्स विषय के साथ एक वोकेशनल सब्जेक्ट की पढ़ाई की है उन्हें ही कॉमर्स में दाखिला मिलेगा। बीएसी ऑनर्स कंप्यूटर साइंस में दाखिले के लिए छात्र के गणित विषय में साठ फीसदी अंक हो। इसके अलावा चार विषय में कुल 45 फीसदी अंक होने चाहिए जिसमें से एक गणित, एक लैंग्वेज और दो अन्य विषय हों। जिन छात्रों ने बारहवीं में वोकेशनल सब्जेक्ट की पढ़ाई की है उन्हें बीए वोकेशनल प्रोग्राम में दाखिले के समय पांच फीसदी अंक में छूट दी जाएगी। कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में दाखिले के समय एक्स्ट्रा कुरीकलर में बढ़िया प्रदर्शन करने वाले छात्रों को पांच फीसदी अंक की रियायत दी जाती है। साथ ही नेपाल और भूटान के राजपरिवार के सदस्यों को भी दाखिले के दौरान पांच फीसदी अंकों की छूट दी जाती है। नेत्रहीन छात्रों को दाखिले के दौरान दस फीसदी अंको की छूट दी जाती है। कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में एक बार किसी कोर्स में दाखिला हो जाने के बाद छात्र अपने कोर्स में बदलाव नहीं कर सकते। कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में बीए ऑनर्स इन बिजनेस इकोनॉमिक्स, इकोनॉमिक्स ऑनर्स, इतिहास ऑनर्स, बीए इन ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट, बीए मैनेजमेंट एंड मार्केटिंग ऑफ इंश्योरेंस, बीए मार्केटिंग मैनेजमेंट एंड रिटेल बिजनेस, बीए मैटेरियल मैनेजमेंट, बीए ऑफिस एडमिनिस्ट्रेशन एंड सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस, बीए स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज पढ़ाए जाते हैं(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.5.11)।

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वीर कुंवर सिंह विविःकुलपति के हस्ताक्षर के बगैर पड़ीं हैं 850 डिग्रियां

कुलपति का पावर सीज होने के प्रकरण के लगभग महीना दिन बितने के बावजूद विवि में कुलपति की नियुक्ति न होने से वीर कुंवर सिंह विवि प्रशासन पसोपेश में पड़ता नजर आ रहा है। डिग्री से लेकर फाइल संबंधी मामलों में सभी पदाधिकारी किंकर्त्तव्याविमूढ़ होकर राजभवन के अगले आदेश की ओर टकटकी लगाये है। कुलपति का प्रभार किसी को न मिल पान से जहां विवि का कामकाज पूरी तरह से ठप्प पड़ा है वहीं कई छात्र-छात्राओं की नौकरियां भी दाव पर लगती नजर आ रही है। विभिन्न बैंकों व विभागों द्वारा जारी किये गये साक्षात्कार तिथियां नजदीक आने के साथ हीं उन अभ्यर्थियों पर भी शामत आन पड़ी है जिनकी डिग्रियां कुलपति के हस्ताक्षर के वगैर आलमीरा में हफ्तों से बंद पड़ी है। जून माह के प्रथम सप्ताह में एसएससी, सीपीओ के अलावा लगभग आधा दर्जन बैंकों के क्लर्क व पीओ के साक्षात्कार भी प्रारंभ हो रहे है। लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों मूल प्रमाण पत्र (डिग्री) के लिए आवेदन तो दे डाला लेकिन हस्ताक्षर के वगैर डिग्रियां अब तक छात्रों के पहुंच से दूर है जबकि दो दिनों बाद साक्षात्कार भी प्रारंभ होने वाला है वो तो भला हो विवि के प्रतिकुलपति डा़ तपन कुमार शांडिल्य व परीक्षा नियंत्रक डा़ अनवर इमाम का जिन्होंने आनन फानन में छात्रों को हाथों हाथ प्रोवीजनल सर्टिफिकेट देने का फैसला लिया। विवि द्वारा को दिये गये प्रोविजनल सर्टिफिकेट को ले छात्र-छात्राएं भी सशंकित है कि कहीं साक्षात्कार में सर्टिफिकेट को मान्य ही न माना जाए। कुलपति के हस्ताक्षर के वगैर अज्रेंट व जेनरल माध्यम से लगभग 850 डिग्रियां अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी है। डिग्री संबंधी मामलों में प्रतिकुलपति डा़ तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि राजभवन द्वारा कुलपति की नियुक्ति किये जाने के बाद सबसे पहले छात्र-छात्राओं का डिग्री संबंधी मसला सुलझाया जाएगा। साथ हीं लेबित पड़े फाइलों को भी तेजी से निपटाने का कार्य किया जाएगा(राष्ट्रीय सहारा,आरा,31.5.11)।


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बिहारःक्लास नहीं कराने पर स्कूल को लौटानी होगी पूरी फीस

कोई छात्र किसी स्कूल में नामांकन के बाद एक भी क्लास नहीं करता है और न ही हॉस्टल में रहता है तो उस दशा में स्कूल को पूरी फीस लौटाना होगा। वह सिर्फ जमानत राशि लौटाने की बात नहीं कर सकता है। ऐसा फैसला राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने दिया है। बिहार के उपभोक्ता आयोग ने पटना के केएनपी स्कूल से कहा कि वह बच्चे के पिता डा. ललित कुमार सिंह को बतौर फीस व अन्य मदों में वसूली गयी राशि 22 जहार 25 रुपये नौ फीसदी ब्याज के साथ दो महीने में लौटाये। दो महीने में राशि वापस नहीं की जाती है तो स्कूल को 10 फीसदी का ब्याज देना पड़ेगा। साथ ही स्कूल मुआवजा व मुकदमें के खर्च के रूप में तीन हजार रुपये भी अदा करे। शिकायतकर्ता डाक्टर ने अपने बच्चे का नामांकन उक्त में कराया था और छह महीने का फीस व हॉस्टल चार्ज के रूप में लगभग 22 हजार रुपये दिये थे। जब बच्चा स्कूल गया तो वहां रहने की व्यवस्था नहीं थी। वह एक दिन भी क्लास नहीं किया और वापस लौटकर आ गया। बच्चे के पिता ने स्कूल से फीस लौटाने को कहा। स्कूल सिर्फ जमानत राशि 15 सौ रुपये लौटाने को तैयार हुआ। इसपर उसने जिला उपभोक्ता फोरम से शिकायत की। फोरम ने भी जमानत राशि लौटाने का ही निर्देश दिया। शिकायतकर्ता ने फोरम के आदेश के खिलाफ आयोग में अपील दाखिल की। आयोग ने अपने आदेश में स्कूल को पूरा फीस लौटाने का आदेश दिया(राष्ट्रीय सहारा,पटना,31.5.11)

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हरियाणाःबीमार गुरू जी के स्थान पर पढ़ा रहा है बड़ा भाई !

कई सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर बच्चों के भविष्य के साथ जमकर खिलवाड़ हो रहा है। सरकार से पगार झटकने के लिए बीमार टीचर के स्थान पर बच्चों को बड़ा भाई पढ़ा रहा है,आश्चर्य की बात तो यह है कि विभाग के अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं है। मानसिक रूप से बीमार इस टीचर को मेडिकल प्रमाण पत्र कैसे मिल गया,यह भी गौर करने की बात है। सूत्रों की मानें तो अध्यापक भाई पुलिस विभाग का पूर्व कर्मचारी है। वहीं प्रशासनिक अधिकारी मामले की जांच करने की बात कह रहे हैं।
जानकारी के अनुसार बीकेडी रोड पर स्टोन क्रशर जोन से लगते एक गांव के सरकारी स्कूल में बच्चों को गुरू जी की जगह उसका भाई पढ़ा रहा है।
मानसिक रूप से बीमार यह अध्यापक व इसका भाई पूछे जाने पर अपने एक ही नाम बताते हैं। कुछ माह पहले इस जेबीटी अध्यापक की नियुक्ति बीकेडी रोड स्थित एक सरकारी स्कूल में हुई थी। यह अध्यापक मानसिक रूप से स्वस्थ न होने पर स्कूल में अजीब सी हरकतें करता था।
बताया जाता है कि एक दिन इसकी ग्रामीणों के साथ खूब बहसबाजी भी हुई, जिसकी शिकायत मिलने पर विभाग के अधिकारियों ने इसे मेडिकल छुट्टी पर भेज दिया। जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले यह अध्यापक डाक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेकर फिर से ड्यूटी पर आ गया,लेकिन अभी भी यह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुआ है। इसे क्षेत्र के दूसरे सरकारी स्कूल में लगा दिया गया। जानकारी के अनुसार मानसिक रूप से बीमार यह टीचर क्लास में बैठा रहता है, इसके स्थान पर इसका भाई जो कि पुलिस विभाग का पूर्व मुलाजिम है, बच्चों को पढ़ा रहा है। इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है। पहले से ही बीमार इस टीचर को ड्यूटी संभालने के समय स्वास्थ्य विभाग से मेडिकल फिटनेस कैसे मिल गई यह भी सोचने का विषय है। उनका कहना है कि मानसिक रूप से परेशान यह शिक्षक यदि बच्चों के साथ कोई हरकत कर दे तो अंजाम का जिम्मेदार कौन होगा। इस बारे में जब उपायुक्त अशोक सांगवान से बात की गई तो उनका कहना था कि मामले की जांच करवाई जाएगी(दैनिक ट्रिब्यून,जगाधऱी,31.5.11)।

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व्यावसायिक शिक्षा के लिए हरियाणा का चयन

हरियाणा की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने कहा है कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हरियाणा में व्यावसायिक शिक्षा की प्रायोगिक परियोजना शुरू करने के लिए हरियाणा को चुना है। परियोजना के अंतर्गत बच्चों को सामान्य शिक्षा के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इससे न केवल उनकी दक्षता बढ़ेगी, बल्कि रोजगार पाने में भी उन्हें आसानी होगी।
राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क के बारे में सोमवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के शिक्षामंत्रियों के समूह की बैठक में श्रीमती भुक्कल ने कहा कि विभिन्न राज्यों में व्यावसायिक शिक्षा के प्रायोगिक चरण में विभिन्न क्षेत्रों को अपनाया जाना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए हरियाणा में कृषि, बागवानी, टेक्नॉलोजी और पशुपालन आदि जैसे क्षेत्रों में व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जा सकता है। इसी तरह मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में वहां की आवश्यकता के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र चुने जा सकते हैं। बैठक में हरियाणा के अलावा बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मिजोरम के शिक्षा मंत्रियों तथा विभिन्न राज्यों के शिक्षा सचिवों ने भाग लिया। राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क से सम्बन्धित दस्तावेज का स्वागत करते हुए श्रीमती भुक्कल ने कहा कि व्यावसायिक शिक्षा के विषय को अन्य विषयों के समकक्ष रखा जाना चाहिए(दैनिक ट्रिब्यून,दिल्ली,31.5.11)।

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व्यावसायिक शिक्षा नीति का मसौदा तैयार

कला, विज्ञान और वाणिज्य की तरह व्यावसायिक शिक्षा की भी अब अलग से पढ़ाई होगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय इसके लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नीति तैयार करा रहा है। शिक्षा मंत्रियों की समिति की सोमवार को यहां हुई बैठक में इसके मसौदा पत्र को अंतिम रूप दिया गया। अगले हफ्ते होने वाली शिक्षा मंत्रियों की बैठक और आठ जून को राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद की बैठक में व्यावसायिक शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने की संभावना है। ग्लोबलाइजेशन, प्रतिस्पर्धा और ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था की मांग को देखते हुए भारत सरकार ने विश्व बैंक की दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की ह्यूमन डेवलपमेंट यूनिट से 2006 में व्यावसायिक शिक्षा पर एक रिपोर्ट तैयार कराई थी। इस रिपोर्ट के आलोक में ही केंद्र सरकार ने दृष्टि पत्र 2020 में अगले दस साल में देश के पचास करोड़ लोगों को सक्षम बनाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसी को अंजाम देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय पिछले एक साल से राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नीति तैयार करने में लगा है। इसके लिए बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, असम और पंजाब के शिक्षा मंत्रियों की एक समिति बना दी गई थी। समिति की आखिरी बैठक में मसौदा पत्र पर विचार-विमर्श के बाद आज इसे अंतिम रूप दे दिया गया। राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद देश में अब कक्षा नौ से व्यावसायिक शिक्षा का बकायदा पाठ्यक्रम चलाया जाएगा और इसमें कौशल के अनुसार छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और डाक्टरेट की डिग्री भी दी जाएगी। शिक्षा को रोजगार से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार की यह नई पहल है। शिक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने पहुंचे बिहार के मानव संसाधन मंत्री पीके शाही ने कहा कि राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्ष नीति बनने से पहले ही बिहार ने व्यावसायिक शिक्षा और क्षमता विकास के लिए स्टेट ओपन स्कूल स्थापित कर दिया है जो अन्य जिलों में व्यावसायिक शिक्षा के केंद्र खोलेगा। इसमें नौजवानों को उद्योग धंधे के लिए प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम चलाया जाएगा। नेशनल कौशल विकास कारपोरेशन के सहयोग से बिहार में हम व्यावसायिक शिक्षा का कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं(दैनिक जागरण,दिल्ली,31.5.11)।

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शिक्षा व्यवस्था में सुधार ज़रूरी

शिक्षा व्यवस्था में सुधार जरूरी मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून की अब तक की सफलता के बाद सरकार अब इसका दायरा बढ़ाने के प्रति गंभीर हो गई है। अभी यह कानून सिर्फ आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए है। इस स्तर तक पूरे तो नहीं, पर कुछ हद तक तो इसके अच्छे परिणाम सामने आए ही हैं। अब इस कानून के दायरे में नौवीं और दसवीं कक्षाओं को भी ले आने का खाका तैयार किया जा चुका है। यह तैयारी अभी केंद्र के स्तर पर है और अमल में इसे तभी लाया जा सकेगा, जब प्रदेशों की सहमति मिल जाएगी। प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों का सम्मेलन और केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद (केब) की बैठक भी अगले ही हफ्ते होने वाली है। जाहिर है, विस्तार के इस प्रस्ताव पर केब की राय भी ली जाएगी। शिक्षा सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। खास कर हमारे देश के पिछड़े तबकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता की जैसी स्थिति है, उसे देखते हुए इसे कानूनन अनिवार्य बनाए बगैर बेहतर परिणाम हासिल करने की बात सोची ही नहीं जा सकती थी। देश की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे के कारण इसके लिए बगैर किसी दबाव के राज्यों की सहमति हासिल करना भी जरूरी है। इसके बावजूद शिक्षा से जुड़े कुछ मसलों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना जरूरी है। इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता है कि शिक्षा का मतलब सिर्फ अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं है। केवल साक्षर हो जाने या कुछ विषयों के पाठ याद कर परीक्षाएं पास कर लेने भर से शिक्षा के प्रसार का वास्तविक उद्देश्य पूरा होने वाला नहीं है। हमारे देश के अधिकतर नौजवान अभी भी शिक्षा का कुल मतलब केवल डिग्री हासिल करने और डिग्री का अर्थ नौकरी पाने तक सीमित समझते हैं। इसी सोच का यह परिणाम है कि शिक्षित बेरोजगारों की संख्या पूरे देश में लगातार बढ़ती जा रही है और आज व्यवस्था के सामने जो बड़ी चुनौतियां हैं, उनमें एक बेरोजगारी भी है। मुख्य रूप से शिक्षित युवाओं के सामने उनकी योग्यता के अनुरूप काम मिल पाना एक बहुत बड़ा संकट है। बेरोजगारी की समस्या के दिन-ब-दिन बढ़ते चले जाने के मूल में नौकरी पर लोगों की निर्भरता की सोच ही जिम्मेदार है। अधिकतर युवा शिक्षा हासिल कर लेने के बाद नौकरी के अलावा किसी और दिशा में सोचते ही नहीं हैं। आखिर क्यों? जिम्मेदार लोगों को इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। कहीं न कहीं इसकी वजह हमारी शिक्षा व्यवस्था में ही छिपी हुई है। असलियत यह है कि हमारी शिक्षा युवाओं को नौकरी के अलावा कोई और दिशा ही नहीं देती है। कोई चाहे कुछ भी और किसी भी स्तर तक की पढ़ाई कर ले। आमतौर पर बच्चों की सोच शुरू से ही नौकरी की बनाई जाती है। उद्यमिता आम जन की सोच से ही गायब हो गई है। इसे बढ़ावा देने के लिए सार्थक और सकारात्मक कोशिश भी सरकार या शिक्षा व्यवस्था की ओर से नहीं की जा रही है। शिक्षा व्यवस्था से जुड़े लोगों को यह सोचना होगा कि यह कैसे किया जा सकता है। ऐसे कौन से तरीके अपनाए जाएं जिनसे शिक्षित युवाओं में उद्यमिता की सोच विकसित हो, यह तय करना आखिर किसकी जिम्मेदारी होगी? आमतौर पर सरकारी स्कूलों में जिस तरह की शिक्षा दी जा रही है, उसमें विद्यार्थियों को केवल कुछ विषयों के पाठ पढ़ा दिए जाते हैं। इन पाठों में भी अधिकतर ऐसे हैं जो बाद में किसी काम नहीं आते हैं। उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए सरकारी स्कूलों में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अधिकतर सरकारी स्कूलों की स्थिति तो यह है कि पढ़ाई भी ढंग से नहीं हो रही है। उन स्कूलों में शिक्षा की अनिवार्यता के कानून के तहत बच्चों को भेजने से भी क्या लाभ हासिल होने वाला है जहां न तो अनुशासन है और न ही पर्याप्त संसाधन। अच्छे अध्यापकों के होते हुए भी पढ़ाई का माहौल तक नहीं बन पाता है। कहीं अध्यापक पूरे दिन दोपहर के भोजन की खानापूर्ति में लगे रहते हैं, तो कभी जनगणना, मतदाता पहचान पत्र, सर्वेक्षण .. आदि शिक्षणेत्तर कायरें में लगे रहते हैं। जो स्कूलों में मौजूद हैं, उनके लिए भी विभिन्न कारणों से पढ़ाना मुश्किल हो गया है। नतीजा यह है कि शिक्षा को उच्च प्राथमिकता मानने वाला कोई भी जागरूक अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने के लिए तैयार नहीं है। अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर और पढ़ाई बेहद महंगी होते हुए भी ऐसे अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। क्या यह स्थिति देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए शर्मनाक नहीं है? इस लिहाज से देखें तो सबसे पहली जरूरत इस बात की है कि देश की शिक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जाए। इसके अलावा शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर भी पहले की तुलना में लगातार घटता दिख रहा है। हम छात्रों को सूचनाओं और तकनीकी ज्ञान से भले ही समृद्ध बना रहे हों, लेकिन उनके नैतिक विकास और सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता पर या तो बिलकुल ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है, या अगर दिया भी जा रहा हो तो उसे वे अपने जीवन में उतार नहीं पा रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? जाहिर है, वे नैतिक सीखों को सिर्फ किताबी ज्ञान की तरह रटा देने भर से अमल में लाने वाले नहीं हैं। वे इसे अपने जीवन में उतार सकें, इसके लिए जरूरी है कि उनके सामने ऐसे रोल मॉडल हों। अगर वे कुछ लोगों को इन बातों पर अमल करते देखते भी हैं तो उनकी भौतिक सफलता की स्थिति देखकर उन्हें बड़ी हताशा होती है। परिणाम यह हो रहा है कि वे राष्ट्रीय भावना को नहीं अपना पा रहे हैं। इन मसलों पर गौर करें तो पाते हैं कि आमजन को सुलभ हमारी शिक्षा व्यवस्था न तो रोजगार दे पा रही है और न बेहतर नागरिक ही बना पा रही है। यह केवल बेरोजगारों और गैर जिम्मेदार लोगों की फौज खड़ी कर रही है। हाल ही में आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों के संबंध में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की टिप्पणी से भले ही लोग सहमत न हों और यहां तक कि खुद उन्हें ही अपनी बात वापस लेनी पड़ी, लेकिन यह सच्चाई है कि हमारी शिक्षा में गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है। इस बात को टाला नहीं जाना चाहिए। सच तो यह है कि इसे उच्च प्राथमिकता का मामला मानते हुए इस पर गंभीरता से गौर किया जाना चाहिए। सरकार को इस दिशा में भी सोचना होगा कि जिन लोगों की पहुंच शिक्षा तक नहीं हो पा रही है उन्हें तो शिक्षा दी ही जाए, लेकिन जो शिक्षा का मूल्य बढ़ने के कारण इससे दूर होने को विवश हैं उनके लिए भी कुछ इंतजाम बनाए जाएं। सरकारी शिक्षा को सिर्फ मुफ्त की शिक्षा बनाने के बजाय उसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाए। यह यकीनी बनाया जाए कि जो नौजवान पढ़-लिख कर निकलें, वे सिर्फ साक्षर न हों, बल्कि उद्यमी और जिम्मेदार नागरिक भी बनें(निशिकांत ठाकुर,दैनिक जागरण,31.5.11)।

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ऑनलाइन करिअर

अगर आप घर बैठे अच्छी कमाई करना चाहते हैं और ऑनलाइन में रुचि रखते हैं तो आपके पास कई ऑनलाइन जॉब ऑफर मिल सकते हैं। ज्यादातर ऑनलाइन रोजगारों से जुड़ने के लिए आपको कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता। इसका मतलब बिना पैसा खर्च किए मुफ्त में ऑनलाइन रोजगार पाएं। आपको सिर्फ अपने प्रोफाइल से मिलती-जुलती ऑनलाइन जॉब तलाशनी होगी।

ऑनलाइन कॉपीराइटर
कॉपीराइटर एक ऐसा रोजगार है जिसमें अच्छी खासी आमदनी है। यहां कई ऐसी कंपनियां हैं जो वेब संबंधी कॉपीराइटर की नौकरी देती हैं। यह काम बिना किसी झंझट के किया जा सकता है। सिर्फ आपको विभिन्न विषयों पर कुछ जनरल में लेख लिखने हैं। कंपनियां आपके द्वारा चुने गए विषयों या फिर आपकी विशेषज्ञता के मुताबिक लेख लिखने का ऑफर देती हैं। आप कुछ लेख लिखकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। आमतौर पर भुगतान प्रति १०० शब्दों के हिसाब से दिया जाता है। जैसे-जैसे आप का अनुभव और विशेषज्ञता बढ़ती जाएगी वैसे ही आपको इससे ज्यादा भी मिलने लगेगा।

ऑनलाइन डाटा एंट्री
अन्य उच्च ऑनलाइन कमाई का साधन है ऑनलाइन डाटा एंट्री। ऑनलाइन पैसा कमाने का सबसे सरल काम है डाटा एंट्री। डाटा एंट्री में कुछ सरल काम शामिल हैं जैसे पीडीएफ पेज से कुछ डाटा निकालना या पेज को स्कैन कर वर्ड डॉक्यूमेंट में बदलना। इसके अलावा, कुछ फार्म को भरना, कंपनियों द्वारा दिए कुछ आंकड़ों को सभी जगह पर भरना आदि।

हर एक नौकरी के बदले २.४ रोजगार देता है इंटरनेटः सर्वे

हमारे जीने, खरीदारी और काम करने के ढंग को बदल देने वाला इंटरनेट धीरे-धीरे रोजगार सृजन का भी बड़ा माध्यम बनता जा रहा है। वैश्विक प्रबंधन परामर्श कपंनी मैकेंसी ने एक सर्वे में निष्कर्ष निकाला है कि इंटरनेट अगर एक नौकरी समाप्त करता है तो उसके बदले २.४ रोजगार सृजित करता है। मैकेंसी ग्लोबल इंस्टिटयूट की रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट ने विकास, रोजगार तथा संपन्नता पर बड़ा असर डाला है। इसके अनुसार इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के कारण कुछ रोजगार समाप्त हो रहे हैं, लेकिन उससे भी कहीं अधिक रोजगार सृजित भी हो रहे हैं। नए रोजगारों में इंटरनेट से जुड़ी सॉफ्टवेयर इंजीनियर तथा ऑनलाइन मंडी की नौकरियां शामिल हैं। सर्वे में फ्रांसीसी अर्थव्यवस्था के व्यापक विश्लेषण से सामने आया है कि बीते १५ साल में इंटरनेट के कारण वहां ५,००,००० नौकरियां समाप्त हुईं पर इसके कारण ही १२ लाख नए रोजगार के अवसर सृजित किए गए। यानी सीधे-साधे ७,००,००० रोजगारों का फायदा हुआ।

मैंकेंसी ने एक अन्य सर्वे ४,८०० लघु एवं कुटीर उद्योगों का किया है जिसके अनुसार इंटरनेट के कारण समाप्त होने के वाले हर एक रोजगार के बदले २.६ नई नौकरियां सामने आती हैं। इसे इंटरनेट की रोजगार सृजन की क्षमता साबित होती है। कंपनी ने जी८, ब्राजील, चीन, भारत, दक्षिण कोरिया तथा स्वीडन सहित १३ देशों में में इंटरनेट के असर का अध्ययन किया है। इन १३ देशों की जीडीपी में इंटरनेटर की हिस्सेदारी औसतन ३.४ फीसदी दर्ज की गई है, जोकि कृषि, ऊर्जा और अन्य बेहतर मौजूदा उद्योगों से ज्यादा है। इसी दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने "मिलेनियम गोल" सूची में इंटरनेट को प्रमुखता से रखा है जिससे गरीबी घटाने और तर्कसंगत विकास को प्रोत्साहित करने में मददगार साबित हुआ है। करीब दो अरब लोग फिलहाल इंटरनेट से जुड़े हुए हैं और प्रत्येक साल इस संख्या में २० करोड़ लोग जुड़ रहे हैं। भारत और चीन वैश्विक इंटरनेट जगत में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां २० फीसदी की वृद्धि दर से नए कनेक्शन जोड़े जा रहे हैं।
(आशुतोष वर्मा,नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)

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यूपीःनिजी कॉलेजों पर और कसा शिकंजा

दशमोत्तर कक्षाओं की फीस प्रतिपूर्ति में करोड़ों का घोटाला सामने आने के बाद सरकार ने निजी कॉलेजों पर शिकंजा और कस दिया है। अब अभियान चलाकर प्रदेश के 28 जिलों में शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि का वित्तीय एवं भौतिक सत्यापन कराया जाएगा। इन जिलों में कॉलेजों की संख्या अधिक है। इसके साथ ही प्रदेश के 11 जिलों में पिछले तीन सालों के दौरान बांटी गई धनराशि का स्पेशल आडिट भी कराया जाएगा। लखनऊ और गाजियाबाद के दो-दो कॉलेजों में फीस प्रतिपूर्ति में करोड़ों का घोटाला प्रकाश में आने के बाद शासन का रुख और सख्त हो गया है। इन कॉलेजों के खिलाफ स्थानीय अधिकारियों ने जांच कर अपनी रिपोर्ट शासन को भेजी थी। चारो कॉलेजों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि ऐसे मामले और भी सामने आ सकते हैं। मुख्य सचिव अनूप मिश्र ने भी इस घोटाले को गंभीरता से लिया। उनके निर्देश पर अधिक कॉलेज वाले जिलों में सघन अभियान चलाकर जांच करने का फैसला लिया गया। इन जिलों में गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ, मथुरा, आगरा, कानपुर नगर, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, फैजाबाद, बाराबंकी, लखनऊ, मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर अलीगढ़, आजमगढ़, गाजीपुर, बरेली, उन्नाव, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, मऊ, बिजनौर, जौनपुर, झांसी तथा फिरोजाबाद शामिल हैं। प्रमुख सचिव बलविंदर कुमार ने बताया कि यहां के जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे दस टीमों का गठन करके इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, मेडिकल/डेंटल, बीएड व अन्य कॉलेजों में फीस प्रतिपूर्ति की जांच कराएं। अधिकारियों से सात जून को अभियान की रिपोर्ट भी मांगी गई है। दूसरी ओर समाज कल्याण विभाग ने सोमवार को प्रदेश के 11 जिलों में पिछले तीन सालों में वितरित फीस प्रतिपूर्ति की स्पेशल ऑडिट के लिए उत्तर प्रदेश महालेखाकार को पत्र भेज दिया। प्रमुख सचिव बलविंदर कुमार की ओर से भेजे गए इस पत्र में कहा गया है कि रेंडम आधार पर कम से कम दस संस्थानों के छात्र-छात्राओं को दी गई राशि का आडिट अवश्य किया जाए(दैनिक जागरण,दिल्ली,31.5.11)।

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लखनऊ का इस्लामिया कॉलेजःपढ़ाई के साथ खेलकूद पर भी जोर

सन् 1894 में एक अरेबिक मदरसे के रूप में शुरू हुआ इस्लामिया कॉलेज आज राजधानी के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक है। संस्थान ने 1916 में हाईस्कूल और 1942 में इण्टरमीडिएट की मान्यता हासिल की। सन् 1991 में इस कालेज ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा। प्रारम्भ में महाविद्यालय से सिर्फ बेचलर ऑफ आर्टस बीए पाठ्यक्रम ही संचालित होता था। वर्तमान में यहां से बी-कॉम तथा बी-एससी के पाठ्यक्रम भी संचालित हो रहे हैं। प्राथमिक से लेकर स्नातक तक सहशिक्षा व्यवस्था लागू है। अमीरूद्दौला इस्लामिया डिग्री कॉलेज में प्रवेश प्रक्रिया 1 जून से शुरू हो रही है। महाविद्यालय में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास पर विशेष बल दिया जाता है। इसके लिए समय-समय पर करियर काउंसिलिंग और विषय आधारित संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। कम्प्यूटर संबंधी अल्पकालिक पाठ्यक्रम शुरू करने की भी योजना है। विज्ञान प्रयोगशालाओं और पुस्तकालय को और ज्यादा समृद्ध करने का प्रयास चल रहा है। 6 स्नातक 6 प्रवेश फार्म मिलने की तिथि: 1 जून 6 प्रवेश फार्म मिलने की अन्तिम तिथि: 20 जून 6 प्रवेश फार्म जमा होने की अन्तिम तिथि: 25 जून 
प्रवेश फार्म मिलने का समय: सुबह 9:00 बजे से सांय 1:00 बजे तक 
 बीए कुल सीटें- 350 : उपलब्ध विषय : 
हिन्दी, उर्दू, प्राचीन भारतीय इतिहास, अरब कल्चर, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र।

विशेष : 
-अनिवार्य विषय के रुप में राष्ट्र गौरव को दो भागों में बांट दिया गया है। पहला राष्ट्रगौरव और दूसरा पर्यावरण विज्ञान। 
- इतिहास और अरब कल्चर विषय का चयन एक साथ नहीं किया जा सकता।
-बी-एससी कुल सीटें - 300 
उपलब्ध विषय समूह
- जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा रसायन विज्ञान 
- भौतिक विज्ञान, गणित तथा रसायन विज्ञान 
-भौतिक विज्ञान, गणित तथा कम्प्यूटर एप्लीकेशन 
-बी-कॉम कुल सीटें - 350 
- खेलकूद महाविद्यालय में इनडोर और आउटडोर खेलों की उचित व्यवस्था है। क्रिकेट और फुटबाल के प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को केडी सिंह बाबू स्टेडियम और लखनऊ विश्र्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया जाता है। टेबिल टेनिस और बैडमिन्टन जैसे खेलों के लिए विद्यालय में स्थान सुनिश्चित है। 
-शैक्षिक सेमिनार : सभी विभागों में समय-समय पर विषय विशेषज्ञों को बुलाकर सेमिनार और कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन भी होता है। कालेज के शिक्षक, कर्मचारी तथा विद्यार्थियों के सहयोग से हर वर्ष महाविद्यालय की पत्रिका का प्रकाशन भी होता है। 
-राष्ट्रीय सेवा योजना और राष्ट्रीय कैडेट कोर : महाविद्यालय में विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय सेवा योजना एनएसएस और राष्ट्रीय कैडेट कोर एनसीसी प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था है। महाविद्यालय के कई विद्यार्थी गणतन्त्र दिवस की परेड में शामिल होने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा एनएसएस के विद्यार्थियों ने लखनऊ और उसके आस-पास के जिलों में कई जनजागरण अभियान चलाए हैं।
- सांस्कृतिक गतिविधियां : विद्यार्थियों की रचनात्मक प्रतिभा का विकास करने के लिए वाद-विवाद और निबन्ध लेखन आदि प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त वार्षिकोत्सव में विद्यार्थी गीत संगीत एवं नृत्य की विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। 
- विशेष : शहर के गणमान्य व्यक्तियों के अनुरोध पर गरीब बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश दिया जाता है तथा उन्हें आर्थिक सहयोग भी दिया जाता है(दैनिक जागरण,लखनऊ,31.5.11)।

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यूपी में एमडी-एमएस बनाएगी सेना

प्रदेश की मेडिकल प्रवेश परीक्षा की मेरिट में स्थान बनाने वाले होनहार बच्चों को सेना अपने यहां के सुपरस्पेशलिस्ट मध्य कमान अस्पताल में एमडी व एमएस बनने का मौका देगी। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मध्य कमान अस्पताल में दस विषयों की एमडी व एमएस की पढ़ाई कराने की स्वीकृति दे दी है। इसके साथ ही मध्य कमान अस्पताल देश का पांचवा सैन्य अस्पताल हो गया जहां एमएस व एमडी की पढ़ाई होगी। महानिदेशक आ‌र्म्ड फोर्स मेडिकल सर्विस (डीजीएएफएमएस) की ऑल इंडिया पीजी प्रवेश परीक्षा की मेरिट में आने वाले युवाओं को आ‌र्म्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज पुणे के अलावा दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर व कोलकाता के सेना के अस्पताल में एमएस और एमडी का पाठयक्रम पढ़ाया जाता है। इन कॉलेजों से हर साल 250 एमडी व एमएस सेना में कमीशन प्राप्त कर सैन्य अधिकारी बनते हैं। रक्षा मंत्रालय का चुनिंदा अस्पताल होने के बावजूद मध्य कमान में अब तक एमडी व एमएस की पढ़ाई की मान्यता नहीं थी। छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय ने अस्पताल का निरीक्षण कर दस विषयों की 38 सीटों की पढ़ाई के लिए योग्य पाया था। राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र और चिकित्सा विवि से मान्यता मिलने के बाद एमसीआइ ने पॉलिसी के तहत पहले वर्ष दस विषयों के लिए 18 सीटों पर प्रवेश की मंजूरी मध्य कमान अस्पताल को दी है। अगले कुछ वर्षो में सीटों की संख्या बढ़ाकर 60 से 80 तक की जा सकती है। ऐसे होगा प्रवेश डीजी एएफएमएस की ऑल इंडिया पीजी प्रवेश परीक्षा की काउंसिलिंग के बाद बची हुई सीटों पर यूपी पीजी मेडिकल प्रवेश परीक्षा की मेरिट में आने वाले युवकों को मौका मिलेगा। इस वर्ष मार्च में डीजी एएफएमएस की काउंसिलिंग हो जाने के कारण सभी 18 सीटों पर यूपी पीजी मेडिकल प्रवेश परीक्षा की मेरिट में आने वाले युवकों को मौका मिलेगा(निशांत यादव,दैनिक जागरण,लखनऊ,31.5.11)।

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बिहारःउच्च शिक्षा की टेढ़ी राह

बिहार विधानमंडल से पारित चार वित्त विधेयक समेत 13 विधेयक राजभवन की संस्तुति पाने के लिए लगभग दो माह से लंबित रहें, तो चिंता स्वाभाविक है। राज्य सरकार का आकलन है कि विलंब होने से तात्कालिक तौर पर 309 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। महामहिम के संवैधानिक पद की अपनी विवशताएं हो सकती हैं, लेकिन यह भी सही है कि जहां भी देरी होती है, असंतोष बढ़ता है। जो विधेयक जिन उद्देश्यों के लिए सदन से पारित हुए हैं, वे कहीं अनुमान से ज्यादा वक्त लेंगे, तो जनता का दबाव अंतत: निर्वाचित सरकार को झेलना पड़ेगा। इस मसले पर उपमुख्यमंत्री कासार्वजनिक वक्तव्य आने के बाद राज्यपाल सह कुलाधिपति ने जिन सात विधेयकों को स्वीकृति दी, उनमें शिक्षा से संबंधित सिर्फ एक बिल (बिहार विद्यालय परीक्षा समिति संशोधन विधेयक 2011) शामिल है। जो अन्य पांच बिल अब भी राजभवन की प्रतीक्षा सूची में हैं, उनमें पटना विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2011 सहित तीन का संबंध उच्च शिक्षा से ही है। तात्पर्य यह कि उच्च शिक्षा का स्तर उठाना आसान नहीं है। कुलपति से शिक्षक नियुक्ति तक के मामले में इतने वैधानिक-प्रशासनिक गतिरोध हैं कि राज्य इस क्षेत्र में काफी पीछे है। विश्वविद्यालय एवं उनके अधीनस्थ अंगीभूत कालेजों व घाटा अनुदान कालेजों के शिक्षक व कर्मचारियों को समय पर पगार नहीं मिल रही है। मार्च से मई 2011 तक के वेतन, पेंशन व अन्य भत्तों का भुगतान लंबित था। इसके भुगतान के लिए मानव संसाधन विकास विभाग ने 197.8 करोड़ की राशि 28 मई को स्वीकृत की। वेतन आदि समय पर न मिलने की वजह चाहे जो भी हो, इससे उपजे असंतोष का दुष्प्रभाव गुणवत्ता पर अवश्य पड़ता है। दूसरी तरफ विश्वविद्यालयों बजट में गड़बड़ी पाई गई। नतीजा यह हुआ कि सरकार की मंजूरी मिल जाने के बावजूद कालेज शिक्षक यूजीसी के नये वेतनमान से वंचित हैं। इस कठिन चुनौती वाली पृष्ठभूमि में सरकार ने सेंटर आफ एक्सेलेंस (सीओइ) के लिए 49 कालेजों के चयन का एलान किया है। इनमें 1917 में स्थापित पटना विश्वविद्यालय के सभी कालेज शामिल हैं। आम तौर पर किसी कालेज को उसकी पढ़ाई, शैक्षिक स्तरीयता, उन्नत प्रयोगशाला, समृद्ध पुस्तकालय, शिक्षकों की संख्या, उनके अकादमिक योगदान वगैरह को ध्यान में रख कर सीओइ बनाने का प्रस्ताव किया जाता है। इससे ऐसे महाविद्यालयों को और बेहतर बनाने के लिए अधिक अनुदान मिलने का रास्ता साफ हो जाता है। अब हमारे 49 में पांच कालेज भी यूजीसी के मानक पर खरे उतर पाएं, तो बड़ी बात होगी। जीने के लिए खाना ठीक है, खाने के लिए जीना नहीं(संपादकीय,दैनिक जागरण,पटना,31.5.11)

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मध्यप्रदेशःतकनीकी में मैनेजमेंट कोटा फिर बहाल

जिनके पास पैसा हो, वे अपने पुत्र-पुत्रियों को ज्यादा फीस देकर तकनीकी कालेजों में प्रवेश दिला सकते हैं। कुछ इसी विचार पर अमल करते हुए तकनीकी शिक्षा विभाग ने प्रायवेट कालेजों को एक बार फिर मैनेजमेंट कोटे की सौगात दे दी है। कुल इनटेक की दस फीसदी सीटें कालेज खुद भर सकेंगे। यह कोटा इस बार संस्थागत सीटों के नाम से रहेगा। इन सीटों पर प्रवेश के लिए न तो पीईटी की बाध्यता रहेगी और पचास फीसदी से कम अंकों की। प्रायवेट कालेजों द्वारा लंबे समय से की जा रही मांग तकनीकी शिक्षा विभाग ने अंतत: पूरी कर दी है। दबे स्वर में ही सही, लेकिन कालेजों की मुराद पूरी करने में विभाग पीछे नहीं रहा है। निजी कालेजों को यह सुविधा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से जुड़े बीई, बीटेक, एमबीए, एमसीए, बीफार्मा पाठ्यक्रमों के लिए दी गई है। हालांकि इसे सीधे-सीधे मैनेजमेंट कोटा की जगह विभाग ने संस्थागत प्राथमिकता की सीट नाम दिया है। संस्थागत प्राथमिकता को जोड़ते हुए पुराने अधिनियम में भी इसे शामिल कर दिया गया है। अपने इस फैसले को राज्य शासन ने 19 मई के राजपत्र में भी प्रकाशित कर दिया है। इन सीटों के लिए नियम-उपबंध भी अलग से बनाए गए हैं। संस्थागत प्राथमिकता के नाम से यह कोटा केवल निजी तकनीकी कालेजों के लिए होगा। एनआरआई से निकला रास्ता : शासन ने कालेजों को यह सौगात एनआरआई कोटे से दी है। पिछले साल तक तकनीकी कालेजों को 15 फीसदी एनआरआई कोटा दिया जाता था। एआईसीटीई ने इसे घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया है। परिषद द्वारा छोड़ी गई दस फीसदी सीटें ही शासन ने कालेजों की झोली में डाल दी हैं। इन सीटों के लिए कालेज काफी पहले से प्रयासरत थे।
इन सीटों के साथ ही शासन ने कालेजों को भरपूर फीस वसूलने की भी छूट दी है। इन दस फीसदी सीटों के लिए कालेज संचालक डेढ़ लाख रुपए तक फीस वसूल सकते हैं। जानकारी के अनुसार प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति ने भी अपने प्रस्ताव में इस तरह की सीटों का सुझाव शासन को दो साल पहले दिया था। फीस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष द्वारा अपने इस प्रस्ताव के लिए मुख्यमंत्री को भी कई बार स्मरण पत्र भेजे थे। विभाग द्वारा जारी नियमों के तहत इन सीटों के लिए भी कालेज द्वारा मेरिट तैयार की जाएगी। इन सीटों पर विभाग के प्रतिनिधि की मौजूदगी में प्रवेश दिए जाएंगे। इस कोटे के लिए भी छात्र-छात्राओं को अलग से विकल्प देना होगा। इसमें बारहवीं के अंकों पर भी प्रवेश दिया जाएगा। पीईटी की बाध्यता भी इसमें आड़े नहीं आएगी(दैनिक जागरण,भोपाल,31.5.11)।

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डीयूःकामर्स के लिए एसजीजीएससीसी बेहतर

डीयू के आउट ऑफ कैंपस कॉलेजों में पीतमपुरा स्थित श्री गुरु गोविंद सिंह कॉलेज ऑफ कामर्स एवं अशोक विहार स्थित लक्ष्मीबाई कॉलेज आफ कामर्स भी छात्रों के लिए बेहतर विकल्प हैं। जहां 15 जून को पहली कट ऑफ लिस्ट जारी होने के बाद सीधे दाखिले होंगे। श्री गुरु गोविंद सिंह कॉलेज ऑफ कामर्स पीतमपुरा स्थित श्रीगुरु गोविंद सिंह कालेज ऑफ कामर्स अपने पाठ्यक्रमों के लिए आउट ऑफ कैंपस होते हुए भी खासी पहचान पाए हुए है। यहां बीकाम प्रोग्राम, इकोनोमिक्स आनर्स के साथ पीजी डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश पाने के लिए छात्र-छात्राओं में होड़ लगी रहती है। कालेज में मुख्य रूप से बीए (आनर्स) बिजनेस इकोनामिक्स (बीबीई), बीएससी (आनर्स) कंप्यूटर साइंस, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इंटरनेशनल मार्केटिंग (पीजीडीआईएम) व डिप्लोमा बिजनेस जर्नलिज्म एंड कारपोरेट कम्युनिकेशन (डीबीजेसीसी) के रोजगारपरक कोर्स पढ़ाए जाते हैं। कालेज के प्राचार्य डा. जितेंद्र बीर सिंह ने बताया कि कालेज प्रशासन बीबीई, बीएससी (आनर्स) कंप्यूटर साईस, पीजीडीआईएम व डीबीजेसीसी के कोर्स करने के बाद अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक, इंडिया बुल्स सिक्योरिटी, मैक्स न्यू यार्क लाइफ इंश्योरेंस व आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल इंश्योरेंस आदि कंपनियां छात्र छात्राओं का कैंपस से ही चुनाव कर लेती है। कालेज का प्लेसमेंट सेल छात्रों को प्लेसमेंट में मदद करता है। कालेज में तीन कंप्यूटरलैब हैं। जो पूर्ण रूप से डीयू की इंटरनेट सेवा से जुड़ी है। छात्रों के लिए कॉलेज में वातानुकूलित पुस्तकालय है, जो पूर्णत कंप्यूटराइज्ड है। खास बात यह है कि इसी वर्ष कॉलेज ने अपना साहिबजादा अजीत सिंह सभागार बनाया है, जो पूर्ण वातानुकूलित होने के साथ ही आधुनिक सुविधाओं से युक्त है। यह डीयू का एकमात्र ऐसा कॉलेज है, जिसमें जिम की सुविधा भी है। लक्ष्मीबाई कॉलेज बाहरी दिल्ली अशोक विहार फेज-तीन स्थित लक्ष्मीबाई कॉलेज छात्राओं की पहली पसंद है। यहां कामर्स और ऑर्टस सहित स्नातकोत्तर के तीन कोर्स एमए फिलासफी, संस्कृत व राजनीति विज्ञान की पढ़ाई होती है। इसकेअलावा विशेष पाठ्यक्रमों के तहत यहां फ्रेंच व जर्मन भाषा सर्टिफिकेट कोर्स के साथ फूड टेक्नोलॉजी कोर्स भी खासा लोकप्रिय है। कालेज का पुस्तकालय पूर्णत कंप्यूटराइज्ड और वातानुकुलित है। इसके अलावा कंप्यूटर लैब की व्यवस्था भी है। कालेज की प्राचार्य डॉ.करुणा कौशिक बताती हैं कि कालेज का स्पो‌र्ट्स ग्राउंड काफी बढि़या बना है। इसके अलावा एनसीसी और एनएसएस भी कॉलेज में है। पढ़ाई के अलावा खेलकूद एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। कॉलेज का अपना प्लेसमेंट सेल है जो छात्राओं को रोजगार दिलाने में मदद करता है। गत वर्ष कई छात्राओं को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा चयन किया गया। वूमेन डेवलपमेंट सेंटर, नव्या सेल्फ हेल्प ग्रुप व ड्रेमेटिक सोसाइटी भी कॉलेज में है। कालेज की सोसायटी फॉर इन्वायरमेंटल अवेयरनेस संरक्षण में भी छात्राएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। जिससे उनकी कौशल क्षमता का विकास होता है(दैनिक जागरण,दिल्ली,31.5.11)।

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मध्यप्रदेशःप्रवेश नियम में दबा शैक्षणिक कैलेंडर

लगातार उठापटक का केंद्र बने उच्च शिक्षा विभाग ने इस बार छात्र-छात्राओं के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। शासन ने कालेजों में प्रवेश की अंतिम तिथि 20 जून रख दी है, लेकिन प्रवेश की प्रक्रिया अब तक जारी नहीं की गई है। कालेजों को यही नहीं पता है कि प्रवेश करना कैसे हैं। वहीं छात्र भी प्रवेश के लिए दस दिन से चक्कर काटने को मजबूर हैं। शासन द्वारा जारी शैक्षणिक कैलेंडर को मानें तो कालेजों में प्रवेश 20 मई को शुरू हो चुके हैं, सामान्य तरीके से प्रवेश की अंतिम तिथि 20 जून रहेगी। इसके बाद अगले दस दिन प्राचार्य और कुलपति की विशेष अनुमति से ही प्रवेश मिल सकेगा। मगर असलियत यह है कि आज तक प्रदेश के किसी भी कालेज में प्रवेश फार्म मिलना ही शुरू नहीं हुए हैं। इसकी वजह है प्रवेश प्रक्रिया। राज्य शासन ने इस वर्ष के लिए अभी तक प्रवेश नियमावली ही जारी नहीं की है। जब तक नियम नहीं आ जाते, कालेज प्राचार्य प्रवेश भी शुरू नहीं कर सकते। इसके चलते अपनी असमर्थता दिखाते हुए सारे प्राचार्य फार्म लेने आने वाले छात्रों को बैरंग लौटा रहे हैं।
सेमेस्टर के बदलाव भी अटके : यही स्थिति सेमेस्टर पैटर्न के नियमों में अगले साल से किए जाने बदलावों की भी बनी हुई है। विभाग ने दो दिन पहले ही नए नियमों का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया है। राजभवन से हरी झंडी मिलने के बाद ही यह लागू किए जा सकेंगे। वहीं प्रवेश नियम भी इन्हें मंजूरी के बाद ही जारी होंगे। इसे देखते हुए इस बार भी प्रवेश प्रक्रिया आगे बढ़ने की संभावना बलवती हो गई है(दैनिक जागरण,भोपाल,31.5.11)।

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उत्तराखंडःअब शाम सात बजे तक जमा होंगे समूह ‘ग’ के चालान

समूह-ग भर्ती के लिए डाकघरों में चालान जमा करने के लिए अब नई व्यवस्था लागू की गई है। अब अभ्यर्थी चार बजे की बजाय शाम सात बजे तक डाकघर में चालान जमा कर सकते हैं। समेत सभी कम्प्यूटराईज डाकघरों में यह सुविधा शुरू हो गई है।
समूह-ग के अभ्यार्थियों को यह खबर राहत देने वाली है। इनकी सुविधा को देखते हुए डाकघरों में समूह-ग के चालान जमा करने के लिए नए कदम उठाए गए हैं। इस सम्बंध में डाक विभाग के देहरादून मंडल की ओर से रुड़की प्रधान डाकघर को दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। पोस्ट मास्टर धर्मपाल सिंह ने बताया कि अब डाकघर में समूह-ग के चालान जमा करने के लिए काउंटर कार्यकाल को नियमित से बढ़ाकर शाम सात बजे तक कर दिया है। अभ्यार्थी शाम सात बजे तक चालान जमा करा सकता है। जबकि पहले शाम चार बजे तक ही चालान जमा होते थे। यह व्यवस्था चार जून तक प्रभावी की गई है। उन्होंने बताया कि डाकघर की अन्य सेवाएं अपने निर्धारित कार्यकाल के अनुसार कार्य करेंगी। बताया कि अभ्यार्थी बड़े डाकघरों में होने वाली भीड़ से बचने के लिए अन्य अधिकृत डाकघरों पर समूह ग के चालान जमा करा सकते हैं। बताया कि सभी कम्प्यूटराईज डाकघरों में समूह-ग के चालान जमा कराने की सुविधा है(अमर उजाला,रुड़की,31.5.11)।

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डीयू ने दी फेसबुक पर दस्तक

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने सोमवार को फेसबुक पर उपस्थिति दर्ज करा दी। साउथ कैंपस में ओपन डेज काउंसिलिंग में डीयू की वेबसाइट से सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक को लिंक किया गया है। जिससे ओरिजनल डीयू लिंक से विश्वविद्यालय के छात्र जुड़ सकें। कुलपति प्रो. दिनेश सिंह ने एक क्लिक के साथ ही फेसबुक पर डीयू की उपस्थित दर्ज करा दी। उन्होंने कहा कि डीयू में शैक्षणिक और ढांचागत विकास में फेसबुक एक लाइव डॉक्यूमेंट की तरह काम करेगी। वे स्वयं फेसबुक के द्वारा छात्रों की समस्याओं से प्रतिदिन रूबरू हो सकेंगे और कॉलेजों के प्राचार्यो को समस्या सुधार से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करेंगे। कुलपति ने छात्रों के लिए अपना एक ई-मेल एकाउंट भी जारी किया है। वीसीफॉरस्टूडेंटस एट डीयूएसी डॉट इन पर विद्यार्थी उन्हें सीधे ई-मेल भेजकर अपनी समस्या से अवगत करा सकते हैं। प्रो. सिंह ने कहा कि वह छात्रों से जुडे़ रहना चाहते हैं। जिसके लिए फेसबुक एक अच्छा माध्यम है। छात्र अपनी समस्याओं को फुटेज सहित फेसबुक पर अपलोड कर सकते हैं। इससे समस्या के प्रति कॉलेज प्रशासन तो जागरूक होगा ही, साथ ही विवि उन शिकायतों पर शीघ्रता से कार्रवाई के लिए कॉलेजों से जवाब मांगेगा। अगर कॉलेजों की कोई समस्या होगी तो विवि प्रशासन उसे भी दुरुस्त करेगा। अधिक से अधिक छात्रों को इससे जोड़ा जाएगा। डीयू कंप्यूटर विभाग के निदेशक डॉ. अजय गुप्ता ने बताया कि फेसबुक पर डीयू के कई फर्जी लिंक बने हुए हैं, जो भी छात्र ओरिजनल लिंक से जुड़ना चाहता है। वह डीयू वेबसाइट पर जाए और वहां पर दिए गए फेसबुक लिंक के जरिए डीयू से जुड़ जाए। फिलहाल फेसबुक पर दाखिला संबंधी जानकारी भी लोड की जाएंगी। जिससे अधिक से अधिक छात्रों को इसका लाभ मिल सके। डीयू ने शुरू किया ई-ओपन डेज : डीयू ने अपनी वेबसाइट पर ई-ओपन डेज शुरू कर दिया है। जिसमें ओपन डेज की वीडियो क्लिपिंग को संपादित कर डीयू की वेबसाइट पर मल्टीमीडिया फॉर्मेट में अपलोड किया गया है। जिससे घर बैठे छात्रों को दाखिला संबंधी जानकारी मिल सके(दैनिक जागरण,दिल्ली,31.5.11)।


राष्ट्रीयसहारा की रिपोर्टः
यदि आप घर या साइबर कैफे में फेसबुक के जरिए दिल्ली विश्वविद्यालय के शैक्षणिक सत्र 2011-12 की दाखिला प्रक्रिया से रू-ब-रू होना चाहते हैं, तो आपकी इस इच्छा को पूरा कर दिया गया है। विश्वविद्यालय ने इस बार फेसबुक में भी अपनी स्थिति दर्ज करा दी है। चैट करने के मामले में चर्चित होने के चलते डीयू ने सोमवार से फेसबुक में विश्वविद्यालय को शामिल कर दिया। जिससे जो विद्यार्थी फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, वे आसानी से डीयू तक पहुंच सकें और उसकी दाखिला प्रक्रिया और नई-नई घोषणा जान सकें। कुलपति दिनेश सिंह का कहना है कि वे खुद फेसबुक के जरिए विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को उनके सवालों के ज्वाब देंगे। विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर भी फेसबुक का लिंक डाल दिया है। इसके अलावा विद्यार्थी कुलपति की निजी ई-मेल आईडी पर भी अपने सवाल भेज सकते हैं। सिंह ने कहा कि वे निजी तौर पर ज्यादा से ज्यादा सवालों के जवाब देने का प्रयास करेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय आगामी शैक्षणिक सत्र में दाखिले के लिए नए विद्यार्थियों की हर तरह से मदद करने में लगी है। डीयू हेल्पलाइन, ई-ओपन डेज, ओपन डेज, वेब चैट के अलावा अब फेसबुक को भी दाखिला प्रक्रिया में विद्यार्थियों की सहायता करना का जरिया बनाया गया है। फेसबुक पर विश्वविद्यालय ने अभी तक डीयू के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठय़क्रमों की दाखिला और पाठय़क्रमों और घोषणाओं से जुड़े सभी दस्तावेज डाल दिया है। जिससे विद्यार्थी आसानी से फेसबुक पर चैट करते हुए डीयू की दाखिला प्रक्रिया जान सकेंगे। फेसबुक पर विद्यार्थियों ने सवाल पूछना भी शुरू कर दिया है। फेसबुक पर डीयू के स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले को लेकर पूरी जानकारी डाल दी गई है। इसके अलावा डीयू का नया एडमिशन बुलेटिन भी इस पर उपलब्ध है। फेसबुक पर विश्वविद्यालय सामान्य और आरक्षित वर्ग के दाखिलों से जुड़ी पूरी जानकारी भी है। इसके अतिरिक्त केट परीक्षा, बीएलएड, एमए सोशल वर्क, फैकल्टी ऑफ साइंस, एमटेक पाठयक्रमों के दाखिले से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं।

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आईजीएमसी को डीम्ड विवि का दर्जा देने की मांग

इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज को डीम्ड यूनिवर्सिटी या स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया जाए। यह मांग स्टेट एसोसिएशन ऑफ मेडिकल एंड टीचर एसोसिएशन, रेजिडेंट डाक्टर एसोसिएशन, नर्सिंग एसोसिएशन सेंटर स्टूडेंट एसोसिएशन और कर्मचारी महासंघ के पदाधिकारियों ने प्रेस वार्ता के दौरान सरकार से की।
विभिन्न एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी स्वास्थ्य शिक्षा निदेशालय, स्वास्थ्य निदेशालय और प्रिंसिपल के अधीन हैं। यहां अब एमडी, डीएम बीएस नर्सिंग, रेडियॉलाजी सहित करीब १८ तरह की विभिन्न डिग्रियों के कोर्स शुरू हो चुके हैं। डेंटल कालेज का कार्य भी यहीं से जुड़ा रहता है। इतने कोर्स शुरू होने के बाद सरकार को चाहिए कि आईजीएमसी को एक डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दें। कई मर्तबा इस बारे में राज्य सरकार से प्रतिनिधिमंडल मिल चुका है लेकिन अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। आईजीएमसी में नियमित, अनुबंध और रोगी कल्याण समिति के तहत रखे गए कर्मचारी भी हैं। वेतन मान में असमानता है। इस स्थिति में एक ही पद पर काम करने वाले कर्मचारियों के बीच मन मुटाव की स्थिति हो जाती है। यह कर्मचारी विभिन्न विभागों के अधीन हैं। लिहाजा कर्मचारियों को लेकर महकमों का आपसी तालमेल भी नहीं बन पाता। फील्ड में तैनात स्टाफ और यहां के स्टाफ की कार्य शैली में काफी अंतर हैं। मौजूदा समय में आईजीएमसी में विभिन्न श्रेणियों के करीब सात सौ पद खाली चल रहे हैं। इस स्थिति में भी यहां से कर्मचारियों के तबादले अन्यत्र किए जा रहे हैं(अमर उजाला,शिमला,31.5.11)।

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लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी कैलिफोर्निया का स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ करार

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) ने कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के साथ करार किया है। यह मैनेजमेंट और कंप्यूटर स्टडीज के विद्यार्थियों को ट्विनिंग एवं एक्सचेंज प्रोग्राम में सहायक रहेगा। इसके साथ ही विद्यार्थियों के लिए सीएसयूएसबी में एक शिक्षण सत्र, एक्सचेंज प्रोग्राम, स्नातक डिग्री व मास्टर डिग्री करने के द्वार खोल दिए हैं।
सीएसयू के प्रेसिडेंट डा. एल्बर्ट ने कहा कि उत्तर भारत में एक मजबूत शिक्षा संस्थान के साथ गठबंधन करने की योजना थी। इसके तहत एलपीयू के साथ करार किया है। एलपीयू के कुलपति अशोक मित्तल ने कहा कि वैश्विक मार्केट के प्रति विद्यार्थी को सक्षम बनाने के लिए वैश्विक शिक्षा और मार्केट का ज्ञान देना जरूरी है। इसी कारण एलपीयू अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटियों के साथ करार कर चुका है(अमर उजाला,जालंधर,31.5.11)।

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डीयूःकुलपति बोले- कोर्स अहम, कॉलेज नहीं

डीयू में दाखिले के लिए पहुंच रहे छात्रों को कुलपति ने समझाया कि कॉलेज नहीं, कोर्स अहम है। उन्होंने सवाल किया कि अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम व लाल बहादुर शास्त्री आदि किस कॉलेज से पढ़े हैं, जो आज वह उन बुलंदियों तक पहुंचे।

कुलपति प्रो. दिनेश सिंह ने सोमवार को दक्षिणी परिसर स्थित एसपी जैन सेंटर में ओपन सेशन की शुरुआत करते हुए छात्रों से अपील की कि वह खुद को पहचानें और फिर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करें।

कुलपति ने छात्रों को बेहतर कॉलेज व कोर्स के चुनाव से परे बेहतर भविष्य पर नजर रखने का सबक दिया। उन्होंने पढ़ाई का मूल उद्देश्य रोजगार नहीं बल्कि बेहतर भविष्य व बेहतर नागरिक बनने की क्षमताओं का विकास करना बताया।

डीयू एक है और सभी कॉलेज उसके तहत आते हैं, ऐसे में अच्छा और खराब जैसा कुछ भी नहीं है। बीते साल शायद ही कोई ऐसा कॉलेज होगा, जिसके छात्र टॉपर्स की श्रेणी में न रहे हों।

ओपन डेज सेशन के मौके पर कुलपति ने डीयू फेसबुक एकाउंट की शुरुआत की और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि छात्र इसके जरिए न सिर्फ दाखिले की उलझनों का समाधान पाएंगे, बल्कि वह अपनी समस्याओं को भी उनसे साझा करेंगे।

न सिर्फ फेसबुक बल्कि vcforstudents@du.ac.in ई-मेल आईडी के जरिए भी वह छात्रों से सम्पर्क में हैं। कुलपति ने कहा कि तमाम माध्यमों से जुड़ने वाले छात्रों से वह नए सत्र की शुरुआत पर फिर से मुलाकात भी करेंगे और सीधे बात करेंगे।

वीकएंड के बाद हुई बम्पर शुरुआत :

शनिवार से शुरू हुए ओपन डेज सेशन में वीकएंड खत्म होने के साथ ही सोमवार को बम्पर भीड़ जुटी। दक्षिणी परिसर में डिप्टी डीन छात्र कल्याण के तौर पर दाखिला प्रक्रिया में छात्रों की मदद में जुटे प्रो. दिनेश सी वाष्ण्रेय ने बताया कि सोमवार को विभिन्न सेशंस में करीब 1200 छात्र-छात्राओं ने शिरकत की।

इस दौरान उनके सामने भी कई बार कोर्स, कॉलेज को लेकर सवाल आए, जिनका उन्होंने विभिन्न पक्षों के अधार पर जवाब दिया। प्रो. वाष्ण्रेय ने बताया कि सेशन के दौरान लगातार जारी सवाल कि फॉर्म कब से भरा जायेगा, आज भी बरकरार रहा।

हालांकि इसे लेकर अब ओपन डेज सेशंस के दौरान स्टूडेंट्स काउंसलर्स की मदद से ज्यादा से ज्यादा विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। ओपन डेज सेशन के शुरुआत सत्र में फेसबुल लांच के मौके पर डॉयरेक्टर साउथ कैम्पस प्रो.उमेश रॉय, डीन छात्र कल्याण प्रो.जेएम खुराना ने भी शिरकत की।

ई-ओपन डेज व ई-ब्रोशर उपलब्ध

डीयू की दाखिला प्रक्रिया में भीषण गर्मी से छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को राहत देने के उद्देश्य से सोमवार को फेसबुक के साथ-साथ ई ओपन डेज के साथ-साथ ई ब्रोशर भी जारी कर दिया गया है। डीयू वेबसाइट पर उपलब्ध इन दोनों ही सुविधाओं के माध्यम से छात्र-छात्राएं निशुल्क इंफोर्मेशन बुलेटिन डॉउनलोड कर सकते हैं।


यानी अब इसके लिए भी कैम्पस आने और 50 रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं है। इसी तरह ई-ओपन डेज के माध्यम से छात्र-छात्राएं घर बैठे ऑनलाइन अपनी तमाम समस्याओं का निदान विवि के एक्सपर्ट्स से पा सकते हैं(दैनिक भास्कर,दिल्ली,31.5.11)।
दैनिक जागरण की खबरः
छात्रों को कॉलेजों से ज्यादा कोर्स पर ध्यान देना चाहिए। जिस विषय में आपकी रूचि है। उसी विषय को पढ़ना चाहिए। कोर्स के सही चुनाव से ही आप बेहतर भविष्य की नींव रखेंगे। यह बात डीयू साउथ कैंपस के डिप्टी डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. दिनेश सी. वाष्र्णेय ने ओपन डेज काउंसलिंग के दौरान छात्रों से कहीं। ओपन डेज में करीब 1200 छात्रों ने भाग लिया। छात्रों के साथ उनके अभिभावक भी आए हुए थे। जिन्हें प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला आवेदन की मुख्य तिथियां बताई गई। ओपन डेज में भाग लेने के लिए छात्राएं अभिभावकों के साथ नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद से भी पहुंची हुई थीं। जिन्हें साउथ कैंपस में छात्र काउंसलर्स द्वारा अलग से बिठाकर मार्ग दर्शन किया गया। डीयू स्कूल ऑफ ओपन लर्निग की निदेशक प्रो. सविता दत्ता ने छात्रों से कहा कि इस बात को लेकर चिंतित न हों कि 70 से 80 फीसदी के बीच नंबर हैं। ऐसे में क्या उन्हें डीयू के रेगुलर कोर्स में दाखिला मिल सकेगा? ऐसे छात्रों को घबराना नहीं चाहिए। छात्र 15 जून का इंतजार करें। उस दिन पहली कट ऑफ लिस्ट जारी होगी। जिसमें किसी कॉलेज का अंक प्रतिशत अगर आपके बेस्ट ऑफ फॉर से मिलता है। तो, बिना विलंब कॉलेज में जाएं और दाखिला ले लें। इसके अलावा एसओएल और नॉन कॉलेजिएट फॉर वूमेन में दाखिला ले लें। जिसमें दाखिला एक जून से शुरू होने जा रहा है। खास बात यह है कि छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए विवि ने इस बार सभी कॉलेजों को निर्देश जारी किए हैं कि अगर छात्र अपना दाखिला कैंसिल कराना चाहे तो 24 घंटे के अंदर उसके प्रमाण पत्र कॉलेज वापस कर दें। इसके अलावा जिन छात्रों को अपने प्रमाण पत्र इंजीनियरिंग या मेडिकल काउंसलिंग के लिए चाहिए, वे कॉलेज को एक शपथ-पत्र लिखकर दें कि उन्हें ओरिजनल प्रमाण-पत्र इस संदर्भ में चाहिए। कॉलेज ऐसे छात्रों को शपथ-पत्र देने के कुछ ही देर बाद ओरिजनल प्रमाण पत्र लौटा देगा। यह इसलिए जरूरी है कि कॉलेज को यह पता रहे कि उसकी एक सीट खाली हो सकती है। जिसके आधार पर कॉलेज कोर्स सीटों पर दाखिला कर सकेंगे। डीयू के डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. जेएम खुराना ने कहा कि इस बार केवल एससी-एसटी और विकलांग छात्रों के दाखिला सेंट्रलाइज्ड आइसीआर दाखिला फॉर्म से हो रहे हैं। ओबीसी और सामान्य श्रेणी के छात्रों के दाखिले 15 जून को कट ऑफ जारी होने के बाद सीधे कॉलेजों में होंगे। इन छात्रों को किसी प्रकार का कोई दाखिला फॉर्म नहीं भरना है।

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चयन का मतलब नियुक्ति नहीं:दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी नौकरी के लिए चयनित किए जाने का मतलब नियुक्ति नहीं होता। 17 वर्ष पहले एक नौकरी के लिए चयनित एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह बात कही।

लाल बाबू (45) ने अपनी याचिका में न्यायालय से कहा था कि जून 1991 में तत्कालीन दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई अंडरटेकिंग (डेसू) में अनुसूचित जाति एवं जनजाति कोटे के तहत मेकेनिक के पद पर उसका चयन हुआ था। लेकिन 20 मई, 1993 को एक आधिकारिक पत्र में डेसू ने बाबू से कहा कि एससी/एसटी उम्मीदवार के लिए आरक्षित उस पद के लिए कोई जगह खाली नहीं है।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय ने गुरुवार को दिए अपने आदेश में कहा कि 17 वर्ष लंबी देरी दुखद है और याचिकाकर्ता को किसी तरह की राहत मिलने का हक समाप्त होने के लिए यह पर्याप्त है। इसके अलावा केवल चयन होने से ही किसी को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं मिल जाता।
बाबू ने 17 वर्षों तक इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन उसने पांच जून, 2010 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन किया। उसे सूचित किया गया कि एससी/एसटी श्रेणी में वहां रिक्तियां थीं, लेकिन डेसू इन रिक्तियों को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से भर रहा था।


उसके बाद बाबू ने दिल्ली सरकार और डेसू के महाप्रबंधक के यहां आवेदन कर कहा कि उसे उस पद पर नियुक्त किया जाए या मौजूदा कंपनी में उसी दर्जे की कोई वैकल्पिक नियुक्ति दी जाए। न्यायालय ने कहा, ''डेसू का अस्तित्व 1997 से ही समाप्त हो गया है और उसका उत्तरवर्ती, दिल्ली विद्युत बोर्ड 2002 से ही कई हिस्सों में बिखर गया है। तभी से डेसू की विभिन्न जिम्मेदारियां कई उपक्रमों को स्थानांतरित कर दी गई हैं।''(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.5.11)

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अब सीआईएसएफ जवानों को भी मिलेगी उच्च शिक्षा

केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवान व अधिकारी अब अपनी नौकरी के साथ उच्च शिक्षा भी हासिल कर सकेंगे।

सोमवार को सीआईएसएफ के महानिदेशक एनआर दास एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति वीएन राजशेखरन पिल्लई के बीच इस आशय का एक करार किया गया। इसके तहत, सीआईएसएफ के जवानों एवं अधिकारियों को सिक्योरिटी आपरेशन में स्नातकोत्तर व स्नातक कोर्स उपलब्ध होगा।

वहीं, मेट्रिकुलेशन तक की शिक्षा प्राप्त सीआईएसएफ के जवानों के लिए ब्रिज प्रोगाम कोर्स भी उपलब्ध होगा। सीआईएसएफ महानिदेशक दास के अनुसार सीआईएसएफ में ऐसे जवानों की बडी़ संख्या है, जिन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं आर्थिक तंगी के चलते कम उम्र में ही सीआईएसएफ की नौकरी ज्वाइन कर ली थी और नौकरी में रहते हुए इन जवानों को कभी उच्च शिक्षा का अवसर नहीं मिला।


इग्नू एवं सीआईएसएफ के इस साझे प्रयास के बाद अब इन जवानों को भी उच्च शिक्षा दिलाने का रास्ता साफ हो चुका है। वहीं, इग्नू के कुलपति वीएन राजशेखरन पिल्लई ने बताया कि सीआईएसएफ के जवानों एवं अधिकारियों के लिए तैयार किए गए कोर्स में तहत उन्हें औद्योगिक सुरक्षा प्रबंधन, आधुनिक सुरक्षा उपकरणों की भूमिका, आतंकवाद व नक्सलवाद से खतरा, सेफ्टी एण्ड सिक्योरिटी ऑडिट, आपदा प्रबंधन आदि विषयों में पारंगत किया जाएगा। 
इन कोर्स की मदद से सीआईएसएफ के जवानों को उच्च शिक्षा तो प्राप्त होगी ही, साथ ही उनकी कार्य क्षमता में भी इजाफा होगा। कार्यक्रम के दौरान सीआईएसएफ के अतिरिक्त महानिदेशक डा. कश्मीर सिंह, आईजी एचवी चतुर्वेदी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे(दैनिक भास्कर,दिल्ली,31.5.11)।

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दसवीं की परीक्षाःहरियाणा और हिमाचल में बेटियों का दबदबा

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने दसवीं कक्षा के दूसरे सेमेस्टर का परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया। रेगुलर परीक्षार्थियों का परिणाम 68.03 फीसदी और प्राइवेट का परिणाम 74.51 फीसदी रहा। इस बार भी लड़कियां आगे रहीं।

लड़कियों की सफलता का परीक्षा परिणाम लड़कों के मुकाबले पांच प्रतिशत अधिक रहा। इस बार कुल 3,37,166 परीक्षार्थी परीक्षा में बैठे थे, जिनमें से 2,29,390 परीक्षार्थी पास हुए। परीक्षा में 1,85,897 छात्रों मे से 1,22,331 छात्र पास हुए। इनकी पास प्रतिशतता 65.81 रही। वहीं 1,51,269 छात्राओं में से 1,07059 छात्राएं पास हुईं। इनकी पास प्रतिशतता 70.77 रही।

प्राइवेट स्कूल फिर आगे

सरकारी स्कूलों के 1,70,072 परीक्षार्थियों में से 1,01870 परीक्षार्थी पास हुए। इनकी पास प्रतिशतता 59.90 रही। वहीं प्राइवेट स्कूलों के 1,67,094 परीक्षार्थियों में से 1,27,520 परीक्षार्थी पास हुए, जिनकी पास प्रतिशतता 76.32 रही। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों के 68.78 फीसदी परीक्षार्थी पास हुए, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के 67.79 फीसदी परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए। प्राइवेट परीक्षार्थियों का परिणाम 74.51 प्रतिशत रहा। इस परीक्षा में 15,544 प्राइवेट परीक्षार्थियों में से 11,582 परीक्षार्थी पास हुए।

री-अपीयर 11 जुलाई तक

जिन परीक्षार्थियों को सितंबर की रि अपीयर, अतिरिक्त विषय या अंक सुधार की परीक्षा के लिए आवेदन पत्र भेजने है, वो 640 रुपए फीस के साथ आवेदन 20 जून तक बिना विलंब शुल्क जमा करा सकते है। इसके बाद 27 जून तक 100 रुपए, 4 जुलाई तक 300 रुपए और 11 जुलाई तक 1000 रुपए विलंब शुल्क देना होगा।

ऐसे जानें परिणाम

बोर्ड ने बीएसएनएल मोबाइल पर एसएमएस के जरिए परिणाम जानने की सुविधा उपलब्ध करवाई है। बीएसएनएल मोबाइल पर एसएमएस के माध्यम से एचआर10 के साथ रोल नंबर लिखकर उसे 56666 पर भेजना है। इसके अलावा बीएसएनएल लैंडलाइन पर 12501122 पर और बोर्ड मुख्यालय में स्थापित हेल्पलाइन नंबर 01664-254000 पर सुबह सात बजे से परिणाम उपलब्ध हो जाएंगे। बोर्ड की वेबसाइट http://bseh.gov.in, http://hbse.nic.in, www.indiaresults.com. www.schools9.com, www.examresults.com पर सुबह सात बजे से परिणाम देखा जा सकता है।


जिलावार पास प्रतिशत

जिला-कुल-छात्र-पास हुए-प्रतिशत
झज्जर 13063 10238 78.37
सोनीपत 20940 15646 74.72
महेंद्रगढ़ 15144 11234 74.18
भिवानी 27177 20000 73.59
रोहतक 14784 10820 73.19
मेवात 6296 4584 72.81
हिसार 25942 18824 72.56
रेवाड़ी 13799 9826 71.21
गुड़गांव 15311 10607 69.28
पानीपत 16145 11148 69.05
जींद 21823 14814 67.88
पलवल 15968 10660 66.76
सिरसा 16790 11061 65.88
फतेहाबाद 12739 8381 65.79
कुरुक्षेत्र 13836 8806 63.65
कैथल 16042 9963 62.11
फरीदाबाद 19319 11964 61.93
करनाल 20152 11600 57.56
पंचकूला 4868 2703 55.53
यमुनानगर 16389 8711 53.15

अंबाला 14865 7789 52.40

उधर,हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड ने मार्च 2011 में ली गई दसवीं की परीक्षा का परिणाम सोमवार को घोषित कर दिया। मेरिट के पहले दस स्थानों पर 20 परीक्षार्थियों ने जगह बनाई है। लक्ष्य पब्लिक स्कूल अर्की (सोलन) की कृतिका शर्मा ने 675 अंक लेकर प्रथम, मिनरवा सीनियर सेकंडरी स्कूल घुमारवीं (बिलासपुर)के आदित्य शर्मा और एसवीएम हाई स्कूल आनी (कुल्लू) के प्रतीक ठाकुर ने संयुक्त रूप से 674 अंक हासिल कर दूसरे जबकि ब्राइट सन सीनियर सेकंडरी स्कूल मैहरे (हमीरपुर) की अंकिता ने 672 अंक लेकर मेरिट में तीसरा स्थान झटका है।

मेरिट सूची में लड़कियों का दबदबा बरकरार रखते हुए मेरिट के कुल 20 स्थानों में से 14 पर जगह बनाई है जबकि लड़कों को मात्र 6 स्थान ही मिल पाए हैं। दसवीं की मेरिट सूची में सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा है। मेरिट के 20 स्थानों में से 18 पर निजी स्कूल जबकि 2 स्थानों पर ही सरकारी स्कूलों के परीक्षार्थी पकड़ बना सके। 

जिला कांगड़ा, बिलासपुर और कुल्लू के 4-4, मंडी से 3, सोलन और हमीरपुर से 2-2 और ऊना जिला के 1 परीक्षार्थी ने मेरिट में स्थान पाया है। बोर्ड अध्यक्ष वीसी फारका ने कहा, परीक्षा में 1,25,155 परीक्षार्थी बैठे थे। इनमें से 77,700 परीक्षार्थी पास हुए और 22,475 परीक्षार्थी कंपार्टमेंट घोषित किए गए। परीक्षा परिणाम 62.08 फीसदी रहा। 

62.08 फीसदी रहा रिजल्ट

परीक्षा परिणाम 62.08 फीसदी रहा। कंपार्टमेंट की परीक्षा 5659 परीक्षार्थियों दी थी। इसमें से 4198 परीक्षार्थी पास हुए। परीक्षा परिणाम 74.18 फीसदी रहा। श्रेणी सुधार एवं अतिरिक्त विषय की परीक्षा 331 परीक्षार्थियों ने दी जिनमें से 296 परीक्षार्थी पास हुए। परिणाम प्रतिशतता 89.42 फीसदी रहा। रिजल्ट बोर्ड की वेबसाइट www.hpeducationboard.nic.in पर भी उपलब्ध हैं(दैनिक भास्कर,31.5.11 में भिवानी और धर्मशाला संवाददाता की रिपोर्ट)।

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राजस्थानःपटवारी भर्ती परीक्षा आयु सीमा में मिली छूट

राजस्थान उच्च न्यायालय ने पटवार भर्ती परीक्षा में प्रवेश के लिए आयु छूट से संबंधित याचिकाओं का निस्तारण करते हुए उन सभी अभ्यर्थियों को परीक्षा में शामिल करने के आदेश दिए हैं। जो 1 जनवरी 2009, 1 जनवरी 2010 तथा 1 जनवरी 2011 को निर्धारित आयु सीमा के अंदर परीक्षा में प्रवेश के योग्य थे। यह आदेश न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने डीडवाना के भगवान सिंह राठौड़ सहित 15 अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता तंवरसिंह राठौड़, एमआर चौधरी, डॉ. पीएस भाटी, एडी चारण ने कहा कि सभी याचिकाकर्ता पटवार ट्रेनिंग स्कूल में प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए आयु सीमा में छूट चाहते हैं। जिसमें सफल होने के बाद पटवारी पद पर नियुक्ति मिल सके।


अधिवक्ताओं ने कहा कि राजस्थान लैंड रेवेन्यू (लेंड रिकॉर्डस) रूल्स 1957 के तहत आयोजित की जा रही है व इसके लिए 7 मार्च 2011 को प्रकाशित विज्ञप्ति के अनुसार आयु सीमा योग्यता कम से कम 18 वर्ष तथा अधिकतम 30 वर्ष निर्धारित की गई है। उन्होंने कहा कि रेवेन्यू बोर्ड की ओर से अंतिम परीक्षा 11 जुलाई 2008 को आयोजित की गई थी, इसलिए अभ्यर्थियों को तीन वर्ष तक की छूट प्रदान की जाए।
अधिवक्ताओं ने तर्क देते हुए कहा कि राज्य सरकार ने 23 सितंबर 2008 को हर वर्ष भर्ती नहीं कर सकने के कारण सेवा नियमों में संशोधन करते हुए करीब 72 सेवाओं की भर्ती परीक्षा में 3 वर्ष तक की छूट प्रदान की थी। दूसरी ओर अदालत में सरकारी अधिवक्ता संदीप भांडावत ने कहा लेंड रेवेन्यू रूल्स 1957 में इस तरह का संशोधन नहीं किया गया है। साथ ही इसके नियमों के अनुसार रेवेन्यू बोर्ड हर वर्ष परीक्षा आयोजित करने के लिए बाध्य नहीं है।

इस पर न्यायालय ने एसबी सिविल रिट पिटीशन 3506/2011 सहित संविधान के आर्टिकल 14 व 16 में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में जनहित में निर्णय करते हुए अभ्यर्थियों को उचित छूट के आदेश दिए(दैनिक भास्कर,जोधपुर,31.5.11)।

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कॉमर्स है काम का

देश की आर्थिक प्रगति के साथ सर्विस सेक्टर का तेजी से बढ़ना स्वाभाविक है। इसमें हुनर आधारित उद्योग धंधों में रोजगार के अवसर के अलावा तमाम ऐसे रोजगार भी शामिल होते हैं जिनके बिना आगे बढ़ पाना संभव नहीं है। किसी भी इंडस्ट्री के लिए ऐसा ही एक भरा पूरा कार्यक्षेत्र है कॉमर्स से संबंधित विभिन्न विधाओं का जिसके एक्सपर्ट्स की जरूरत हमेशा ही इंडस्ट्री और कॉर्पोरेट क्षेत्र में रहती है। कॉमर्स का मतलब आजकल के संदर्भ में महज हिसाब-किताब करने या बही खाता तैयार करने तक सीमित नहीं है। इस विषय में माहिर लोगों को अब टॉप मैनेजमेंट में कंपनी सेक्रेटरी, चार्टर्ड एकाउंटेंट, फाइनेंशियल एडवाइजर, इन्वेस्टमेंट एनालिस्ट, वेंचर कैपिटलिस्ट आदि के तौर पर शामिल किया जाता है। बाद में ये निदेशक मंडल या प्रबंध निदेशक सरीखे पदों तक भी पहुंचते हैं। जाहिर है, रुतबे और सैलरी में ये काफी आकर्षक पद कहे जा सकते हैं। मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकांश प्रोफे शनल्स का एकेडेमिक कॅरिअर बीकॉम सरीखी डिग्रियों की बदौलत ही आगे बढ़ता चला जाता है। बाद में कार्य अनुभव और अन्य स्पेशियलिजेशन की ट्रेनिंग लेते हुए सफलता की सीढियां चढ़ते जाते हैं। यह जरूर है कि तरक्की पाने के लिए इस क्षेत्र में भी मेहनती और लगनशील होने के अलावा धैर्यवान होना बहुत जरूरी है। तो आइए बात करें कुछ ऐसे ही ट्रेडिशनल कॉमर्स कोर्सेस की :-बीकॉम

१. बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के इस कोर्स में आसानी से दाखिला लिया जा सकता है और कई कॉलेजों में तो इवनिंग कोर्स के रूप में भी यह उपलब्ध है और तो और कॉरेस्पोंडेंस से भी नौकरी के साथ-साथ भी यह कोर्स कर सकते हैं।

२. कोर्स में एकाउंट्स, कॉमर्स, इकोनॉमिक्स आदि का समन्वय होने से कई प्रकार के जॉब्स के ऑप्शंस उपलब्ध हो जाते हैं।

बीकॉम (ऑनर्स)

१. इस बेहतरीन कोर्स में मेरिट के आधार पर आमतौर पर दाखिले दिए जाते हैं। नामी कॉलेजों से यह कोर्स करने वालों के लिए कैंपस प्लेसमेंट के जरिए आसानी से जॉब्स के ऑफर मिल जाते हैं।

२. इस कोर्स का सिलेबस इतना अपडेट है कि आईसीएआई का सीए कोर्स करने वालों के लिए काफी आसानी हो जाती है।

बीबीए

१. बिजनेस के क्षेत्र में एडमिनिस्ट्रेशन के काम काज में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह कोर्स काफी उपयोगी कहा जा सकता है। हालांकि बाद में एमबीए करने के बारे में भी सोच सकते हैं ताकि और जल्द टॉप मैनेजमेंट के स्तर पर पहुंच सकें। यह कोर्स भी नियमित के अलावा कॉरेस्पोंडेंस माध्यम से किया जा सकता है।

२. इसके बाद विदेशों में मैनेजमेंट की पढ़ाई के बारे में सोचा जा सकता है और सेल्फ एंप्लायमेंट की राहें भी हो सकती हैं।


बीबीएस

१. देश के गिने चुने संस्थानों में ही फिलहाल यह कोर्स संचालित किया जाता है, इसीलिए एंट्रेंस एग्जाम के आधार पर एडमिशन दिए जाते हैं। यही कारण है कि कैंपस प्लेसमेंट की बेहतरीन संभावनाएं इस डिग्री के बाद हो सकती हैं।

२. आमतौर से बड़े कॉर्पोरेट घरानों की कंपनियों में यहां के विद्यार्थियों को नियुक्त करने की होड़ होती है। ऐसे में यहां के डिग्री धारकों को काफी आकर्षक वेतन-पैकेज मिलना बड़ी बात नहीं है।

सीए

१. इस कोर्स के जरिए एकाउंटिंग, ऑडिटिंग और टेक्सेशन का एक्सपर्ट बना जा सकता है। इसमें दाखिले के लिए कोई मारा मारी नहीं होती है। सिर्फ घर बैठे तैयारी कर संस्थान के पेपर्स में पास होना जरूरी होता है। अब तो बहुत सारे कोचिंग संस्थान भी अस्तित्व में आ गए हैं जो इसके पेपर्स की तैयारी करवाते हैं।

२. हालांकि इस कोर्स में पास होने वाले छात्रों की संख्या काफी कम होती है लेकिन मेहनत करने वाले युवाओं के लिए यह बेहद कारगर कार्य क्षेत्र हो सकता है। एक बार डिग्री हासिल करने के बाद पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं पड़ती। स्वतंत्र तौर पर भी इस प्रोफेशन की प्रैक्टिस की जा सकती है।

कंपनी सेक्रेटरीशिप

१. यह अत्यंत प्रतिष्ठित कोर्स में से एक माना जाता है। बिना नियमित कक्षा आयोजित किए जाने वाले इस कोर्स में भी युवाओं को निर्धारित पेपर्स में साल-दर-साल पास होने की जरूरत पड़ती है। साथ में इंटर्नशिप के जरिए कार्य अनुभव भी जुटाने की बाध्यता होती है।

२. किसी भी कंपनी में इन प्रोफेशनल की काफी अहम भूमिका होती है। इनका काम सरकारी कंपनी लाके क्रियान्वयन का दायित्व कंपनी की ओर से संभालना है। एक प्रकार से मैनेजमेंट और सरकारी नियमों व कायदों के बीच की कड़ी का काम ये करते हैं। ये हमेशा अपने काम की वजह से सीधे टॉप मैनेजमेंट के संपर्क में रहते है।

कॉस्ट एंड मैनेजमेंट एकाउंटेंसी (आईसीडब्ल्यूए) 

१. इस ब्रांच का उदय हाल के वर्षों में ही हुआ है। इनका काम बढ़ते कंपीटिशन के दौर में कंपनी की विभिन्न लागतों एवं फाइनेंशियल मिसमैनेजमेंट को रोकना है। अब तो सरकारी तौर पर भी कॉस्ट एकाउंटेंट्स की नियुक्ति कंपनी के टर्नओवर के अनुसार अनिवार्य करने की योजना है।

२. इनके लिए सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के अतिरिक्त इंश्योरेंस एवं इन्वेस्टमेंट कंपनियों में जॉब्स के बेहतरीन अवसर हो सकते हैं। इन सबके अलावा कई अन्य उभरते हुए ऐसे कोर्सेज हैं जिनका आधार कॉमर्स है और जिनके जरिए कॅरिअर की मजबूत नींव रखी जा सकती है। इनमें खासतौर से फोरेंसिक एकाउंटेंसी, इन्वेस्टमेंट बैंकिंग, बैचलर ऑफ एकाउंट्स एंड फाइनेंस, बी (बैंकिंग एंड फाइनेंस), बैचलर ऑफ फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट एनालिसिस का उल्लेख किया जा सकता है। इनमें से प्रत्येक का अपना खास महत्व है और स्पेशियलाइजेशन के जरिए इनमें कॅरिअर की बुलंदियों को हासिल किया जा सकता है।
(अशोक सिंह,नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)

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यूपीःशिक्षामित्रों के प्रशिक्षण पर लगी रोक हटी

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो जजों की खण्डपीठ ने सोमवार को एकल जज के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसके तहत प्रदेश सरकार की उस नीति पर रोक लगा दी थी जिसमें यह व्यवस्था थी कि स्नातक शिक्षा मित्र को अध्यापक की ट्रेनिंग करायी जाय। यह ट्रेनिंग इसलिए करायी जा रही थी ताकि ये प्रशिक्षित शिक्षा मित्र प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापकों के पदों पर नियुक्ति के लिए अर्ह हो जांय। शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग पर लगी रोक को निरस्तकर उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने इस मामले को सुनवाई के लिए पुन: एकल जज के समक्ष भेज दिया तथा इस पर सुनवाई के लिए 12 जुलाई की तिथि भी तय कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल व न्यायमूर्ति भारती सप्रू की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार व उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र एसोसिएशन एवं दो अन्य की विशेष अपीलों पर सुनवाई के बाद पारित किया। न्यायाधीशों ने यह भी आदेश दिया कि शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) याचिका पर पारित अंतिम आदेश पर आधारित होगा। मालूम हो कि हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने 18 मई 2011 को आदेश पारित कर शिक्षामित्रों को अध्यापक की ट्रेनिंग कराने की उत्तर प्रदेश सरकार की नीति पर रोक लगा दी थी तथा पक्षकारों से जवाब मांगा था। एकल जज के इस आदेश को हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ के समक्ष विशेष अपील दायरकर विभिन्न आधारों पर चुनौती दी गयी थी। अपील में शिक्षामित्रों की तरफ से प्रदेश सरकार के स्थाई अधिवक्ता ने बहस की तथा कहा कि शिक्षामित्रों को जो ग्रेजुएट हैं उन्हें ही ट्रेनिंग कराने का सरकारी नीति में प्रावधान बनाया गया है जो शिक्षामित्र ग्रेजुएट नहीं हैं, उन्हें ट्रेनिंग कराने का प्रावधान प्रदेश सरकार की नीति में नहीं है। यह भी कहा गया था कि केवल पांच बीएड डिग्री धारकों ने याचिका दायर कर शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग पर रोक का आदेश प्राप्त कर लिया था। रोक हटाने पर अनुदेशक शिक्षकों ने प्रसन्नता जाहिर की है। फैसले का आदर्श अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशक/पर्यवेक्षक एसोसिएशन ने स्वागत किया है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष चतुर्भज सिंह ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले से प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों की कमी दूर होगी। साथ ही लंबे समय से शिक्षक बनने के लिए संघर्ष कर रहे अनुदेशकों/पर्यवेक्षकों को भी शिक्षक बनने का रास्ता साफ होगा(राष्ट्रीयसहारा,इलाहाबाद-लखनऊ,31.5.11)।

अमर उजाला की रिपोर्ट भी देखिएः
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालयों में तैनात स्नातक शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देकर शिक्षक बनाने पर रोक लगाने के एकल न्यायाधीश के आदेश को सोमवार को रद कर दिया। न्यायालय ने कहा कि शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण की प्रक्रिया जारी रखी जाए मगर अंतिम निर्णय याचिका के निस्तारण पर निर्भर करेगा। इसके बाद से प्रदेश के तकरीबन एक लाख २४ हजार शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देने का रास्ता फिलहाल साफ हो गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायमूर्ति भारती सप्रू की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार और शिक्षा मित्रों के संगठनों की ओर से दाखिल विशेष अपील पर दिया।
अपील पर वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन सिंह ने कहा कि बीएड डिग्री धारकों की याचिका पर एक पक्षीय आदेश पारित करते हुए प्रशिक्षण पर रोक लगा दी गई जबकि बीएड डिग्रीधारकों को ऐसी याचिका दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं है। इस मामले में एनसीटीई के अधिवक्ता रिज़वान अली अख्तर ने भी अपना पक्ष रखा। खंडपीठ ने न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी द्वारा पारित १८ मई के आदेश को यह कहते हुए रद कर दिया कि यह सरकार का नीतिगत फैसला है। न्यायालय ने दोनों पक्षों से अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। न्यायालय ने याचिका को पुनः एकल पीठ को भेजते हुए निर्देश दिया है कि दोनों पक्षों की याचिकाओं को सुनकर गुणदोष के आधार पर निर्णय दिया जाए। याचिका पर अगली सुनवाई १२ जुलाई नियत की गई है। गौरतलब है कि प्रदेश के बीएड डिग्री धारकों की ओर से संतोष कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देकर सहायक अध्यापक बनाने की योजना को चुनौती दी गई। कहा गया कि बेसिक शिक्षा अधिनियम के अनुसार शिक्षामित्र शिक्षकों की श्रेणी में नहीं आते हैं। इनकी नियुक्ति अल्प समय केलिए की गई थी। इस पर सुनवाई के बाद एकल न्यायपीठ ने प्रशिक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।
महत्वपूर्ण तथ्य
प्रदेश में एक लाख २४ हजार स्नातक शिक्षा मित्र हैं जिन्हें शिक्षक बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है
उन्हें शिक्षण कार्य का प्रशिक्षण देने के लिए लगभग एक हजार मास्टर टे्रनर तैयार किए जा रहे
प्रदेश में शिक्षकों की कमी देख एमएचआरडी ने एनसीटीई से पास कराया विशेष प्रस्ताव
एनसीटीई ने भी किया था विरोध, स्नातक डिग्रीधारियों के लिए हुआ सरकार से समझौता
दो चरणों में दी जाएगी साल भर की टे्रनिंग, इस दौरान मिलेगा पूरा मानदेय
स्नातक शिक्षा मित्रों को संबंधित गांवों में ही सहायक अध्यापक बनाने का प्रस्ताव
असेवित विकास खंडों में विशेष तौर पर भेजे जाएंगे स्नातक शिक्षा मित्र

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एआईपीएमटी के नतीजे घोषित

सीबीएसई ने ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) के नतीजे घोषित कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ की रूपाली जैन ने ऑल इंडिया मेरिट सूची में दूसरा स्थान हासिल किया है। 15 मई को हुई मुख्य परीक्षा में 26060 विद्यार्थी बैठे थे। सामान्य श्रेणी के लिए बनाई गई मेरिट लिस्ट में एक से 1880 रैंक तक के छात्रों को रखा गया है। इसी श्रेणी में तैयार की गई प्रतीक्षा सूची में 1881 से 3760 रैंक तक के छात्रों को रखा गया है।

2 लाख में से अंतिम 1778 चयनित : 3 अप्रैल को हुई प्रारंभिक परीक्षा में देशभर से 2 लाख 7 हजार 590 परीक्षार्थी बैठे थे, इसमें से 26,060 मैन्स के लिए चयनित हुए। मैन्स में मात्र 1778 परीक्षार्थी सलेक्ट हुए हैं।

कट ऑफ स्कोर

341 - सामान्य वर्ग

259 एससी वर्ग

192 एसटी

एआईपीएमटी में तीनों विषयों में सामान्य वर्ग के लिए न्यूनतम 50 फीसदी और एससी,एसटी व ओबीसी वर्ग के लिए 40 फीसदी अंक लाने वालों को मेरिट सूची में शामिल किया गया है, मेरिट सूची के बराबर ही वेटिंग सूची जारी की गई है।


अब एम्स में टॉपर बनने का सपना

रूपाली जैन (18), एआईआर-2

निवासी- राजनांदगांव, छत्तीसगढ़

पिता- मनोहर कांत जैन, एलआईसी एजेंट


मां- सुंदर जैन, गृहिणी 

बचपन में नर्सरी से ही मैं डॉक्टर बनने का सपना देखती थी, स्कूल में हमेशा टॉपर रही। मैने हर एग्जाम में अपना बेस्ट किया, कभी कोई टेंशन नहीं ली। जब आप इनपुट अच्छा देंगे तो आउटपुट ऐसा ही मिलता है। मैने रेगुलर स्टडी पर बहुत फोकस किया। इससे पहले इसी साल बीएचयू प्री-मेडिकल में टॉपर रही रूपाली छत्तीसगढ़ पीएमटी में भी टॉपर रही, लेकिन वह रिजल्ट फिलहाल निरस्त हो गया है। 

उसका सपना एम्स में टॉपर बनने का है, जिसकी परीक्षा 1 जून को है। वह एम्स से कॉर्डियो सर्जन या न्यूरो सर्जन बनना चाहती है। कोटा में नेशनल लेवल का कंपीटीशन मिलने से उसे यह सफलता मिली है। उसने यहां 2 साल एलेन कैरियर संस्थान से कोचिंग ली है(दैनिक भास्कर,दिल्ली-कोटा,31.5.11)।


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नृत्य संरचना में करिअर

नृत्य कला को भारत की प्राचीन कलाओं में से एक माना जाता है और वर्तमान में भी इस विधा को उतनी ही अहमियत दी जाती है, जितनी उस वक्त दी जाती थी। भारतीय नृत्य कला ऐसा ही हुनर है, जिसमें काफी परिश्रम के साथ समझ की भी आवश्यकता होती है। फिल्मों, सीरियलों तथा इवेंटों में नृत्य का प्रशिक्षण देने वाले को नृत्य संरचनाकार (कोरियोग्राफर) कहते हैं। नृत्य प्रशिक्षक वह व्यक्ति होता है जो नृत्य करने वालों के मूवमेंट्स को समरूपता प्रदान करता है, इसके साथ ही स्टेज पर नृत्य के लिए तमाम आवश्यकताओं का ध्यान रखना, डांसर्स की कॉस्ट्यूम आदि के बारे में निर्णय लेना भी नृत्य संरचनाकार का ही काम होता है। नृत्य प्रशिक्षक अपनी स्वयं की रचनाएं भी करते हैं और तरह-तरह के संगीत पर उसका समायोजन करते हैं। वह परफॉर्मेंस में अपना विजन लाने का प्रयास करता है और इस तरह का काम वही व्यक्ति कर सकता है जो स्वयं इस विधा में माहिर हो। अतः यदि आप भी इस क्षेत्र को अपनाने के विषय में सोच रहे हैं तो अपनी रुचि के साथ-साथ अपने भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने का यह एक अच्छा माध्यम हो सकता है। सभी नृत्य संरचनाकार मूल रूप से बहुत अच्छे डांसर होते हैं लेकिन सभी डांसर नृत्य संरचनाकारनहीं होते। डांसर्स को अभ्यास और प्रतिभा दोनों की दरकार होती है जबकि नृत्य संरचनाकार में अनुभव, कल्पनाशीलता और नया सृजन करने की क्षमता होनी चाहिए। फिल्म एंड म्यूजिक वीडियो नृत्य प्रशिक्षण, इवेंट नृत्य प्रशिक्षण, फैशन नृत्य प्रशिक्षक और अन्य क्षेत्रों में योग्य उम्मीदवार अपना कॅरिअर बना सकते हैं। मॉडलिंग के क्षेत्र में रैंप पर भी आजकल मॉडल्स संगीत की स्वर लहरियों के साथ कैटवॉक करती नजर आती हैं। इन मॉडल्स को इस हुनर में माहिर करने का काम फैशन नृत्य संरचनाकार का ही होता है। रचनात्मकता तो उम्मीदवार में सर्वोपरि है ही, लेकिन इस क्षेत्र का गहरा ज्ञान, कल्पनाशीलता, घंटों तक रियाज करने और करवाने की क्षमता, धैर्य, लय-ताल का ज्ञान, संगीत की अच्छी समझ, प्रस्तुतिकरण में दक्षता भी जरूरी है। नृत्य ऊर्जा की दरकार रखने वाली ही एक विधा है अतः इस चीज की भी जरूरत है। उम्मीदवार की फिजिकल फिटनेस भी इस क्षेत्र में काफी मायने रखती है।


देश के कई संस्थान नृत्य में एक और दो वर्षीय पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। इन कोर्सेज के लिए उम्मीदवार का बारहवीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। कुछ प्रतिष्ठित नृत्य संरचनाकारों ने अपने प्रशिक्षण संस्थान भी स्थापित किए हुए हैं। इनके माध्यम से उम्मीदवार को न केवल प्रशिक्षण मिलता है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर वे इनकी मदद से फिल्मों और टेलीविजन पर भी काम प्राप्त कर सकते हैं। नृत्य प्रशिक्षकों के लिए अवसरों की कोई कमी नहीं है। वे टेलीविजन, फिल्म, वीडियो कंपनियों, निजी एजुकेशनल सेवाओं, मॉडलिंग एजेंसियों और इवेंट मैनेजर्स कंपनियों के साथ काम कर सकते हैं। डांस स्टूडियो, यूनिवर्सिटी, परफॉर्मिंग आर्ट कंपनियों में भी उनके लिए काम की कमी नहीं है। नृत्य संरचनाकार के रूप में एक बार स्वयं को स्थापित कर लेने के बाद नाम और धन दोनों ही आपके पास होंगे। कार्य और अनुभव के आधार पर उम्मीदवार की आय भी तय हो जाती है। भारत में इस क्षेत्र की उजली संभावनाएं कही जा सकती हैं
कहां से करें कोर्स

१. संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली।

२. भारतीय कला केंद्र, नई दिल्ली 

३. डांस वर्क परफॉर्मिंग आर्ट्स एकेडमी, नई दिल्ली।

४. फैकल्टी ऑफ यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर, मैसूर ।

५. गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ डांस एंड म्यूजिक, भुवनेश्वर।
(जयंतीलाल भंडारी,नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)

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कॉस्मेटोलॉजिस्ट के तौर पर करिअर

फैशन के इस दौर में हर कोई अपटूडेट और सुंदर दिखना चाहता है। आंतरिक सुंदरता के अलावा बाहरी खूबसूरती भी बहुत मायने रखती है। खासतौर से लड़कियां और महिलाएं अपनी बाहरी सुंदरता और व्यक्तित्व को लेकर बेहद सजग रहती है। यही वजह है कि बाहरी सुंदरता प्रदान करने वाली कॉस्मेटोलॉजी अब युवाओं के लिए एक बेहतरीन करियर विकल्प के रूप में उभर रही है।

सुंदरता के बढ़ते बाजार की वजह से इस क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की मांग भी अब बहुत बढ़ चुकी है। कॉस्मेटोलॉजी के अंतर्गत ब्यूटी केयर से संबंधित अध्ययन किए जाते हैं। साथ ही प्रैक्टिकल जानकारी भी दी जाती है। इसमें ब्यूटी थैरेपी से लेकर हेल्थ केयर तक सभी कुछ शामिल है जिसमें चेहरे, शरीर और बालों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए तरह-तरह के ट्रीटमेंट्स और थैरेपी के इस्तेमाल आदि की जानकारी दी जाती है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले की उम्र और अनुभव बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। इस क्षेत्र में जरूरी है समय के साथ चलना और लेटेसट फैशन ट्रेंड्स का पालन करना क्योंकि ब्यूटी और फैशन दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां नित नए ट्रेंड्स आते रहते हैं। हेयरस्टाइलिंग, स्किन केयर, कॉस्मेटिक्स, मैनिक्योर, पैडिक्योर और इलेक्ट्रोलॉजी आदि की जानकारी होना इस क्षेत्र की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं हैं।

योग्यता

कॉस्मेटोलॉजिस्ट हमारी खूबसूरती की प्रोफेशनली देखभाल करते हैं। इनमें मेडिकल और नॉन मेडिकल दोनों ही तरह के कॉस्मेटोलॉजिस्ट शामिल हैं। हालांकि ये दोनों काम लगभग एक जेसा ही करते हैं पर इनके काम करने का तरीका, उपकरणों का इस्तेमाल और योग्यताएं अलग-अलग होती हैं। मेडिकल कॉस्मेटोलॉजिस्ट या कॉस्मेटिक डरमाटोलॉजिस्ट बनने के लिए आपके पास एमबीबीएस के बाद डरमाटोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री होनी चाहिए। वहीं नॉन मेडिकल कॉस्मेटोलॉजिस्ट बनने के लिए ऐसी किसी योग्यता की दरकार नहीं है। आपके पास बस अनुभव और हाथ का हुनर होना चाहिए। इस क्षेत्र में आप स्कूल पास करने के बाद भी प्रवेश कर सकते हैं और कुछ समय की प्रेक्टिस के बाद अपना ब्यूटी पार्लर भी शुरू कर सकते हैं। आप चाहें तो किसी ब्यूटी स्कूल से ट्रेनिंग भी ले सकते हैं।

करियर विकल्प

कॉस्मेटोलॉजी में कई क्षेत्रों का समावेश है जैसे हेयर स्टाइलिंग, मैनिक्योर-पैडिक्योर, स्किन केयर ट्रीटमेंट्स और इलेक्ट्रोलिसिज आदि। आप चाहें तो हर क्षेत्र में अपने हाथ आजमा सकते हैं और चाहें तो किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। वहीं मेडिकल कॉस्मेटोलॉजी एक वैज्ञानिक क्षेत्र है। मेडिकल कॉस्मेटोलॉजिस्ट बतौर कॉस्मेटिक सर्जन किसी अस्पताल से अपना करियर शुरू कर सकते हैं। या फिर कॉस्मेटिक कंपनी या इंडस्ट्री में भी इन्हे नौकरी मिल सकती है। आप चाहें तो ब्यूटी सैलून, स्पा सेंटर, रिजॉर्ट्स, पांच सितारा होटलों आदि में भी काम कर सकते हैं।



अगर आप अपना ब्यूटी पार्लर शुरू करते हैं तो तीन हजार से दस हजार रुपए तक कमा सकते हैं। वहीं एक मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर आप ५०० से चार हजार रुपए या इससे अधिक भी एक व्यक्ति के मेकअप के ले सकते हैं। वहीं हेयर ड्रेसिंग करके आप १५०० से २५०० रुपए तक कमा सकते हैं(कोमिका भारद्वाज,नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)

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निजी सुरक्षा के क्षेत्र में करिअर

शहरी क्षेत्र हो या गांव देहात के युवा, निजी सुरक्षा का क्षेत्र रोजगार देने के मामले में सबसे आगे निकल चुका है। देश भर में विभिन्न स्तर की १८ से २० हजार सिक्योरिटी कंपनियां ६० लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रही हैं। खास बात है कि अब प्रशिक्षित पेशेवरों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। निजी कंपनियों के पास इतना समय और संसाधन नहीं हैं कि वह अपने गार्डस को उचित प्रशिक्षण दे सकें। इसलिए कई संस्थान प्रशिक्षण देने के मामले में आगे आ रहे हैं। राजधानी में ही नगर निगम, एनडीएमसी, व्यापार एवं कर विभाग, आयकर विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग और इसी तरह के कई सरकारी विभाग भी निजी सुरक्षा एजेंसियों पर निर्भर होते जा रहे हैं। नगर निगम तो अपने यहां चौकीदारों के पद ही समाप्त करने जा रहा है। एक और खास बात कि निजी सिक्योरिटी कंपनियों के गार्डों को सरकारी विभागों में तैनात होने पर वेतन भी अच्छा मिलने लगा है।

इस क्षेत्र में सिक्योरिटी गार्ड से लेकर सुपरवाइजर और ऊंचे पदों पर पहुंचने का रास्ता हमेशा खुला रहता है। जरूरत है इस क्षेत्र में रोजगार तलाशने से पहले खास प्रशिक्षण की।

कैसे-कैसे कोर्स

चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर के लिए सर्टिफिकेट कोर्स आदि के दौरान फायर फाइटिंग से लेकर आपदा प्रबंधन तक के गुर सिखाए जाते हैं। एचएससी जैसे कोर्स भी किए जा सकते हैं। पोस्ट डिप्लोमा इन सिक्योरिटी मैनेजमेंट और अडवांस सर्टिफिकेट कोर्स भी किए जा सकते हैं। इसके अलावा फायर सेफ्टी का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया जाए तो सोने पे सुहागा साबित हो सकता है। इसमें बीएससी इन फायर टेक्नोलॉजी जैसे कोर्स किए जा सकते हैं। कोर्स की अवधि छह माह से एक साल व दो साल की है।

शैक्षिक योग्यता

भिन्न-भिन्न कोर्स के लिए शैक्षिक योग्यता दसवीं से ग्रेजुएट तक है। फायर सेफ्टी से संबंधित कोर्सों के लिए विज्ञान विषयों के साथ पास होना भी जरूरी है। प्रशिक्षण के पश्चात १० से १८ हजार रुपए मासिक के बीच नौकरी मिल जाती है।


किन क्षेत्रों में हैं संभावनाएं

किसी अच्छे संस्थान से प्रशिक्षण के पश्चात खुद का काम शुरू किया जा सकता है। हालांकि निजी सुरक्षा गार्डों की जरूरत औद्योगिक इकाईयों और बाजारों में पड़ती है। लेकिन अब नगर निगम, एनडीएमसी, व्यापार एवं कर विभाग, आयकर विभाग सहित कई सरकारी विभागों में भी निजी सिक्योरिटी गार्ड्स की मांग बढ़ गई है।

सेंटर फॉर फायर सेफ्टी मैनेजमेंट एंड ट्रेनिंग के जैड एस लाकड़ा का कहना है कि रोजगार तलाशने से पहले यदि सही प्रशिक्षण मिल जाए तो व्यक्ति को आगे बढ़ने में परेशानी नहीं होती। फेडरेशन ऑफ सिक्योरिटी एजेंसीज के अध्यक्ष अनिल धवन का कहना है कि बड़ी सिक्योरिटी कंपनियों की जिम्मेदारी आज के समय में ज्यादा बढ़ गई है। कारण है कि उनके ऊपर प्रमुख संस्थानों की जिम्मेदारी होती है। सभी बड़ी निजी सुरक्षा कंपनियों ने गार्ड या इससे ऊंचे पदों पर भी प्रशिक्षित युवाओं को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है।

कहां से लें प्रशिक्षण

- सेंटर फॉर फायर सेफ्टी मैनेजमेंट एंड ट्रेनिंग, नई दिल्ली। फोनः ३२०८५३५३, ३२०८५३५५

- इंस्टीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग, नई दिल्ली। फोनः ९९११७५७३९४, ९३१२८७१६८६

(हीरेंद्र सिंह राठौड़,नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)

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30 मई 2011

राजस्थानःऑनलाइन होंगे बोर्ड के दस्तावेज

यदि किसी व्यक्ति ने वर्ष 1980 में दसवीं या बारहवीं कक्षा पास की थी और उसकी मार्कशीट गुम हो गई हो तो उसे इसके लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अजमेर कार्यालय नहीं जाना पड़ेगा। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड विद्यार्थियों से संबंधित दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन करेगा। यह जानकारी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष सुभाष गर्ग ने रविवार को सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान दी।
बोर्ड अध्यक्ष ने कहा कि साढे तीन करोड़ रूपये की लागत से वर्ष 1971 से 2010 तक बोर्ड के विद्यार्थियों से संबंघित प्रमाण-पत्रों को डिजीटलाइजेशन का कार्य किया जाएगा। यह कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।

इन दस्तावेजों को बोर्ड की वेबसाइट पर ऑनलाइन कर दिया जाएगा। इसके बाद इच्छुक व्यक्ति अपनी अंकतालिका या प्रमाण पत्र संबंधित जिले में स्थित विद्यार्थी सेवा केन्द्र से प्राप्त कर सकेगा। डा. गर्ग ने बताया कि शैक्षिक उन्नयन की दृष्टि से भी बोर्ड की ओर से व्याख्याताओं और विषय अध्यापकों के लिए रिफ्रेशर कोर्स आयोजित किए जा रहे हैं।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में ग्रेडिंग सिस्टम लागू करने की बात पर अध्यक्ष डा. गर्ग ने कहा कि उनके मायने में दसवीं और बाहरवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम में ग्रेडिंग सिस्टम लागू करने का कोई औचित्य नहीं है। जब उचच् शिक्षा की कक्षाओं में मेरिट से प्रवेश दिया जाता है और वह नम्बरों के आधार पर बनती हैं तो फिर ग्रेडिंग का क्या उपयोग रहा(राजस्थान पत्रिका,बीकानेर,30.5.11)।

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बिहारःबीएड कॉलेजों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने तैयार की गुप्त रणनीति

बीएड पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कॉलेजों में अगले सत्र से प्रबंधन कोटा खत्म हो जाएगा। इसके लिए सरकार ने गुप्त रणनीति बना ली है। छात्रों पर प्रबंधकों के दबाव को रोकने के लिए बैंकों में सीधे फीस जमा करने की व्यवस्था भी इसी साल से लागू हो जाएगी। जो प्रबंधन इस व्यवस्था को मानने से इनकार करेगा उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही उसकी मान्यता भी निरस्त कर दी जाएगी।

निजी कालेजों के प्रबंधन द्वारा छात्रों से अधिक फीस वसूली को रोकने के लिए महीने भर से चल रही कवायद में सरकार की बिलकुल नहीं चली। एक तरह से ताकतवर कॉलेजों के सामने सरकार ने आत्मसर्पण ही कर दिया। कालेजों ने काउसिंलिंग के दौरान ८० हजार से एक लाख तीस हजार रुपए तक की फीस रखे जाने की वकालत की थी। उच्च न्यायालय ने भी कुछ कालेजों के लिए ५० हजार रुपए की फीस रखने का सुझाव दिया था। इस आधार पर प्रदेश में बीएड के १०२४ कॉलेजों में तीन तरह की फीस ली जा सकती है । कुछ कॉलेजों में फीस नहीं ब़ढ़ेगी लेकिन काफी कालेजों में ५१ हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए के बीच तीन श्रेणियों में फीस रखे जाने पर विचार चल रहा है। इसके लिए ६२ चार्टर्ड एकाउंटेंट की मदद से औपचारिकताएं पूरी कराई जा रही हैं ।


लेकिन सरकार ने इन विद्यालयों के पर कतरने के लिए भी एक गुप्त योजना तैयार की है। सरकार का मानना है कि जब फीस ब़ढ़ रही है तो प्रबंधन कोटा ही खत्म कर दिया जाए।
बीएड प्रवेश परीक्षा कराने के एवज में आए लाखों रुपए की धनराशि का पूरा ब्योरा न देने के मामले में शासन ने लखनऊ व आगरा विवि की ऑडिट जांच के आदेश दिए गए हैं । आशंका जताई जा रही है कि इस मामले में लाखों का हेर फेर किया गया है।रिपोर्ट मांगे जाने के बाद भी विवि द्वारा रिपोर्ट न देने के एवज में ऑडिट जांच के आदेश दिए गए हैं। गत वर्ष लखनऊ विवि ने राज्य सरकार पर संयुक्त बीएड प्रवेश परीक्षा आयोजित कराई थी। अर्हता नियम, पेपर लीक और काउंसिलिंग कराने तक में विवादों से घिरे रहे विश्वविद्यालय ने इस परीक्षा से करो़ड़ों रूपए की आय की थी। इसमें सामान्य-ओबीसी वर्ग के लिए आठ सौ ヒपए का फार्म तथा एससी-एसटी के लिए चार सौ का फार्म तय किया गया(नई दुनिया,दिल्ली,30.5.11)।

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मध्यप्रदेशः८० फीसदी अंक पाने वालों को मिलेंगे ५ हजार रुपए

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में इस वर्ष से गांव की बेटी योजना की तरह हायर सेकंडरी परीक्षा में ८० प्रतिशत अंक पाने वाले सभी विद्यार्थियों को भी कॉलेज में प्रवेश लेने पर ५ हजार रूपए की छात्रवृत्ति देने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि नीमच जिले के सिंगोली में इसी शैक्षणिक सत्र से कॉलेज प्रारंभ किया जाएगा।चौहान रविवार को जावद तहसील के ग्राम अठाना में नक्षत्र वाटिका पर स्थापित की गई ६३ फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा के अनावरण समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने प्रदेश में शिक्षा का वातावरण निर्मित करने के लिए लागू की गई योजनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि कक्षा १ से १२ वीं तक सभी विद्यार्थियों को दो जोड़ गणवेश और पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क वितरित की जाएंगी(नई दुनिया,नीमच/जावद,30.5.11)।

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राजस्थानःशर्ते पूरी न करने वाली स्कूलों की मान्यता समाप्त होगी

शर्तो की पालना किए बिना स्कूल खोलने के लिए मान्यता नहीं मिलेगी। वहीं अगर वर्तमान में संचालित स्कूल मान्यता की निर्धारित शर्त पूरी नहीं करते हैं तो उनकी भी मान्यता समाप्त कर दी जाएगी। यह बात राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने सुभाष गर्ग ने राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में बताई। गर्ग ने बताया कि स्कूल प्रबंधकों को मान्यता के लिए परिपत्र देना होगा जिसमें उन्हें यह घोषणा करनी होगी कि वे निर्धारित सभी शर्ते पूरी करते हैं।
ऑन द स्पॉट मान्यता खत्म
गर्ग ने बताया कि जिस जमीन पर स्कूल खोला जाना है उसकी उपयोगिता व कनवर्जन के बारे में भी स्कूल प्रबंधन को जानकारी उपलब्ध करवानी होगी। वहीं जिस स्कूल में प्रयोगशाला की व्यवस्था नहीं होगी, उसकी जांच के दौरान उसी समय मान्यता समाप्त कर दी जाएगी।
10 वीं और 12 वीं परीक्षा एक ही समय

गर्ग ने बताया कि छात्रों व सरकारी मशीनरी की सुविधा के मद्देनजर आगामी सत्र से दसवीं व बारहवीं की परीक्षा एक ही समय सुबह 8 बजे से 12.15 तक करवाई जाएगी। आगामी 8 जून को होने वाली बैठक में इन सभी फैसलों का अनुमोदन कर दिया जाएगा। वहीं मेरिट में आने वाले छात्रों का दीक्षांत समारोह हर वर्ष आयोजित करने की योजना है।
हर स्कूल जुड़ेगा बोर्ड से
गर्ग ने बताया कि आने वाले समय में प्रदेश के हर स्कूल को बोर्ड से ऑनलाइन जोड़ने की योजना है, ताकि स्कूल व बोर्ड को सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में आसानी रहे। वहीं बोर्ड अपने खर्चे पर एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षकों को अपग्रेड व अपडेट करने के लिए रिफ्रेशर कोर्स करवाए जा रहे हैं(राजस्थान पत्रिका,जोधपुर,30.5.11)।

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आरपीएमटीःप्राप्तांकों में नहीं कोई फेरबदल

एक रात में आरपीएमटी की वरीयता सूची गड़बड़ाने के मामले में राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि विस्तृत परिणाम में अभ्यर्थियों के प्राप्तांकों में कोई फेरबदल नहीं किया गया है। रविवार को विवि अघिकारियों ने प्रेस वार्ता में बताया पिछले वर्षो में भी ऎसा होता आया है कि अभ्यर्थियों की अंतिम वरीयता सूची काउंसलिंग के समय तय की जाती है।
समान अंकों की स्थिति में 12वीं और 10वीं कक्षा के अंकों के आधार पर ये वरीयता तय होती है। परीक्षा संयोजक डॉ. डी. के. गुप्ता ने बताया कि इस बार 12वीं का परिणाम नहीं आने के कारण इस परिणाम में समान अंक वाले अभ्यर्थियों को समान रैंक दे दी गई। इसमें एक वरीयता पर कई अभ्यर्थी थे। अभ्यर्थियों को अपनी रैंक का सही अनुमान नहीं होने के कारण ही विश्वविद्यालय ने दूसरे दिन विस्तृत परिणाम जारी किया(राजस्थान पत्रिका,जयपुर,30.5.11)।

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गुम होती भाषा और मूक सरकारें

कोया, कोरवा, कोंडा, आओ, बाल्टी, विष्णुपुरिया, खरिया, खासी और तमांग। इन शब्दों का मतलब और औचित्य समझने में आप उलझ गए होंगे। मगर ये शब्द ये वास्तव में समृद्ध भारतीय भाषाएं हैं जिनकी जड़ें हमारे देश के इतिहास, संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हैं। अपने अस्तित्व के लिए जूझती ऐसी 62 भाषाओं में से 20 तो बिल्कुल लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। अंग्रेजी और दूसरी बड़ी भाषाओं के आतंक में गुम होती जा रही इन भाषाओं के बचने की एक क्षीण सी सही, लेकिन अब उम्मीद जागी है। योजना आयोग भारत भाषा विकास योजना नाम की नई स्कीम पर विचार कर रहा है। तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी इस पर राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के अलावा केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद की प्रस्तावित बैठक में इस पर चर्चा करने जा रहा है। असम, अरुणाचल, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा जैसे दूसरे राज्यों में प्रचलित लगभग सौ भाषाओं पर संकट है। मूल वजह इन भाषाओं का संविधान की आठवीं अनुसूची से बाहर होना है। खास बात है कि देश के लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग इन भाषाओं को पढ़ने-लिखने व बोलने वाले हैं। फिर भी केंद्र व राज्य सरकारें उनके अस्तित्व को लेकर बहुत फिक्रमंद नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने आठवीं अनुसूची के बाहर की इन सौ भाषाओं में से 62 के अस्तित्व को खतरे में माना है। यूनेस्को की सूची के मुताबिक अरुणाचल व असम में लगभग दो लाख लोग आदी भाषा बोलते हैं, फिर भी उसका अस्तित्व खतरे में है। त्रिपुरा व असम में विष्णुपुरिया, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में भूटिया, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल में भूमिजी, कर्नाटक की कूरगी, कोडागू, जम्मू-कश्मीर की बाल्टी, नगालैंड मेंलगभग डेढ़ लाख लोगों में प्रभाव रखने वाली आओ भाषा पर खत्म होने का खतरा है। पश्चिम बंगाल व झारखंड में कोडा व कोरा भाषा का प्रभाव 43 हजार लोगों पर है। महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के सवा लोगों पर कोलामी भाषा का प्रभाव है। इस तरह यूनेस्को ने कुल 62 भारतीय भाषाओं के समाप्त होने की आशंका जताई(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,30.5.11)।

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स्तरीय शोध से ही विश्वविद्यालयों का स्तरोन्नयन संभव

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने ठीक ही कहा है कि आइआइटी और आइआइएम उच्चस्तरीय शोध के केंद्र नहीं बन सके हैं। इनके जरिये शायद ही कोई महत्वपूर्ण शोध सामने आया हो। दुनिया भर में शोध और अनुसंधान का काम विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में होता है। लेकिन हमारे विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थान घटिया राजनीति के केंद्र बन गए हैं। आबादी की दृष्टि से चीन के बाद हम दूसरे नंबर पर हैं, लेकिन दुनिया को बताने लायक हमारे पास कोई उपलब्धि नहीं है। सारी की सारी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों के कार्यो से भरी पड़ी हैं। उसमें मुश्किल से भी किसी भारतीय का नाम नहीं मिलता है। कांग्रेसी मंत्रियों में इस बात पर बहस शुरू हो गई तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि आजाद भारत में भारतीयों ने कौन-कौन से नए आविष्कार और अनुसंधान किए हैं, जिनकी अंतरराष्ट्रीय जगत में मान्यता है। हालांकि इस दुरावस्था के लिए केंद्र की सभी सरकारें जिम्मेदार रही हैं, क्योंकि अभी तक हम शोध और अनुसंधान की कोई राष्ट्रीय नीति और लक्ष्य तय नहीं कर सके हैं। हमारे विश्वविद्यालयों, आइआइटी, आइआइएम और अन्य संस्थानों में राजनीति और भाई-भतीजावाद इतना हावी है कि वहां कामकाज का कोई माहौल नहीं है, इसीलिए मौलिक खोज व अनुसंधान के मामले में हमारी गिनती दुनिया के बेहद पिछड़े देशों में होती है। हमारे पास आइआइटी जैसे संस्थान हैं, कई स्तरीय अनुसंधान केंद्र हैं और विश्वविद्यालयों में विज्ञान के विभाग भी हैं। लेकिन सीएसआइआर का एक सर्वे बताता है कि हर साल जो करीब तीन हजार अनुसंधान पत्र तैयार होते हैं, उनमें कोई नया आइडिया नहीं होता है। वैज्ञानिकों तथा वैज्ञानिक संस्थाओं की कार्यकुशलता का पैमाना वैज्ञानिक शोध पत्रों का प्रकाशन और पेटेंटों की संख्या है, लेकिन इन दोनों ही क्षेत्रों में गिरावट आई है। भारत में सील किए गए पेटेंटों की संख्या 1989-90 में 1990 से गिरकर 2006-2007 में 1881 रह गई है, जबकि रिसर्च एवं डेवलपमेंट (आरएंडडी) पर खर्च हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। पिछले 10 वर्षो में यह 232 प्रतिशत बढ़ गया है। अब विज्ञान मंत्रालय नए अवार्ड ऐसे वैज्ञानिकों के लिए शुरू करेगा, जो अपने देश के अंदर कार्य करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने जरूरत इस बात की बताई है कि निजी क्षेत्र शोध के मामले में निवेश की लहर पैदा करें। पर जब तक देश के वैज्ञानिक संस्थानों-विश्वविद्यालयों में शोध, आविष्कार का माहौल नहीं पैदा किया जाएगा, तब तक कुछ नहीं होगा। देश के कई वैज्ञानिक संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं पर ऐसे मठाधीशों का कब्जा है, जिनका अकादमिक कार्य इस स्तर का नहीं है कि वे किसी संस्थान के निदेशक बनाए जाएं, लेकिन अपनी पहुंच के बल पर वे वैज्ञानिक अनुसंधान के मुखिया बने हुए हैं। विज्ञान की दुनिया में जोड़-घटाकर यों ही कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है। विज्ञान में कुछ करने का मतलब है कि कोई नई खोज या आविष्कार किया जाए। लेकिन जब चुके हुए लोग राजनीतिक तिकड़म और भाई-भतीजावाद से वैज्ञानिक संस्थानों, प्रयोगशालाओं एवं केंद्रों के मुखिया होंगे तो क्या होगा? शायद इन्हीं सब कारणों से वैज्ञानिक समुदाय में कुंठा बढ़ रही है। यह कोई अकारण नहीं है, जिन भारतीय वैज्ञानिकों ने नाम कमाया है, वे विदेशों में बस चुके हैं। लगभग दस लाख भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर और इंजीनियर आज देश से बाहर काम कर रहे हैं। भारत को विश्व बाजार में अलग-थलग नहीं रहना है तो स्पष्ट रूप से हमें देश में विज्ञान और तकनीक के विकास का माहौल बनाना होगा। देश की जरूरत के हिसाब से विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान की प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान को अफसरशाही के शिकंजे से मुक्त कराकर देश के निर्माण के लिए समयबद्ध स्पष्ट कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए। वास्तव में भारतीय अनुसंधान एवं विकास संस्थान ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में अर्थ-व्यवस्था को नया रूप देने और स्थानीय उद्योग को उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए सभी पक्षों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा। इसके लिए हमारे प्रधानमंत्री, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को भी अपनी क्षमता और दक्षता के साथ योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन पर निचले स्तर तक नजर रखनी होगी(निरंकार सिंह,दैनिक जागरण,30.5.11)।

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